Live-In Relationship: लिव-इन रिलेशनशिप को समाज में पूरी तरह से स्वीकृति नहीं मिल पाती है। इसका कारण परंपरागत विवाह की मजबूत अवधारणा, कानूनी सुरक्षा का अभाव, सामाजिक स्वीकृति की कमी, बच्चों पर संभावित प्रभाव और लिव-इन रिश्तों को लेकर मौजूद गलत धारणाएं हैं।
समाज में लिव-इन रिलेशनशिप को पूरी तरह से स्वीकृति ना मिलने के कई कारण हैं, आइए इन्हें विस्तार से देखें
1. परंपरागत विवाह की अवधारणा
भारतीय समाज सदियों से विवाह को एक पवित्र संस्था के रूप में मानता आया है। विवाह को धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ा जाता है और इसे सामाजिक दायित्वों को पूरा करने का एक जरिया माना जाता है। इस दृष्टिकोण से, लिव-इन रिलेशनशिप विवाह की पवित्रता को कमजोर करता हुआ प्रतीत होता है।
2. कानूनी सुरक्षा का अभाव
विवाह एक कानूनी अनुबंध होता है, जो पति-पत्नी को कुछ अधिकार और सुरक्षा प्रदान करता है। वहीं, लिव-इन रिलेशनशिप में ऐसी कोई कानूनी मान्यता नहीं होती। संपत्ति बंटवारे, मेंनेटेनेंस या बच्चों के पालन-पोषण जैसे मामलों में विवाद होने पर लिव-इन पार्टनर्स को कानून का सहारा नहीं मिल पाता।
3. सामाजिक स्वीकृति का अभाव
चूंकि विवाह को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है, इसलिए समाज में एक दंपत्ति के रूप में लिव-इन पार्टनर्स को होता है। इससे उनके परिवार और रिश्तेदारों के साथ संबंधों में भी तनाव पैदा हो सकता है।
4. बच्चों पर पड़ने वाला प्रभाव
कुछ लोगों का मानना है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा होने वाले बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उन्हें वैवाहिक जीवन का एक स्थिर माहौल नहीं मिल पाता और सामाजिक तौर पर भी उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
5. धारणाओं और भ्रांतियों का प्रभाव
लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कई तरह की धारणाएं और भ्रांतियां मौजूद हैं। कुछ लोग इसे सिर्फ शारीरिक संबंधों तक सीमित समझते हैं, तो कुछ इसे विवाह से पहले का अस्थायी रिश्ता मानते हैं। ये गलतफहमियां लिव-इन रिलेशनशिप की सही अवधारणा को समाज में फैलने में बाधा बनती हैं।