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देखा गया है कि बच्चों द्वारा सेक्स से जुड़े सवाल पूछे जाने पर माता-पिता अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं या उनके सवालों के जवाब की ज़िम्मेदारी दूसरे-तीसरे पर डाल देते हैं। माता-पिता को लगता है कि क्या इस बारे में बात करना ठीक रहेगा क्योंकि बच्चे काफी छोटी उम्र से इस बारे में उत्सुक रहते हैं।
तो आइए जानते हैं कि कैसे दें बच्चों को सेक्स एजुकेशन
सबसे पहले आप इस बात को दिमाग से निकाल दें कि सेक्स के बारे में बात करना ठीक नहीं रहेगा। बिल्कुल यह बात करने की चीज़ है। ऐसा हो सकता है कि बच्चों द्वारा इस तरह के सवाल पूछे जाना थोड़ा अजीब लग सकता है पर लगभग हर माता-पिता को ऐसे सवालों का सामना करना ही पड़ता है।
और तो और बच्चों में चीज़ों के बारे में जानने की बहुत जिज्ञासा(curiosity) होती है, इसलिए ऐसे सवाल वे उठायेंगे ही। ऐसे में यह आपका फ़र्ज़ बनता है कि उनके सवालों का जवाब सही ढंग से देने की कोशिश करें ना की उन्हें डांट-डपट कर चुप कर दें।
यदि आप अपने बच्चों के सेक्स से जुड़े सवालों को इग्नोर करेंगे या उन्हें डांट-डपट कर चुप कराने की कोशिश करेंगे तो उन्हें लग सकता है कि उन्होंने कुछ ग़लत पूछ लिया है या सेक्स कोई बुरी चीज़ है। और फिर वे आगे कभी इस टाॅपिक पर आप से या किसी भी बड़े से बात नहीं करेंगे। इसलिए माता पिता को झिझक से बाहर निकलकर सही जानकारी के साथ अपने बच्चों से बात करनी चाहिये। आप इसे किसी बहुत बड़ी या अनोखी समस्या की तरह न लेते हुए बेहद सामान्य ढंग से लें।
टीवी और इंटरनेट की दुनिया में बच्चों का ऐसी चीज़ों से रूबरू हो जाना आम बात है। ऐसे में सबसे अच्छा तरीक़ा है कि अपनी झिझक को मिटा कर उनसे इन मुद्दों पर बात करें और उन्हें सही व ग़लत, गुड टच और बैड टच की समझ दें।
जो parents इस बारे में बात करना भी चाहते हैं वे इस confusion में रहते हैं कि बच्चों के ऐसे सवालों के जवाब देने की सही उम्र क्या होनी चाहिए? इसकी कोई सही उम्र नहीं होती इसलिए जब से बच्चे सवाल पूछना शुरू करें, तभी से इसकी शुरुआत की जा सकती है।
आमतौर पर 3-4 वर्ष की उम्र में बच्चे अपने प्राइवेट पार्ट के बारे में पूछने लगते हैं, ऐसे में आप उन्हें बताएं कि यह उनके शरीर का एक प्राइवेट अंग है। इस उम्र में उनके लिए इतना ही काफ़ी है। अगर आप इन अंगों को अनदेखा करेंगीं तो आप उनके दिमाग को यह संदेश देते हैं कि इनके बारे में ज़रूर कुछ न कुछ गड़बड़ है, इसलिए बताना जरूरी है।
थोड़ा और बड़े हो जाने पर आपको उन्हें प्राइवेट पार्ट्स की भी समझ देनी चाहिए। उनसे कहें कि उनके प्राइवेट पार्ट्स को सिर्फ़ वे ही छू या देख सकते हैं, अगर कोई और ऐसा करने की कोशिश करे तो तुरंत आकर माता-पिता, टीचर या परिवार के किसी बड़े को बताएं। यदि स्कूल में कोई उनके प्राइवेट पार्ट्स को छूने की कोशिश करे तो टीचर से बताएं।
आजकल जिस तरह छोटे बच्चों के साथ sexual assault की घटनाएं ख़बरों में आती रहती हैं इसलिए हर parents को अपने बच्चों को ‘गुड टच, बैड टच’ के बारे में ज़रूर बताना चाहिए। और एक बात देखी गई है कि ज़्यादातर parents लड़कियों को ही सुरक्षित रखने के बारे में सोचते हैं, पर उन्हें अपनी इस सोच में बदलाव लाना चाहिये और लड़कों को भी जागरूक बनाना चाहिए।
इस उम्र के बच्चों को शरीर के अंगों के सही नाम पता होने चाहिए। साथ ही उन्हें उनके प्राइवेट पार्ट के बारे में भी बताया जाना चाहिये, और गुड टच, बैड टच की जानकारी देनी चाहिये।
लड़की और लड़के के शरीर में अंतर बताना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में उनमें यह जानने की बहुत curiosity होती है। उन्हें pictures, स्लाइड्स दिखाकर इस बारे में जानकारी देनी चाहिए।
