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Mrs. Anjula Masurkar
आज की आधुनिक महिलाएं करियर और परिवार दोनों में सफलता हासिल करना चाहती हैं, लेकिन यह सफर आसान नहीं होता। एक ओर वे कार्यस्थल पर अपने सपनों को साकार करना चाहती हैं, वहीं दूसरी ओर वे अपने बच्चों और परिवार के लिए भी समय निकालना चाहती हैं। लेकिन समय, सामाजिक अपेक्षाएं और कार्यस्थल की मांगें उनके इस संतुलन को बनाए रखना कठिन बना देती हैं।
करियर और मातृत्व के बीच संतुलन बनाना कितना मुश्किल?
जैसे-जैसे महिलाएं लीडरशिप रोल में आगे बढ़ रही हैं, उनके सामने नई चुनौतियां भी आ रही हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हें सहनशीलता, सपोर्ट और स्मार्ट फैसलों की जरूरत होती है।
करियर ग्रोथ और समय की कमी: एक बड़ी चुनौती
समय की कमी कामकाजी माताओं के लिए सबसे बड़ी समस्या होती है। ऑफिस की मीटिंग्स और बच्चों के स्कूल इवेंट्स के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होता। उन्हें घर और काम दोनों में 100% देने का दबाव रहता है, जिससे मानसिक और शारीरिक थकान बढ़ती है।
मातृत्व अवकाश, लचीली कार्य-नीतियां और हर समय उपलब्ध रहने की अपेक्षा के कारण महिलाओं का करियर प्रभावित होता है। उन्हें खुद को बार-बार साबित करना पड़ता है, ताकि कार्यस्थल पर उनकी निष्ठा पर सवाल न उठे।
एक अध्ययन के अनुसार, फुल-टाइम कामकाजी माताओं में तनाव का स्तर अधिक होता है, क्योंकि वे हमेशा परिवार और काम के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश में लगी रहती हैं। अगर वे परिवार की जरूरतें पूरी नहीं कर पातीं, तो अपराधबोध बढ़ जाता है, जिससे मानसिक दबाव और भी बढ़ जाता है।
गिल्ट, समाज की अपेक्षाएं और कार्यस्थल की पूर्वधारणाएं
कई कामकाजी माताओं को अपराधबोध (Guilt) का सामना करना पड़ता है। समाज आज भी उनसे यह उम्मीद करता है कि वे बच्चों की प्राथमिक देखभालकर्ता बनें, जिससे वे अपने करियर और परिवार के बीच फंसी महसूस करती हैं।
इसके अलावा, कई महिलाओं को मातृत्व के बाद लीडरशिप रोल पाना मुश्किल लगता है। कई कंपनियां आज भी यह मानती हैं कि महिलाएं करियर से ज्यादा परिवार को प्राथमिकता देंगी, जिससे उनके लिए उन्नति के अवसर कम हो जाते हैं।
अध्ययनों से यह भी पता चला है कि कामकाजी माताओं को नौकरी के इंटरव्यू कॉल्स भी कम मिलते हैं। इस पूर्वाग्रह को "मदरहुड पेनल्टी" कहा जाता है, जहां मातृत्व को एक बाधा के रूप में देखा जाता है।
सफलता का राज: सपोर्ट सिस्टम और सही रणनीतियां
हालांकि इन चुनौतियों के बावजूद कई महिलाएं सफलता की नई कहानियां लिख रही हैं। रिमोट और हाइब्रिड वर्किंग ऑप्शंस ने उन्हें अधिक लचीलापन दिया है, जिससे वे परिवार और करियर दोनों को संभाल पा रही हैं।
कुछ प्रमुख रणनीतियां जो कामकाजी माताओं की मदद कर सकती हैं:
सीमाएं तय करना: कब 'ना' कहना है और किन कामों को प्राथमिकता देनी है, यह सीखना जरूरी है।
समय प्रबंधन: पहले से प्लानिंग करने और टेक्नोलॉजी की मदद लेने से समय का बेहतर उपयोग हो सकता है।
सपोर्ट सिस्टम: परिवार, जीवनसाथी, डेकेयर या अन्य कामकाजी महिलाओं का नेटवर्क मददगार साबित हो सकता है।
आज, कई कामकाजी माताएं मातृत्व अवकाश, चाइल्डकैअर सपोर्ट और वर्क-फ्रॉम-होम जैसी नीतियों पर खुलकर बातचीत कर रही हैं। उनकी कोशिशों से कार्यस्थल पर पेरेंट-फ्रेंडली माहौल बनने लगा है, जिससे अगली पीढ़ी की महिलाओं को कम संघर्ष करना पड़ेगा।
हर महिला की यात्रा अलग होती है, लेकिन आज संस्थान, परिवार और समाज यह समझने लगे हैं कि काम और परिवार में से किसी एक को चुनना जरूरी नहीं। सही समर्थन और बदलावों के साथ महिलाएं दोनों क्षेत्रों में सफल हो सकती हैं। अब सफलता का मतलब केवल एक चीज को चुनना नहीं, बल्कि संतुलन बनाना है। चाहे वह बिजनेस डील बंद करना हो या बच्चे के जीवन के खास पल में मौजूद रहना, हर जीत मायने रखती है।
लेखिका: श्रीमती अंजुला मसुरकर, क्लिनिकल डायरेक्टर, एंटोड फार्मास्युटिकल्स