5 Signs Of Self-Gaslighting: सेल्फ-गैसलाइटिंग एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति खुद की भावनाओं, विचारों और अनुभवों को अवैध मानता है। यह एक प्रकार का आत्म-प्रवंचना है जिसमें व्यक्ति खुद को धोखा देने लगता है। यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है और आत्म-सम्मान को प्रभावित कर सकता है। आत्म-धोखाधड़ी से बचने के लिए अपने आप को और अपनी भावनाओं को स्वीकार करें और उन्हें महत्व दें।
Self-Gaslighting के 5 संकेत जो आपको जानने चाहिए
1. अपनी भावनाओं को नजरअंदाज करना
आत्म-धोखाधड़ी का सबसे पहला संकेत यह है कि आप अपनी भावनाओं को नजरअंदाज या अमान्य कर देते हैं। जब आप किसी स्थिति में दुखी, नाराज या परेशान महसूस करते हैं, तो आप खुद को समझाने लगते हैं कि आपकी भावनाएं महत्वपूर्ण नहीं हैं। आप सोचते हैं कि शायद आप ही गलत हैं और आपकी भावनाएं जायज नहीं हैं। इस प्रक्रिया में, आप अपनी भावनाओं को दबा देते हैं और खुद को ही समझाने लगते हैं कि आपको ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए।
2. हमेशा खुद को दोष देना
आत्म-धोखाधड़ीका दूसरा संकेत है कि आप हमेशा किसी भी समस्या या गलती के लिए खुद को दोषी मानते हैं। चाहे स्थिति कोई भी हो, आप खुद को ही जिम्मेदार ठहराते हैं। आप सोचते हैं कि यदि आप ने कुछ अलग किया होता, तो शायद सब ठीक होता। यह सोच आपको आत्म-सम्मान से दूर ले जाती है और आपके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है।
3. अपनी भावनाओं और विचारों को दबाना
आत्म-धोखाधड़ी का तीसरा संकेत यह है कि आप अपनी भावनाओं और विचारों को लगातार दबाते रहते हैं। आप सोचते हैं कि आपकी भावनाएं और विचार महत्वपूर्ण नहीं हैं या उन्हें व्यक्त करने से अन्य लोग आपको कमजोर या अयोग्य समझेंगे। इस कारण आप अपने अंदर की बातें और भावनाएं छुपा कर रखते हैं, जो अंततः आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं।
4. यह मानना कि आप छोटी बातों को बड़ा बना रहे हैं
आत्म-धोखाधड़ी का चौथा संकेत यह है कि आप अपनी समस्याओं और चिंताओं को हमेशा छोटा मानते हैं। आप सोचते हैं कि आप छोटी-छोटी बातों को बहुत बड़ा बना रहे हैं और इसलिए आपकी चिंताएं जायज नहीं हैं। आप खुद को यह समझाते हैं कि आप बेवजह परेशान हो रहे हैं, जबकि वास्तव में आपकी चिंताएं और समस्याएं वास्तविक होती हैं और उनका समाधान जरूरी होता है।
5. अपने निर्णयों पर विश्वास न करना
आत्म-धोखाधड़ी का पांचवा संकेत यह है कि आप अपने निर्णयों पर विश्वास नहीं करते और अपनी यादों पर शक करते हैं। आप खुद को ही समझाने लगते हैं कि शायद आपने कुछ गलत याद किया है या आपका निर्णय सही नहीं है। यह सोच आपको आत्म-संदेह से भर देती है और आपके आत्म-सम्मान को कमजोर करती है।