भारत में Sex Education क्यों है जरूरी और इसके महिलाओं के जीवन पर कैसे सकारात्मक प्रभाव होंगे?

सेक्स एजुकेशन को लेकर चुप्पी साधने से यह महिलाओं और पुरुषों दोनों के ही जीवन में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न करती है। जानिए क्यों यौन शिक्षा जरूरी है और यह महिलाओं को कैसे यह सुरक्षित बना सकती है।

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Kirti Sirohi
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Sex education's role in preventing teenage pregnancy

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Why Is Sex Education Necessary In India And How it Have A Positive Impact On Women? भारत एक संस्कृति और परंपराओं का धनी देश है और इस वजह से यहां समाज में सेक्स शब्द आज भी एक 'टैबू' माना जाता है। हालांकि इसी संस्कृति में तीसरी शताब्दी में हिंदू कामसूत्र जैसे संस्कृत शास्त्र लिखे जा चुके हैं और इसी भारत में एलोरा गुफाएं भी मौजूद हैं, जिनपर यौन शिक्षा से जुड़ी कई आकृतियां देखने को मिलती हैं। इसके बाद भी आज के समय में स्कूलों में इसे पढ़ाना शर्मनाक माना जाता है, माता-पिता इस विषय को बच्चों के साथ चर्चा के लायक नहीं समझते हैं। इंटरनेट जनरेशन इसके बारे में ऑनलाइन देखती या जानती है, जिसमें कई तरह की अधूरी और भ्रम में डालने वाली चीजें और बातें होती हैं। खासकर महिलाओं के लिए तो सेक्स एजुकेशन की कमी उनके शरीर, स्वास्थ्य, सुख और रिश्ते में आत्मीयता के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बन जाती है।

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सेक्स एजुकेशन की जरूरत

आज भी ज्यादातर लड़कियां किशोरावस्था में मासिक धर्म, रिप्रोडक्शन सिस्टम या सेक्स रिलेशन के बारे में सही जानकारी के बिना बड़ी होती हैं। उन्हें या तो गलत जानकारियां मिलती हैं या फिर डर और शर्म के साथ चुप रहना सिखाया जाता है जिस वजह वे न सिर्फ शारीरिक और मानसिक रूप से भ्रमित रहती हैं, बल्कि कई बार सेक्सुअल वायलेंस, जबरन प्रेग्नेंसी, सेक्सुअल बीमारियों जैसी गंभीर समस्याओं का शिकार हो जाती हैं।

झकझोरने वाली खबरें जो sex education की जरूरत समझाती हैं!

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कुछ समय पहले महाराष्ट्र की एक खबर ने लगभग हर इंसान को झकझोर दिया, जहां एक तीस साल के आदमी ने अपनी 12 साल की बहन को केवल इसलिए मार दिया क्योंकि उसे पहली बार पीरियड्स आए जिसके बाद कपड़ों पर लगे खून को देखकर उसके भाई ने समझा कि वो किसी से शारीरिक संबंध बनाकर आई है, जिसके बाद उसने अपनी ही बहन की बेरहमी से हत्या कर दी और सबसे हैरानी की बात यह कि वह आदमी शादीशुदा था। इसके अलावा कई ऐसी खबरें हम पढ़ सकते हैं जिनमें सेक्सुअल गतिविधि के दौरान कोई भी लड़का इतना बेकाबू हो जाता है कि लड़की को कई प्रकार की चोटों का सामना करना पड़ता है, इसके अलावा कई बार हेवी ब्लीडिंग या इन चोट की वजह से लड़की की जान चली जाती है। इस तरह की खबरें यह साबित करती हैं कि लड़कों में सेक्स एजुकेशन बिल्कुल 'न' के बराबर होने की वजह से लड़कियां इसका शिकार होती हैं।

