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Importance Of Consent In Intimate Relations: इंटिमेसी हर रिश्ते का एक महत्वपूर्ण पहलू होता है। यह सिर्फ शारीरिक संबंध तक सीमित नहीं होता, बल्कि मेंटल, इमोशनल और नैतिक पहलुओं से भी जुड़ा होता है। आज के समाज में जहां रिश्तों की परिभाषा तेजी से बदल रही है, वहीं सहमति (Consent) की अवधारणा को समझना और उसे मानना अत्यंत आवश्यक हो गया है। सहमति का अर्थ है कि दोनों व्यक्ति अपनी मर्जी से, बिना किसी दबाव या धोखे के, किसी भी शारीरिक संबंध के लिए तैयार हों। यह न केवल एक नैतिक आवश्यकता है, बल्कि कानूनी और सामाजिक दृष्टि से भी अनिवार्य है।
इंटिमेट रिलेशन के लिए सहमति क्यों आवश्यक है?
सहमति केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि रिश्ते की बुनियाद होती है। जब दो लोग परस्पर सहमति से किसी इंटिमेट रिलेशन में जाते हैं, तो उनके बीच विश्वास और सम्मान की भावना मजबूत होती है। किसी भी प्रकार की ज़बरदस्ती, धोखा या दबाव रिश्ते को अस्थिर बना सकता है और मानसिक तनाव का कारण बन सकता है। किसी भी संबंध में पारदर्शिता और एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान बेहद जरूरी होता है, क्योंकि जबरदस्ती या दबाव में बना रिश्ता न सिर्फ भावनात्मक रूप से हानिकारक होता है, बल्कि यह मेंटली भी गंभीर प्रभाव डालता है।
भारत सहित दुनिया के कई देशों में सहमति के बिना यौन संबंध स्थापित करना अपराध माना जाता है। भारतीय कानून में 'बलात्कार' (Section 375, IPC) को एक गंभीर अपराध माना गया है, जहां सहमति की अनुपस्थिति को महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। इसलिए, सहमति न केवल व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा करती है, बल्कि कानूनी जटिलताओं से भी बचाती है। यह समझना आवश्यक है कि सहमति एक बार देने के बाद हमेशा के लिए मान्य नहीं होती, इसे किसी भी समय वापस लिया जा सकता है। किसी भी रिश्ते में दोनों पक्षों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता का सम्मान किया जाना चाहिए।
कई बार लोग यह सोचते हैं कि अगर किसी ने एक बार सहमति दे दी, तो वह हमेशा के लिए मान्य होती है। लेकिन यह गलत सोच है। सहमति किसी भी समय बदली जा सकती है और इसे हर बार सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अगर कोई असहज महसूस करता है, तो उसे अधिकार है कि वह मना कर सके। कोई भी रिश्ता तभी सफल होता है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे की भावनाओं, इच्छाओं और सीमाओं का सम्मान करें। सहमति का अभाव न केवल भावनात्मक और मानसिक कष्ट देता है, बल्कि गंभीर परिणाम भी ला सकता है।
इंटिमेट रिलेशन में सहमति न केवल एक नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि एक कानूनी और सामाजिक अनिवार्यता भी है। यह किसी भी स्वस्थ रिश्ते की आधारशिला होती है और इससे दोनों व्यक्तियों का आत्म-सम्मान बना रहता है। समाज को यह समझना होगा कि सहमति किसी पर एहसान नहीं, बल्कि हर व्यक्ति का अधिकार है। जब हम एक जिम्मेदार समाज की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो सहमति को एक अनिवार्य मूल्य के रूप में अपनाना ही सही दिशा होगी।