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क्या समाज भूल गया है कि महिलाओं को भी चुनने की आज़ादी है?

हमारे समाज में बहुत बार लोग यह भूल जाते हैं कि महिलाएं भी आजाद हैं और उन्हें भी जिंदगी को अपने तरीके से जीने का हक है लेकिन सब लोगों उन्हें कैद करने की कोशिश करते हैं। उनकी जिंदगी का कंट्रोल अपने हाथ में लेना चाहते हैं।

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Rajveer Kaur
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Women Are Free Humans With Freedom To Choose: हमारे समाज में बहुत बार लोग यह भूल जाते हैं कि महिलाएं भी आजाद हैं और उन्हें भी जिंदगी को अपने तरीके से जीने का हक है लेकिन सब लोगों उन्हें कैद करने की कोशिश करते हैं। उनकी जिंदगी का कंट्रोल अपने हाथ में लेना चाहते हैं। उनके फैसलों को अपनी सोच के मुताबिक लेते हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि महिलाओं की जिंदगी से जुड़े फैसलों में उनकी राय ही नहीं ली जाती जो कि बहुत गलत है। एक महिला को इंसान नहीं समझा जाता है बल्कि उसे किसी की पत्नी, मां, बहन या फिर बेटी ज्यादा समझा जाता है। चलिए आज इस टॉपिक के ऊपर बात करते हैं-

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क्या समाज भूल गया है कि महिलाओं को भी चुनने की आज़ादी है?

भारतीय समाज में संस्कारों को बहुत महत्ता दी जाती है। संस्कारी औरत की बहुत तारीफ की जाती है। ऐसा समझा जाता है कि औरत को संस्कारी होना चाहिए। उसे अपनी मर्यादा पता होनी चाहिए और उनके अनुसार ही अपने जीवन को जीना चाहिए लेकिन जब बात पुरुषों की आती है तो ना ही संस्कारों की बात होती है और ना ही उन्हें किसी मर्यादा में रहने के लिए विवश किया जाता है। अगर पुरुष कोई गलती भी कर देते हैं तब भी यह कहा जाता है कि पुरुष ऐसा कर सकते हैं। ऐसे बोलकर उनकी हर गलती को माफ कर दिया जाता है।

संस्कारी होने की परिभाषा बदलें 

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महिलाओं के संस्कारी होने का मतलब है कि उन्हें किसी के सामने ऊंची आवाज में बात नहीं करनी, कपड़े पूरे ढके होने चाहिए, घर के सभी काम आने चाहिए, सभी की हां में हां होनी चाहिए, किसी को मना नहीं करना है और हर समय दूसरों की केयर करनी है। सब चीजों में एक बात बहुत गलत है कि महिलाओं से हमेशा ही यह अपेक्षा की जाती है कि वो दूसरों का ध्यान रखें लेकिन जब बात उनकी वेल्बीइंग की आती है तो उनके बारे में कोई नहीं सोचता और ना ही महिला को खुद के बारे में सोचने दिया जाता है।

महिलाएं किसी की गुलाम नहीं

महिलाएं किसी की गुलाम नहीं है। वे अपनी मर्जी से जिंदगी जी सकती हैं। उनका जन्म दूसरों की खिदमत के लिए नहीं हुआ है। महिलाओं की कुछ जिम्मेदारियां हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें हमेशा ही दूसरों के हिसाब से जिंदगी को जीना है। वे अपनी मर्जी से जिंदगी को जी सकती हैं। उन्हें किसी की चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्हें अपनी जिंदगी का कंट्रोल अपने हाथ में ही लेना चाहिए ताकि उन्हें दूसरों के हिसाब से न रहना पड़े।

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अगर आप अपने लिए लड़ाई नहीं लड़ेगी तो कोई भी आपका साथ नहीं देगा। हमारे समाज में लोगों को महिलाएं तब तक अच्छी लगती हैं जब तक वे दूसरों के मुताबिक चलती हैं लेकिन जब वे जिंदगी का कंट्रोल अपने हाथ में ले लेती हैं तो कोई भी उन्हें पसंद नहीं करता और उनके चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं। इसलिए महिलाओं को खुद ही अपने लिए स्टैंड लेना शुरू करना होगा। उन्हें आर्थिक रूप से आजाद होना चाहिए और किसी को भी अपनी वर्थ डिफाइन नहीं करने देनी चाहिए।

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