इस उम्र के बच्चे अपने शरीर में आने वाले बदलावों को लेकर काफी curious रहते हैं। उन्हें बताएं कि शरीर के अंगों में आ रहे बदलाव बिल्कुल नॉर्मल हैं। लड़कियों को पीरियड्स के बारे में ज़रूर बताएं।
Teenagers को (homosexuality), (masturbation), सेफ़ सेक्स, (contraceptives), STI और (consent) के बारे में जरुर बताना चाहिए।
12 वर्ष की उम्र और पीरियड्स शुरू होने के पहले लड़कियों को इस बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए। इसके लिए माँ को आगे आना चाहिए। वहीं लड़कों को उनके शरीर में आने वाले बदलावों के बारे में बात करने के लिए पिता का रोल जरूरी होता है। इस उम्र में लड़कों और लडकियों को consent के बारे में अच्छी तरह बताया जाना चाहिये।
किशोरावस्था(Teenage) में क़दम रखने वाले बच्चों को homosexuality, हस्तमैथुन (masturbation) पीरियड्स आदि के बारे में जानकारी देना जरूरी होता है। उन्हें सेफ़ सेक्स या STI( sexually transmitted disease) के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती क्योंकि कई बार parents इस बारे में बच्चों को नहीं बताते या उन्हें भी पता नहीं होता।
ऐसे में स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की भूमिका important हो जाती है। आठवीं या नौंवी क्लास के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि इस उम्र (14-15 वर्ष) तक पहुंचते-पहुंचते बच्चों में सेक्स से जुड़ी समझ डेवलप हो चुकी होती है।
15-16 वर्ष की उम्र के बच्चों को सेफ़ सेक्स और contraceptives के बारे में बताना अच्छा साबित होगा और इससे रेप और sexual assault जैसे क्राइम भी कम होंगे।
और पढ़ें: बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के 6 कारण
तो आइए जानते हैं कि कैसे दें बच्चों को सेक्स एजुकेशन
सेक्स के बारे में बच्चों को जरुर बताना चाहिये
सबसे पहले आप इस बात को दिमाग से निकाल दें कि सेक्स के बारे में बात करना ठीक नहीं रहेगा। बिल्कुल यह बात करने की चीज़ है। ऐसा हो सकता है कि बच्चों द्वारा इस तरह के सवाल पूछे जाना थोड़ा अजीब लग सकता है पर लगभग हर माता-पिता को ऐसे सवालों का सामना करना ही पड़ता है।
और तो और बच्चों में चीज़ों के बारे में जानने की बहुत जिज्ञासा(curiosity) होती है, इसलिए ऐसे सवाल वे उठायेंगे ही। ऐसे में यह आपका फ़र्ज़ बनता है कि उनके सवालों का जवाब सही ढंग से देने की कोशिश करें ना की उन्हें डांट-डपट कर चुप कर दें।
बच्चों को डांट कर चुप कराने के बजाय सही ज्ञान दें
यदि आप अपने बच्चों के सेक्स से जुड़े सवालों को इग्नोर करेंगे या उन्हें डांट-डपट कर चुप कराने की कोशिश करेंगे तो उन्हें लग सकता है कि उन्होंने कुछ ग़लत पूछ लिया है या सेक्स कोई बुरी चीज़ है। और फिर वे आगे कभी इस टाॅपिक पर आप से या किसी भी बड़े से बात नहीं करेंगे। इसलिए माता पिता को झिझक से बाहर निकलकर सही जानकारी के साथ अपने बच्चों से बात करनी चाहिये। आप इसे किसी बहुत बड़ी या अनोखी समस्या की तरह न लेते हुए बेहद सामान्य ढंग से लें।
टीवी और इंटरनेट की दुनिया में बच्चों का ऐसी चीज़ों से रूबरू हो जाना आम बात है। ऐसे में सबसे अच्छा तरीक़ा है कि अपनी झिझक को मिटा कर उनसे इन मुद्दों पर बात करें और उन्हें सही व ग़लत, गुड टच और बैड टच की समझ दें।
शुरुआत ऐसे करें
जो parents इस बारे में बात करना भी चाहते हैं वे इस confusion में रहते हैं कि बच्चों के ऐसे सवालों के जवाब देने की सही उम्र क्या होनी चाहिए? इसकी कोई सही उम्र नहीं होती इसलिए जब से बच्चे सवाल पूछना शुरू करें, तभी से इसकी शुरुआत की जा सकती है।
