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'International Women's Day' पर जानिए मध्य आयु की महिलाएं गृहणी होने की भूमिका को कैसे देखती हैं?

आज के इस आर्टिकल में हमने कुछ गृहणियों से बात की जिन्होंने अपनी जिंदगी का अनुभव शेयर किया कि क्या आज भी उनकी वर्थ खाने पकाने के हुनर से ही तय होती है-

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Rajveer Kaur
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Housewife

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Middle Aged Women Share Their Thoughts On Domesticity and Identity: 'हाउसवाइफ' शब्द आपने अपनी जिंदगी में बहुत बार सुना होगा। इस शब्द को सुनने के बाद आपके दिमाग में ऐसे दृश्य सामने आते हैं जिसमें एक महिला, जिसे कोई भी काम नहीं है बल्कि उसे अपने पति के पैसों पर आराम की जिंदगी काटनी है, सामने आती है। लेकिन अस्ल में वह सुबह अपने परिवार में सबसे पहले उठती है और सबसे देर से सोती है। इस दौरान बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, पति के ऑफिस के लिए लंच बनाना, सभी सदस्यों की देखभाल, बाजार से सामान लाना, घर की साफ सफाई करना आदि काम शामिल हैं।

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आज भी हमारे समाज में हाउसवाइफ होना चॉइस नहीं है। अगर आप अकेले हाउसवाइफ रहना चाहती हैं तो भी समाज को समस्या है। इसके साथ ही अगर आप 'वर्किंग' होने के साथ 'हाउसवाइफ' होना नहीं चुनती हैं तो भी समाज आपको स्वीकार नहीं करेगा। यह एक बड़ा ही दुविधाजनक और पेचीदा विषय है जिसके ऊपर बात करनी बनती है। आज के इस आर्टिकल में हमने कुछ गृहणियों से बात की जिन्होंने अपनी जिंदगी का अनुभव शेयर किया-

'International Women's Day' पर जानिए मध्य आयु की महिलाएं गृहणी होने की भूमिका को कैसे देखती हैं?

खुद की सुनें 

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कुलदीप कौर के साथ मैंने इस विषय पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि मैंने अपनी जिंदगी में 'औरत होने का दबाव' बहुत कम महसूस किया क्योंकि मेरे परिवार का माहौल ऐसा था जहां पर 'जेंडर रोल्स' बहुत कम थे लेकिन वह उन महिलाओं की पीड़ा को समझती हैं जिन्हें हर समय ऐसे दबाव में से गुजरना पड़ता है और उन्हें यह भी लगता है कि अगर कोई महिला हाउसवाइफ भी है तो उसे इस बात को लेकर प्राउड महसूस करना चाहिए न कि खुद ही इस चीज को लेकर नीचा महसूस करना चाहिए। उन्होंने कहा कि 'समाज का रवैया' एक हाउसवाइफ के प्रति बहुत ही गलत होता है जिसमें ऐसा समझा जाता है कि यह तो सिर्फ 'खाना पकाने' के लायक है। इसके आगे तो इसे कुछ भी नहीं पता है। उन्होंने कहा, "चाहे आप एक हाउसवाइफ है या फिर वर्किंग लेकिन कभी भी दूसरों को अपनी वर्थ डिसाइड मत करने दें। हमेशा खुद की सुने"।

