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Photograph: (Freepik & Pinterest)
डिजिटल एरा में हमारी सोच और जीवनशैली में बदलाव आया है, फिर भी सेक्सुअल हेल्थ और सेक्सुअल प्लेज़र पर खुलकर चर्चा करना समाज में टैबू माना जाता है। ख़ास तौर पर जब बात महिलाओं की सेक्सुअल इच्छाओं की हो, तो यह विषय और भी संवेदनशील है। फीमेल मास्टरबेशन, यानी जब महिलाएँ अपने आप से सेक्सुअल सेटिस्फ़ैक्शन प्राप्त करती हैं, अक्सर इसे अपराध या शर्म से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन असल में यह पूरी तरह से नेचुरल और हेल्थी सेक्सुअल बिहेवियर है।
Female Masturbation: महिलाओं की Sexual Desire पर सबसे बड़ा Taboo
1. सेक्सुअल डिज़ायर्स पर महिलाओं की चुप्पी
बड़े लंबे समय से हमारी सोसाइटी में यह धारणा चली आ रही है कि महिलाएँ सेक्सुअल बेइंग्स नहीं होती हैं या उनमें सेक्सुअल इच्छा होने या खुलकर अपनी सेक्सुअल डिज़ायर्स बताने का अधिकार नहीं है। यही कारण है कि पुरुषों के साथ-साथ कई महिलाएँ भी फीमेल मास्टरबेशन को टैबू मानती हैं। जाने-अनजाने कई महिलाएँ अपनी नेचुरल सेक्सुअल curiosity और बॉडी की understanding को दबा देती हैं। अक्सर सेल्फ़ प्लेज़र के बारे में मिथ्स और गलत जानकारी भी युवाओं और महिलाओं में confusion और guilt पैदा करती हैं।
2. समाज की धारणा और जजमेंट
अगर कोई महिला अपनी सेक्सुअल curiosity या सेल्फ़ प्लेज़र के बारे में बात करती है, तो उसे समाज द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता हैं। उसे इम्मॉरल या गलत लेबल किया जाता हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के सेक्सुअल बिहेवियर को ज़्यादा जज किया जाता हैं। जिससे समाज में जेंडर इनइक्वलिटी और सेक्सुअल दबाव को भी बढ़ावा मिलता हैं।
3. मेंटल और फिज़िकल हैल्थ बेनेफिट्स
मास्टरबेशन महिलाओं को अपनी बॉडी और सेक्सुअल रिस्पॉन्स को समझने का मौका देती हैं। कई रिसर्च में बताया गया है कि महिलाओं में मास्टरबेशन ना केवल सेक्सुअल सैटिसफ़ैक्शन देती हैं, बल्कि तनाव, anxiety और स्लीप प्रॉब्लम्स को भी कम करती हैं। फिर भी कई महिलाएँ सामाजिक कलंक (social stigma) और कल्चरल टैबू के चलते इन हैल्थ बेनेफिट्स से वंचित रह जाती हैं।
4. एजुकेशन और अवेयरनेस की कमी
समाज में आज भी मास्टरबेशन को स्वीकार न करने के पीछे सबसे बड़ी वजह सेक्स एजुकेशन और अवेयरनेस की कमी हैं। यहाँ तक कि सेक्स एजुकेशन में भी फीमेल मास्टरबेशन जैसे मुद्दों पर खुलकर बातचीत करने को अनदेखा किया जाता हैं। घर में पैरेंट्स, स्कूल के टीचर्स या मीडिया हर कोई इसे अनदेखा करता दिखाई देता हैं। परिणामस्वरूप महिलाओं को सेक्सुअल हेल्थ के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती और वे अपराधबोध(guilt), शर्मिंदगी या कन्फ्यूज़न महसूस करती हैं।
5. खुलकर बातचीत है ज़रूरी
हर इंसान की ज़िंदगी का अहम हिस्सा होते हुए भी लोग इस पर बात करने से कतराते हैं। हमें समझने की ज़रूरत है कि सेक्सुअल हेल्थ एक सामान्य मानवीय पहलू हैं। महिलाओं को अपनी सेक्सुअल नीड्स और डिज़ायर्स को समझने और स्वीकार करने का पूरा अधिकार हैं। मास्टरबेशन पर informed और खुलकर बातचीत सोसाइटी में सेक्सुअल इक्वलिटी और अवेयरनेस बढ़ा सकती हैं।