सेक्स एजुकेशन का मतलब केवल ‘सेक्स’ नहीं होता

हमारे समाज में जब sex education की बात होती है तो लोग इस वजह से भी पीछे हट जाते हैं कि यह सेक्स से संबंधित है। लेकिन हमारा यह जानना जरूरी है कि सेक्स एजुकेशन सिर्फ यौन संबंधों के बारे में जानकारी देना नहीं है। यह एक ऐसी शिक्षा है जिसके जरिए शरीर की संरचना, यौन व्यवहार, भावनात्मक संबंध, सुरक्षा के तरीके, यौन सहमति, लिंग पहचान, मासिक धर्म, गर्भनिरोधक विकल्प और यौन शोषण जैसे विषयों पर खुलकर बात की जा सकती है और समाज को महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और जुर्म से भी रोक जा सकता है। 

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महिलाओं के जीवन में बदलाव 

सेक्स एजुकेशन महिलाओं के सशक्तिकरण का एक बेहतरीन ज़रिया है। जब एक लड़की अपने शरीर को समझती है, उसे यह पता होता है कि उसके साथ क्या हो रहा है और वह अपनी सीमाओं को खुद तय कर सकती है, तब ही वह किसी भी तरह के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत ला सकती है। यह जानकारी उसे रिश्तों में निर्णय लेने, 'ना' कहने, गर्भनिरोधक को अपनाने और अपने शरीर को सम्मान देने का अधिकार देने में मददगार हो सकती है। सेक्स एजुकेशन से महिलाएं मानसिक रूप से भी सशक्त होती हैं। वे यह समझने लगती हैं कि उनका शरीर शर्म का कारण नहीं है बल्कि एक प्राकृतिक और खूबसूरत प्रक्रिया का हिस्सा है। साथ ही लोगों को भी हर बात पर महिलाओं को जिम्मेदार ठहराने की जगह अपने व्यवहारों और गलतियों को भी ठीक तरह से जानने का मौका मिलेगा।

स्कूल और कॉलेजों में बदलाव की ज़रूरत

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भारत में आज भी स्कूलों में रिप्रोडक्शन जैसा ‘बायोलॉजी चैप्टर’ शिक्षकों द्वारा छुड़वा दिया जाता है। इसके पीछे की कारण शर्म, लोगों को इसका महत्व पता न होना और अन्य वजह हो सकती हैं लेकिन असल में हमारे यहां ज़रूरत है एक संवेदनशील, वैज्ञानिक और जानकारी देने वाले पाठ्यक्रम की जो छात्राओं और छात्रों दोनों को यह समझने में मदद करे कि शरीर कैसे काम करता है, रिश्तों में क्या सीमाएं हैं, और एक लड़की की सहमति होने या न होने का मतलब क्या है। कॉलेज किसी भी छात्र या छात्र के जीवन का वह चरण है जिसमें यौन संबंधों की जिज्ञासा और अनुभव बढ़ते हैं और इसलिए, इस दौरान काउंसलिंग और ओपन डिस्कशन की जगह होना बेहद ज़रूरी है। 

सेक्स एजुकेशन से सुरक्षा और आत्मनिर्भरता 

जब एक महिला अपने शरीर को समझती है तो वह किसी के भी दबाव में आकर संबंध नहीं बनाती। जब उसे अपनी प्रजनन क्षमता और सुरक्षित यौन संबंधों की जानकारी होती है, तो वह बेहतर निर्णय ले पाती है। वहीं जब एक पुरुष अपनी जिम्मेदारियों, महिलाओं के मन और शरीर के बारे में जानता है तो वह किसी भी महिला पर दवाब बनाने, डराने या गलत व्यवहार करने से रुक सकता है। यही कारण है कि सेक्स एजुकेशन महिला सशक्तिकरण का एक अहम हिस्सा है। यह न सिर्फ बलात्कार, उत्पीड़न और जबरदस्ती के मामलों को रोक सकता है, बल्कि महिलाओं को आत्मविश्वास से जीना भी सिखा सकता है।

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