Parenting Tips: बच्चों के लिए डिजिटल कंटेंट देखने की बाउंड्रीज़ कैसे तय करें?

पेरेंट्स की सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि बच्चों तक सही कंटेंट कैसे पहुंचे और उनका स्क्रीन टाइम कैसे कंट्रोल किया जाए। क्योंकि ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों की मेंटल हेल्थ, नींद और फोकस पर बुरा असर डाल सकता है।

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Rajveer Kaur
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Screen Time Of Kids

Photograph: (File Image )

आज के डिजिटल युग में बच्चों को स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखना लगभग असंभव है। पढ़ाई, एंटरटेनमेंट या रोज़मर्रा की छोटी-सी जरूरत हो, हर जगह इंटरनेट पर डिपेंडेंसी बढ़ चुकी है। ऐसे में पेरेंट्स की सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि बच्चों तक सही कंटेंट कैसे पहुंचे और उनका स्क्रीन टाइम कैसे कंट्रोल किया जाए। क्योंकि ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों की मेंटल हेल्थ, नींद और फोकस पर बुरा असर डाल सकता है।

बच्चों के लिए डिजिटल कंटेंट देखने की बाउंड्रीज़ कैसे तय करें?

सही कंटेंट चुनना

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बच्चों के लिए किड्स-फ्रेंडली कंटेंट देखना बेहद जरूरी है। पेरेंट्स को निगरानी रखनी चाहिए कि बच्चा क्या देख रहा है और क्या वह उसकी उम्र के मुताबिक सही है। अगर बच्चा अकेले स्क्रीन देखना चाहता है, तो पेरेंट्स को उसके लिए पहले से अप्रोप्रियेट कंटेंट सेट करना चाहिए और ऐप रिस्ट्रिक्शंस लगानी चाहिए।

रोल मॉडल बनें

बच्चे वही सीखते हैं जो वे अपने आसपास देखते हैं। अगर पेरेंट्स लगातार फोन स्क्रॉल करते रहेंगे या टीवी देखते रहेंगे तो बच्चे भी वही आदत अपनाएंगे। इसलिए पेरेंट्स को खुद भी स्क्रीन टाइम लिमिट करना चाहिए। साथ ही बच्चों के साथ ऑफलाइन एक्टिविटीज जैसे गेम्स, कहानियाँ या क्रिएटिव वर्क करना चाहिए।

स्क्रीन टाइम के नियम बनाएं

बच्चों के लिए डेली स्क्रीन टाइम फिक्स होना चाहिए। पढ़ाई, एंटरटेनमेंट और गेमिंग के लिए समय अलग-अलग तय करें। छोटे बच्चों को 1–2 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम न दें। इसके अलावा खाना खाते समय और सोने से पहले मोबाइल बिल्कुल न दें।

क्रिटिकल थिंकिंग डेवलप करें

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बच्चों को यह समझाना जरूरी है कि स्क्रीन पर दिखने वाली हर चीज सच नहीं होती। उनसे सवाल पूछें—“तुम्हें इससे क्या सीख मिली?” या “इस बारे में तुम्हारा क्या विचार है?”। धीरे-धीरे उन्हें फेक न्यूज़ और टेक्नोलॉजी की बेसिक जानकारी दें। इससे उनकी सोचने और समझने की क्षमता बढ़ेगी।

बाउंड्रीज़ को समझाना

जब आप बच्चों को स्क्रीन टाइम लिमिट करते हैं तो वे अक्सर तुलना करेंगे कि “मेरे दोस्त ज्यादा फोन देखते हैं, उनके पेरेंट्स कुछ नहीं कहते।” ऐसे में गुस्सा करने की बजाय उन्हें समझाएँ कि ज्यादा स्क्रीन टाइम उनकी हेल्थ, सेफ्टी और फोकस के लिए हानिकारक है। बच्चों की पसंद को भी सुनें, लेकिन गलत चीजों पर धीरे-धीरे गाइड करें। जब बच्चे और पेरेंट्स के बीच भरोसा बनेगा तो वे समझने लगेंगे कि ये सीमाएँ उनकी भलाई के लिए ही हैं।