अनरियलिस्टिक अपेक्षाओं को चुनौती दें

बलवीर कौर ने कहा कि एक महिला जब हाउसवाइफ बनती है तो उसके ऊपर जिम्मेदारियां का पहाड़ टूट पड़ता है। उन्होंने अपनी जिंदगी में भी यह चीज महसूस की है कि कैसे एक महिला से 'अनरियलिस्टिक अपेक्षाएं' की जाती हैं। बीमार होने पर भी आपको काम करना है। जब एक महिला बीमार है तो वह सभी की देखभाल करती है लेकिन जब वह बीमार हो जाती है तो कोई भी उसकी देखभाल नहीं करता है या फिर उससे तब भी काम करने की अपेक्षा की जाती है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मैं वर्किंग थी लेकिन फिर भी जॉब से आने के बाद भी घर के कामों का दबाव रहता था जिस कारण कई बार आराम करने का भी मौका नहीं मिलता था। इस दौरान उनके लिए बच्चों की जिम्मेदारी को भी संभालना मुश्किल हो जाता था। ऐसे में अगर पार्टनर सपोर्ट करता है तो चीजें बहुत आसान लगने लग जाती हैं। उन्होंने कहा कि समाज को यह लगता है कि हाउसवाइफ को ज्यादा कुछ नहीं पता होता है और हमेशा ही महिला को नीचा दिखाया जाता है या फिर उन्हें ज्यादा मामलों में शामिल नहीं किया जाता है।

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फ्री की सर्वेंट

बबली देवी का कहना है कि शादी के बाद हर महिला की वर्थ इस बात से डिसाइड की जाती है कि उसे खाना बनाना आता है या नहीं। उन्होंने अपने अनुभव से बताया कि लड़की चाहे कितनी भी उच्च 'पोस्ट' पर काम कर रही हो लेकिन उसके ससुराल को हमेशा यही अपेक्षा होती है कि खाना उनकी बहू ही बनाए। इसके साथ उन्होंने कहा कि समाज बहू को 'फ्री की सर्वेंट' मानता है जो उनके सभी काम करें लेकिन इसके बावजूद भी महिला को वैल्यू नहीं मिलती है। इसके साथ ही उनका यह मानना है कि खाना बनाना एक स्किल है ना कि एक जेंडर रोल। अगर आप अपनी बेटी को खाना सिखा रहे हैं तो यह जिम्मेदारी बनती है कि आप अपने बेटे को भी इस बात की शिक्षा दें। उन्होंने यह भी बताया कि आप चाहे वर्किंग है या नहीं लेकिन शादी के बाद हर एक महिला पर हाउसवाइफ बनने का प्रेशर आता ही है।

बिना कहे ही महिलाओं पर दबाव होता है 

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जालंधर में रहने वाली सोनाक्षी बताती हैं (नाम अनुरोध पर बदल गया है) कि एक महिला की वर्थ हमेशा ही किचन या फिर खाना बनाने के होने के साथ जोड़कर देखी जाती हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी में भी ऐसा ही देखा है और महिला के 'प्रेशर' ऊपर बना ही रहता है। उनका कहना है कि जब कोई महिला घर पर काम करती है तो उसकी कोई फीस नहीं होती है। वह काम बिल्कुल फ्री में होता है लेकिन जब वही से पैसे कमाने की बारी आती है तो यह काम पुरुषों के हाथ में चला जाता है। इसके साथ ही उनका यह मानना है कि लड़कों की कंडीशनिंग ही ऐसे की जाती है कि अगर वह अपनी पत्नी की किसी भी तरीके से मदद करना चाहते हैं तो वह कर ही नहीं पाते हैं क्योंकि उन्हें सिखाया ही नहीं जाता है।

घर की जिम्मेदारियों के कारण करियर छोड़ने का दबाव 

गांव में रहने वाली मनिंदर कौर बताती हैं (नाम अनुरोध पर बदला गया) कि उन्होंने अपने जीवन में देखा कि हमेशा घर पर उस बहू को ज्यादा वैल्यू मिलती है जो खाना बनाती है। घर के बाकी कामों को लेकर इतना जोर नहीं दिया जाता है। हमेशा ही एक लड़की की वर्थ इस बात से डिसाइड की जाती है कि उसे खाना बनाना आता है या नहीं। उन्होंने यह भी बताया कि शादी होने के बाद यह दबाव भी महिला के ऊपर ही होता है कि वह सास-ससुर की देखभाल करे। इसके लिए चाहे उसे अपना करियर ही छोड़ना क्यों ना पड़े।

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