हमारे समाज में सिर्फ़ वर्किंग औरत उसे माना जाता है जो ऑफ़िस या बड़ी बड़ी कंपनी में काम करती हैं लेकिन घर पर काम करने वाली औरतें या फिर जो हमारी घरों हेल्पर आती उन्हें वर्किंग नहीं माना जाता है। हमारे समाज में डबल स्टैंडर्ड्ज़ बहुत है।
Working Moms/क्या घर में काम करने वाली महिलाएँ वर्किंग नहीं होती?
घर पर रहने वाली औरत को वर्किंग विमिन नहीं माना जाता है। वह औरत हमारे लिए 365 दिन काम करती हैं बिना किसी छुट्टी है। उसके लिए कोई मेडिकल लीव नहीं है। बीमार हो चाहे ठीक काम तो करना ही पड़ेगा। उसके लिए तो कोई रविवार की भी छुट्टी नहीं है।
अपने करीयर को छोड़ देती है औरतें
हमारे समाज में औरतें घर सम्भालने के लिए या फिर बच्चों के लिए अपने करीयर को छोड़ देती है। बहुत सी औरतें सिर्फ़ इसलिए नहीं कुछ कर पाती है क्योंकि उन पर अकेले बच्चे सम्भालने का प्रेशर होता है।अगर कोई औरत शादी के बाद या बच्चे होने के बाद अपना करीयर नहीं छोड़ना चाहती है उस पर घर सम्भालने का प्रेशर डाला जाता है। उसे फ़ोर्स किया जाता है।समाज के अनुसार औरत की प्राथमिकता सिर्फ़ बच्चे, परिवार और पति होना चाहिए। इस आगे जो सोचती है वह औरत अच्छी नहीं है। उसके बारे में बहुत सारी बातें बनाई जाती हैं।
जॉब करने वाली औरतें भी जी रही संघर्ष की ज़िंदगी
जो औरतें जॉब करती हैं वे संघर्ष भरी ज़िंदगी जी रही होती है। उन्हें पहले अपने घर का काम करना पड़ता है फिर आकर भी करना पड़ता है। उन पर भी पर्फ़ेक्ट बनने का प्रेशर बनाया जाता है। हमारे समाज एक स्त्री का हर एक चीज़ में पर्फ़ेक्ट होना ज़रूरी है?
समाज चाहता है कि औरत जॉब भी करे लेकिन अपने परिवार का भी अच्छे से ध्यान रखे। सुबह घर का काम करके ऑफ़िस आए और शाम को घर आकर भी काम करे। अगर वे एक माँ है तो अपने बच्चे को भी प्रॉपर टाइम दे और एक पत्नी का फ़र्ज़ भी निभाए। औरत होने कि मतलब यही है के वह सब का ध्यान रखे लेकिन उसका कोई ना रखे।
दोनों को सम्मान मानने की ज़रूरत
हमें कोई भी औरत चाहे वह घर पे काम करती हैं ता बाहर दोनों को वर्किंग मानना चाहिए। ऐसा ज़रूरी नहीं जो व्यक्ति घर से सूट पहनकर, टिफ़्न लेकर बाहर जाकर बड़ी बड़ी कंपनी में काम कर रहा है सिर्फ़ वह ही वर्किंग है। हर वह व्यक्ति वर्किंग जो कोई भी काम कर रहा है।