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आज के समय में तकनीकी बच्चों के जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी जब तक ही एक प्रबल भूमिका निभाती हैं जब तक वह बच्चों को नई ऊर्जा के साथ जीना और बेहतर बनना सिखाएं। आज के समय में यह देखना सबसे बड़ा सवाल हैं कि कहीं बच्चा टेक्नोलोजी के दबाव में तो नहीं? टेक्नोलॉजी जितना तेजी से काम करती हैं, यह उतना ही गहरा प्रश्न उठाती हैं बच्चे पर कि क्या मैं इतना तेज हूँ और हर समय टेक्नोलॉजी की आदत भी उन्हें कमजोर और उस पर निर्भर बना सकती हैं। ऐसे में यह समझना कि डिजिटल एक सपोर्ट हैं या बोझ?
डिजिटल सपोर्ट या मानसिक बोझ? पैरंट्स कैसे बनाएं बच्चों को ऑनलाइन दुनिया में सशक्त
डिजिटल सपोर्ट या मानसिक बोझ?
आज के समय में टेक्नोलोजी सिर्फ पढ़ाई तक नहीं बल्कि हर स्तर पर मौजूद हैं, वहीं जब बच्चा हर जगह टेक्नोलोजी को देखता हैं तो कही न कही उसका इसका आदि होना और इससे खतरे होना लाजमी बन जाता हैं। तकनीकी जब तक सोचने की क्षमता प्रभावित न करें तब तक वह उपयोगी और सपोर्ट की तरह बनती हैं। लेकिन आज AI के टेक्नोलोजी में प्रवेश के साथ बच्चे छोटे से निर्णय के लिए AI पर निर्भर होने लगे हैं, साथ ही सोशल मीडिया का कूल बनने का दबाव भी उन्हें परेशान कर सकता हैं।
सोशल प्लेटफार्म बच्चों को बहुत निगरानी से देखते हैं कही बार बच्चे साइबरबुलिंग का शिकार होते हैं और टेक्नॉलाजी उनका बहुत निजी डेटा सेव कर रही होती हैं, यह मालूम नहीं होता ऐसे में टेक्नोलोजी एक सपोर्ट नहीं बोझ बन जाती हैं, क्योंकि यह बच्चे को उड़ने की जगह बच्चे को संकुचित कर रही हैं। ऐसे में सवाल हैं कि माता पिता ऐसे में क्या भूमिका निभाएं जो बच्चों को एमपावर करें न कि बेचैन।
पैरंट्स कैसे बनाएं बच्चों को ऑनलाइन दुनिया में सशक्त
पैरंट्स बच्चों को टेक्नोलोजी के सही प्रयोग के साथ यह भी बताएं कि कब उसका प्रयोग नहीं करना हैं, और क्यों नहीं करना हैं, इससे बच्चा मजबूत होने के साथ साथ यह भी समझेगा कि टेक्नोलोजी की सीमाएं क्या हैं। अक्सर बच्चे आपसी दबाव में आकर भी टेक्नोलोजी की मांग और दिखावा करने लगते हैं ऐसे में पेरेंट्स उन्हें गाइड करे न कि निगरानी क्योंकि सही मार्गदर्शन बच्चों को मजबूत करता हैं। लेकिन साथ ही पेटेंट्स कुछ टिप्स अपना सकते हैं, जो बच्चों को सशक्त बनाएगा न कि कमजोर
1. संवाद को बढ़ावा दें ( Encourage Communication )
बच्चों से बात करना कि वह कैसा महसूस कर रहे हैं, उनके जीवन में क्या चल रहा हैं, और वह क्या सोचते हैं , यह उन्हें स्वयं को समझने और महसूस करने में मदद करेगा और साथ ही उन्हें broader नजरिया देगा जहां वे वास्तविकता से जुड़ कर खुद को देख और समझ पाएंगे।
2. साझा डिजिटल अनुभव
पेटेंट्स Digital Parenting के समय में बच्चे के साथ बैठकर गेम खेलना या उन्हें अपने डिजिटल दुनिया के अनुभव बताना काफी अच्छा साबित होता हैं, क्योंकि इससे बच्चे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
3. नियम नहीं, समझदारी बनाएं
बच्चों पर डिजिटल दुनिया को कैसे प्रयोग करें इसके नियम थोपने की जगह उन्हें समझदारी से निर्णय लेना सीखने दें। नियम थोपने से वे घुटन महसूस कर सकते हैं लेकिन जब समझदारी से समझाना और निर्णय लेने को कहा जाएं वे अपना विवेक भी लगाते हैं जो उन्हें विस्तार से समझने भी देता हैं।
4 स्वयं उदाहरण बने
Children and Digital Era में बच्चे जो देखते हैं उसका सीधा प्रभाव उन पर होता हैं। ऐसे में आवश्यक हैं कि पेरेंट्स वह करें जो बच्चे को सही राह बताएं, उन्हें सही समझने और सही निर्णय लेने में मदद करें।
5. डिजिटल डिटॉक्स को अपनाएं (Digital Detox)
परिवार के साथ "नो डिजिटल टाइम"तय करें साथ ही डिनर के समय नो स्क्रीन और अपने दिल की बात ऐसे टैगलाइन बनाएं और उन्हें जुड़ने को कहें। बच्चों को ऐसे टास्क बहुत दिलचस्प लगते हैं साथ ही वे उससे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
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