Does PCOS Affect Menopause: PCOS यानी कि Polycystic Ovary Syndrome यानी कि महिलाओं की ओवरी में छोटे-छोटे कुछ सिस्ट बनने के कारण अक्सर सूजन और पीरियड में प्रॉब्लम होती है। इसमें अधिक दर्द और अनियमित पीरियड जैसी तकलीफें होती हैं। बॉडी में हार्मोनल इंबैलेंस बहुत अधिक होने के कारण एक्ने, फैसियल हेयर और वेट गेन जैसी भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। PCOS का कोई भी इलाज नहीं होता इसे केवल अच्छे खान-पान और एक वेट मेंटेन करने से ही हैंडल किया जा सकता है। वहीं मेनोपॉज लगभग 50 की उम्र में दस्तक देता है। मेनोपॉज आने के बाद धीरे-धीरे महिलाओं के रिप्रोडक्टिव हार्मोन कम होने और ओवरी के एग कम प्रोड्यूस करने के कारण होता है। जिसमें उनकी पीरियड्स धीरे-धीरे करके बंद हो जाते हैं। आइये जानते हैं कि PCOS मेनोपॉज को किस तरह प्रभावित करता है?
क्या PCOS मेनोपॉज को करता है प्रभावित?
1. हार्मोनल इंबैलेंस
PCOS से ग्रसित महिलाओं को हार्मोनल इंबैलेंस की काफी ज्यादा परेशानी होती है। जिसमें उनके फीमेल हार्मोन यानी कि एस्ट्रोजन में कमी देखी जाती है। साथ ही मेनोपॉज में भी हार्मोनल इंबैलेंस देखा जाता है। मेनोपॉज के दौरान PCOS के लक्षण बने रहते हैं और हार्मोनल इंबैलेंस होना सामान्य है।
2. मेनोपॉज के समय में परिवर्तन
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि PCOS से ग्रसित महिलाओं के मेनोपॉज बाकी महिलाओं के मुकाबले लगभग 2 से 4 साल देर से आते हैं। जिसके कारण देखा जाता है कि PCOS से ग्रसित महिलाएं अधिक उम्र में भी फर्टाइल होती हैं।
3. मेनोपॉज के लक्षण
मेनोपॉज के लक्षण जैसे की हॉट फ्लैशेस या हार्मोनल असंतुलन PCOS ग्रसित महिलाओं में भी दिखाई देते हैं। मूड स्विंग और पीरियड में संतुलन काफी अधिक देखा जाता है। खान-पान में परिवर्तन और खुद का ध्यान रखने से इन लक्षणों में थोड़ी कमी लाई जा सकती है।
4. ज्यादा हेल्थ रिस्क
मेनोपॉज के दौरान महिलाओं को बीपी और हार्ट प्रॉब्लम आदि समस्या आने का रिस्क होता है। PCOS के कारण वजन में वृद्धि होती है जिसकी वजह से बॉडी में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है जिससे कि इन सब हेल्थ प्रॉब्लम के होने का खतरा बढ़ जाता है।
5. मानसिक स्वास्थ्य
मेनोपॉज के दौरान महिलाएं बहुत से मानसिक परिवर्तन से भी गुजरती है मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, डिप्रेशन या फिर अकेलापन बहुत अधिक देखा जाता है। यह सब हार्मोनल डिसबैलेंस के कारण भी होता है। साथ ही PCOS में होने वाले हार्मोनल डिसबैलेंस से भी इन लक्षणों में वृद्धि देखी जाती है।