Women Legal Rights: आज के समय में महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। वह पुरुषों से घर हो या कार्यस्थल में कंधे से कंधे मिलाकर चल रही है। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाएं अपना योगदान नहीं दे पा रही। हर जगह अपनी जिम्मेदारियां को वह बखूबी निभा रही हैं लेकिन फिर भी उन्हें पुरुषों की तुलना में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बात करें भारत की तो यहां हर मिनट कोई न कोई महिला अपराध की शिकार बन रही है, फिर चाहे वह अपने खुद के घर में ही क्यों ना हो, कार्यस्थल में हो या पब्लिक प्लेस पर हर जगह उनकी सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा होता है। घरेलू हिंसा, लिंग भेदभाव, उत्पीड़न जैसे कई समस्याओं से वो जूझ रही हैं। ऐसे में भारत सरकार ने महिलाओं को कई अधिकार दिए हैं, जिसे महिलाओं को जानना बेहद ज़रूरी है।
हर महिला को पता होने चाहिए खुद से जुड़े ये 5 कानूनी अधिकार
लैंगिक समानता हो या पुरुषों के बराबर के हिस्सेदारी या गरिमा से जीने का अधिकार हो या उत्पीड़न से खुद की सुरक्षा जैसे कई अधिकार हैं, जिसे हर महिला को पता होना ज़रुरी है।
1. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
भारतीय संविधान की धारा 498 के अंतर्गत किसी घर में रहने वाली महिला या पत्नी या लिव-इन पार्टनर अपने प्रति हो रहे घरेलू हिंसा के खिलाफ अपनी आवाज उठाकर अधिकार ले सकती है। इस कानून के अंतर्गत कोई भी पुरुष अपनी महिला के साथ आर्थिक, जज्बाती या यौन उत्पीड़न करता है तो उसे 3 साल गैर जमानती करावास की सजा हो सकती है।
2. दहेज निषेध अधिनियम 1961
इस कानून के तहत शादी के दौरान लेने वाले दहेज दंजनीय अपराध है। सालों से चली आ रही इस प्रथा की जड़े अब काफी गहराई तक पहुंच गई है। इसके दौरान महिलाओं को शादी के बाद भी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है। यहां तक कि दहेज की मांग पूरा न करने के बाद महिला को मार तक दिया जाता है। आज भी दहेज प्रथा हमारे समाज में एक प्रमुख मुद्दा है। जिससे हमारे समाज की महिलाएं जूझ रही हैं। इस कानून के तहत आप शिकायत दर्ज करवा सकती है।
3. मैटरनिटी लाभ अधिनियम 1861
यह कानून अनिवार्य मातृत्व लाभ को नियंत्रित करता है। इस कानून के तहत कामकाजी महिला को 6 महीने तक मैटरनिटी लीव मिलता है। इसमें कहा गया है कि कोई महिला अगर किसी कंपनी में 80 दिनों तक काम करती है, तो वह मैटरनिटी लीव पाने की हकदार होती है। जब यह 1861 में शुरू हुआ था तब 3 महीने की छुट्टी का प्रावधान था। जिसे बढ़ाकर 2017 में 6 महीने कर दिए गए।
4. समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976
इस अधिनियम के तहत महिलाओं को भी पुरुषों के समान मेहनताना मिलने का प्रावधान है, लेकिन आज भी कई ऐसे कार्यस्थल हैं जहां महिलाओं को पुरुषों के समान काम करने के बावजूद समान तनख्वाह भी नहीं मिल पाता।
5. जीरो एफआईआर
अगर किसी महिला के साथ अपराध होता है तो वह महिला किसी भी थाने में जाकर जीरो एफआईआर दर्ज करा सकती है। जरूरी नहीं कि वह उसी थाने में जाकर एफआईआर दर्ज करवाएं जहां घटने को अंजाम दिया गया हो।