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Why It's Important to Celebrate Skin Tones, Textures, and Traditions, Understanding the Changing Standards of Beauty: सदियों से सुंदरता की परिभाषा कुछ तय मानकों में कैद रही है, गोरी त्वचा, चिकनी बनावट, पतला शरीर और सीधी बालों की धारणा ने न जाने कितनी महिलाओं और पुरुषों को खुद से असंतुष्ट कर दिया। लेकिन अब समय बदल रहा है। समाज में सुंदरता को लेकर जो एकरूपता थी, वह धीरे-धीरे टूट रही है और विविधता को स्वीकार किया जाने लगा है। अब सुंदरता को त्वचा के रंग, बनावट या किसी एक रूप में नहीं बांधा जा रहा है, बल्कि इसमें समावेशिता (Inclusivity) का भाव जुड़ गया है।
Inclusivity in Beauty: त्वचा के रंग, बनावट और परंपराओं का उत्सव क्यों ज़रूरी है? जानें सुंदरता के बदलते मापदंड
सुंदरता का नया नजरिया
आज लोग समझने लगे हैं कि हर त्वचा का रंग और बनावट खास होती है। गोरेपन को ही सुंदरता मानने की सोच अब बदल रही है। सांवली और गेहूंआ त्वचा को भी आत्मविश्वास के साथ अपनाया जा रहा है। पहले झाइयाँ, पिगमेंटेशन और दाग-धब्बों को छिपाया जाता था, लेकिन अब इन्हें भी प्राकृतिक सौंदर्य का हिस्सा माना जा रहा है। सोशल मीडिया पर कई इंफ्लुएंसर बिना मेकअप के अपनी असली तस्वीरें साझा कर रहे हैं, जो पारंपरिक सुंदरता की सोच को चुनौती दे रही हैं।
सांस्कृतिक सुंदरता की पहचान
हर क्षेत्र की अपनी अलग सांस्कृतिक सुंदरता होती है, कहीं नथ, कहीं मोटी चूड़ियाँ या बिंदी। भारतीय सुंदरता परंपराओं से जुड़ी रही है। आज की युवा पीढ़ी इन परंपराओं को गर्व से अपना रही है। ट्रेडिशनल टैटू हो या बालों की प्राकृतिक बनावट, अब इन्हें सम्मान के साथ दिखाया जा रहा है।
ब्यूटी और फैशन का बदलता नजरिया
पहले ब्यूटी प्रोडक्ट्स सिर्फ एक जैसे स्किन टोन और टाइप के लिए बनाए जाते थे। अब कंपनियाँ हर रंग और त्वचा के हिसाब से फाउंडेशन, स्किन केयर और हेयर प्रोडक्ट्स ला रही हैं। फैशन ब्रांड्स भी अब अलग-अलग बॉडी टाइप्स और रंगों वाले मॉडल्स को मौका दे रहे हैं, जिससे हर कोई खुद को मंच पर देख सके।
खुद को अपनाने से बढ़ता आत्मविश्वास
जब कोई अपने रंग, बनावट या परंपरा को गर्व से अपनाता है, तो न सिर्फ उसका आत्मविश्वास बढ़ता है, बल्कि वह दूसरों के लिए भी मिसाल बनता है। यह समावेशी सोच एक ऐसे समाज की नींव रखती है जहाँ हर इंसान खुद को वैसे ही स्वीकार कर सके जैसा वह है।