आमतौर पर 3-4 वर्ष की उम्र में बच्चे अपने प्राइवेट पार्ट के बारे में पूछने लगते हैं, ऐसे में आप उन्हें बताएं कि यह उनके शरीर का एक प्राइवेट अंग है। इस उम्र में उनके लिए इतना ही काफ़ी है। अगर आप इन अंगों को अनदेखा करेंगीं तो आप उनके दिमाग को यह संदेश देते हैं कि इनके बारे में ज़रूर कुछ न कुछ गड़बड़ है, इसलिए बताना जरूरी है।
थोड़ा और बड़े हो जाने पर आपको उन्हें प्राइवेट पार्ट्स की भी समझ देनी चाहिए। उनसे कहें कि उनके प्राइवेट पार्ट्स को सिर्फ़ वे ही छू या देख सकते हैं, अगर कोई और ऐसा करने की कोशिश करे तो तुरंत आकर माता-पिता, टीचर या परिवार के किसी बड़े को बताएं। यदि स्कूल में कोई उनके प्राइवेट पार्ट्स को छूने की कोशिश करे तो टीचर से बताएं।
आजकल जिस तरह छोटे बच्चों के साथ sexual assault की घटनाएं ख़बरों में आती रहती हैं इसलिए हर parents को अपने बच्चों को ‘गुड टच, बैड टच’ के बारे में ज़रूर बताना चाहिए। और एक बात देखी गई है कि ज़्यादातर parents लड़कियों को ही सुरक्षित रखने के बारे में सोचते हैं, पर उन्हें अपनी इस सोच में बदलाव लाना चाहिये और लड़कों को भी जागरूक बनाना चाहिए।
किस उम्र के बच्चे को क्या बताएं?
पांच वर्ष की उम्र तक
इस उम्र के बच्चों को शरीर के अंगों के सही नाम पता होने चाहिए। साथ ही उन्हें उनके प्राइवेट पार्ट के बारे में भी बताया जाना चाहिये, और गुड टच, बैड टच की जानकारी देनी चाहिये।
पांच से आठ वर्ष की उम्र तक
लड़की और लड़के के शरीर में अंतर बताना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में उनमें यह जानने की बहुत curiosity होती है। उन्हें pictures, स्लाइड्स दिखाकर इस बारे में जानकारी देनी चाहिए।
नौ से बारह वर्ष की उम्र तक
इस उम्र के बच्चे अपने शरीर में आने वाले बदलावों को लेकर काफी curious रहते हैं। उन्हें बताएं कि शरीर के अंगों में आ रहे बदलाव बिल्कुल नॉर्मल हैं। लड़कियों को पीरियड्स के बारे में ज़रूर बताएं।
बारह वर्ष से बड़े बच्चों को
Teenagers को (homosexuality), (masturbation), सेफ़ सेक्स, (contraceptives), STI और (consent) के बारे में जरुर बताना चाहिए।
स्कूलों में सेक्स एजुकेशन का होना जरूरी है।
12 वर्ष की उम्र और पीरियड्स शुरू होने के पहले लड़कियों को इस बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए। इसके लिए माँ को आगे आना चाहिए। वहीं लड़कों को उनके शरीर में आने वाले बदलावों के बारे में बात करने के लिए पिता का रोल जरूरी होता है। इस उम्र में लड़कों और लडकियों को consent के बारे में अच्छी तरह बताया जाना चाहिये।
किशोरावस्था(Teenage) में क़दम रखने वाले बच्चों को homosexuality, हस्तमैथुन (masturbation) पीरियड्स आदि के बारे में जानकारी देना जरूरी होता है। उन्हें सेफ़ सेक्स या STI( sexually transmitted disease) के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती क्योंकि कई बार parents इस बारे में बच्चों को नहीं बताते या उन्हें भी पता नहीं होता।
ऐसे में स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की भूमिका important हो जाती है। आठवीं या नौंवी क्लास के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि इस उम्र (14-15 वर्ष) तक पहुंचते-पहुंचते बच्चों में सेक्स से जुड़ी समझ डेवलप हो चुकी होती है।
15-16 वर्ष की उम्र के बच्चों को सेफ़ सेक्स और contraceptives के बारे में बताना अच्छा साबित होगा और इससे रेप और sexual assault जैसे क्राइम भी कम होंगे।
और पढ़ें: बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के 6 कारण