हमारे समाज में पहले ये चीज़ बहुत आम थी घर में अक्सर लिंग को लेकर बच्चों में भेदभाव किया जाता है। उन्हें इस बात अहसास कराया जाता था कि तुम लड़की हो इसलिए तुम्हें यह विशेष रंग, खिलौने और काम करना होगा है। ऐसा ही व्यवहार लड़कों को भी करने को कहा जाता था। इससे आगे जाकर यहीं चीज़ एक बढ़े लैंगिक असमानता का कारण बन रही थी और आज भी ये चीज़ हैं। इस चीज़ को आज के समय के पेरेंट्स कई ना कई नहीं अपना रहे है लेकिन फिर भी आज भी लैंगिक असमानता होती है।
Gender Neutral Parenting:- बच्चे के अंदर मत पैदा करें लिंग को लेकर भेदभाव
आख़िर क्या है?
यह पेरेंटिंग का ऐसा तरीक़ा जिसमें बच्चों के साथ जेंडर के आधारित कोई चीज़ निश्चित नहीं की जाती है। जेंडर के बेस पर जो समाज में नियम सेट उनसे ऊपर उठ कर आप बच्चों की परवरिश करते हों।ये बच्चों के अंदर अपने प्रति विश्वास पैदा करता है।
बच्चों को रंगों में लिमिट मत कीजिए
अक्सर घरों में देखा जाता है लड़की है तो पिंक ही पहनेगी अगर लड़का है तो वह ब्लू पहनेगा। उस चीज़ के कारण दोनों के अंदर बीच अंतर पैदा होगा। लड़की पिंक नहीं पहनेगा। इससे वे हर उस लड़के को जज जिसे पिंक कलर पसंद होगा और जो इसे वीयर करेंगा।
टॉय्स में भी भेदभाव मत कीजिए
अक्सर जब खिलौनों की बात आती हैं माँ-बाप लड़कियों को ‘डॉल’, लड़कों को ‘सुपर हिरोस’, कार, फूटबाल आदि चीजें ख़रीद कर देते हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। ज़रूरी नहीं है लड़कियों को मार्वल्ज़, कार्स, या स्पोर्ट्स के खिलौनों का शौक़ नहीं हो सकता है। ये सब समाज की सोच का नतीजा है।
कपड़ों को भी आप डिसाइड मत करें
ये भी नहीं है कि सिर्फ़ लड़कियों को 'मेकअप; का शौक़ होता है। यह लड़कों को भी हो सकता है।आप ये फ़ैशन, मेकअप, क्लोधिंग सब चीज़ें पहले से जेंडर के आधार पर मत निश्चित कीजिए।
उनका करियर जेंडर पर तय मत कीजिए
उनके करियर भी जेंडर मत आने दीजिए कि अगर लड़का तो लड़की ‘डान्स’ में जा सकता है। लड़के को शेफ़ नहीं बनने दिया जाता है। अब ये चीजें बदल रही है लेकिन फिर भी आप घर से ही इस चीज़ का ध्यान रखें।
इस पेरेंटिंग का मतलब ये नहीं है कि आप ने बच्चों पर इसे थोपना है। इसका मतलब हैं कि आपने बच्चों को वैसे बढ़ने जैसे वे चाहते है बस उनके विकास में जेंडर कभी भी बाधा नहीं बनना चाहिए। अगर लड़के को 'ब्लू' और लड़की को ‘पिंक’ कलर पसंद है यह ‘ओके’ है।