Why Freedom Of Women Bothers To Society: महिलाओं की आजादी किसी को भी पसंद नहीं आती है। हर कोई उन्हें घर की चार-दीवारी में कैद करना चाहता है। महिलाओं की कैद के तरीके अलग हो सकते हैं लेकिन सबका उद्देश्य एक ही है, उन्हें कंट्रोल में रखना जैसे दुपट्टे, बुर्का, ढके हुए कपड़े, बंद जुबान आदि। जब किसी लड़की का रिश्ता किया जाता है तो लड़के वालों की तरफ से यह कहा जाता है कि हमें लड़की 'गाय' चाहिए जिसका मतलब यह है कि उन्हें एक ऐसी गूंगी लड़की का रिश्ता चाहिए जो गलत हो या सही लेकिन उसके खिलाफ मत बोले। दूसरे के सामने अपना ओपिनियन मत रखें। उसे जैसा कहा जाए वैसा ही करें। हर बात पर उसका जवाब हां ही होना चाहिए। जब ऐसी मानसिकता भरे समाज में लड़कियां खुलकर जीने की बात करती है तो इस बात को मजाक में ले लिया जाता है या तो लड़कियों को कैद करने की कोशिश की जाती है। आइये जानते हैं कि क्यों लड़कियों की आजादी समाज को परेशानी देती है?
Women's Freedom: औरत का खुलकर जीना समाज को क्यों परेशान करता है?
हमारे समाज में औरतों की आजादी की लड़ाई बहुत लंबी है। आज भी औरतें अपने हकों की लड़ाई के लिए लड़ रही है चाहे समान वेतन, मेंस्ट्रूअल लीव, स्टीरियोटाइप थिंकिंग या अपनी पसंद के कपड़े पहनना हो। इन सभी के लिए भी अभी भी समाज नॉर्मलाइज नहीं हुआ है। एक लड़की को 'जज' करने के लिए उसके कपड़े ही काफी है। समाज उसके चरित्र पर सवाल उठाने लगा पड़ता है लेकिन ऐसा हक उन्हें किसने दिया है? यह किसी की भी पर्सनल चॉइस है कि उसने कैसे रहना है, कैसे कपड़े पहनने हैं या उसके फ्रेंड्स मेल होंगे या फीमेल। लड़कियां रात को बाहर काम करती है वह भी सेफ नहीं है। जिस कारण यह कहा जाता है कि घर पर रहो या फिर दिन की ड्यूटी करो लेकिन उन लोगों पर कोई पाबंदी नहीं होती है जो लड़कियों के साथ दुष्कर्म करते हैं, कारण हमारा समाज पुरुष प्रधान है। यहां पर हर बात की रोक महिलाओं पर लगाई जाती है, कुछ गलत होने पर भी दोषी महिलाएं ही बनती है चाहे उनके साथ अपराध हुआ है।
ऐसी मानसिकता वाले समाज में जब एक लड़की अपने पंख फैलाकर उड़ना चाहती है वह वो करना चाहती है जो उसका मन चाहता है तब समाज को बहुत आपत्ति होती है। उन्हें औरतों का जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना अच्छा नहीं लगता है क्योंकि उन्हें इसकी आदत नहीं है। इसलिए कई बार कुछ पुरुषों की यह बात एगो पर भी आ जाती है तब वह ऐसी औरतें को बुरा भला कहते हैं। उनके बारे में गलत बातें बनाते हैं। उनके चरित्र पर सवाल उठाते हैं जिससे उनके मन को शांति मिलती है और फिर वह अपने घर की औरतों को यह सलाह देते हैं कि ऐसी औरतों की तरह मत बन जाना यह औरतें तो वैसी होती है अब यहां पर 'वैसी' का मतलब क्या है?
अगर हम औरतों की आजादी चाहते हैं तो उसके लिए हमें अपने मन को भी आजाद करना पड़ेगा। हमें अपनी सोच का दायरा बड़ा करना होगा कि जिसमें हम औरतों के ओपिनियन शेयर करने पर उसे सहन कर सके। कॉरपोरेट वर्ल्ड या करियर की दुनिया में अगर औरतें बॉस है तो हम उनका बॉस होना सहन कर सक न कि उनके ऊपर लांछन लगाए। जब एक औरत कंधे से कंधा मिलाकर चलेगी तब हमें उसे पर गर्व महसूस करना पड़ेगा। हमें अपनी बेटियों को ओपिनियन बनाना पड़ेगा कि वह अपना विचार देने में कभी पीछे मत हटे।