77 Years of India's Independence, but When Will Women Be Free from Their Shackles? 15 अगस्त 1947 को भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन क्या देश की महिलाओं को आजादी की सही परिभाषा आज तक मिल पाई है? भारत की आधी आबादी यानी महिलाएं आज भी कई सामाजिक, आर्थिक और मानसिक बंधनों में जकड़ी हुई हैं। आधुनिकता की चकाचौंध में भले ही भारत विश्व मंच पर नई ऊँचाइयाँ छू रहा हो, लेकिन सवाल उठता है कि महिलाओं को वास्तविक स्वतंत्रता कब मिलेगी?
देश की आजादी के 77 वर्ष पूरे, लेकिन भारत की महिलाओं को बंधनों से आजादी कब?
1. समान अधिकारों की कमी
संविधान ने महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता को स्थापित किया है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। महिलाएं आज भी सामाजिक और पारिवारिक सीमाओं में बंधी रहती हैं। कामकाजी महिलाओं को बराबर वेतन, प्रमोशन और अन्य अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। घर की चार दीवारों के अंदर महिलाओं को उनके सपनों को पूरा करने की आजादी नहीं मिल पाती।
2. शारीरिक सुरक्षा का अभाव
महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती है उनकी शारीरिक सुरक्षा। चाहे दिन हो या रात, भारत में महिलाएं सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और बलात्कार जैसे अपराधों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आई है। इस समस्या का समाधान केवल सख्त कानून से नहीं, बल्कि समाज के मानसिकता में बदलाव लाकर किया जा सकता है।
3. शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता की कमी
आज भी कई इलाकों में लड़कियों को उचित शिक्षा नहीं मिल पाती है। आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना किसी भी व्यक्ति की आजादी का पहला कदम है, लेकिन महिलाओं को इस आजादी तक पहुंचने के लिए परिवार और समाज की सीमाओं से लड़ना पड़ता है। विवाह के बाद महिलाओं की शिक्षा और करियर को सीमित कर दिया जाता है।
4. सामाजिक मानदंड और परंपराएं
भारतीय समाज में अभी भी महिलाओं के लिए कई परंपराएं और मानदंड बनाए गए हैं जो उन्हें बंधन में बांधते हैं। चाहे विवाह से पहले उनके पहनावे पर नियंत्रण हो या फिर पति के नाम से पहचाना जाना, महिलाएं अपनी खुद की पहचान के लिए संघर्ष करती रहती हैं। सामाजिक दबाव उन्हें अपनी पसंद और अधिकारों से वंचित कर देता है।
5. स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकार
महिलाओं के स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकारों पर अभी भी समाज में खुलकर बात नहीं होती है। परिवार नियोजन, गर्भपात और मासिक धर्म जैसे मुद्दे अभी भी महिलाओं के लिए वर्जित माने जाते हैं। महिलाएं अपने स्वास्थ्य और शरीर के बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता से वंचित रहती हैं, जो उनकी असली आजादी का अभाव दिखाता है।
77 सालों बाद भी भारत की महिलाएं असली स्वतंत्रता का अनुभव करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। समाज की मानसिकता, कानून और परंपराओं में बदलाव की जरूरत है ताकि महिलाएं असली आजादी का अनुभव कर सकें। केवल तभी हम यह कह पाएंगे कि भारत की महिलाओं को भी सच्चे मायनों में स्वतंत्रता मिल पाई है।