Situation Of Indian Women In Blue Coller Job: आपने आसपास जरूर देखा होगा कि जब भी ब्लू कलर जॉब की बात आती है तब यह फील्ड मर्द प्रधान दिखता है क्योंकि पहले महिलाओं को घर से बाहर निकलकर काम करने की आजादी नहीं थी लेकिन अब समय बदल गया है महिलाएं इस क्षेत्र में अब कहीं जाकर दिखाई देने लगी हैं। आज की महिला पुरुषों से कम नहीं है। सवाल यह है कि क्या महिलाओं को ब्लू कॉलर जॉब करनी चाहिए? आइये इसका जवाब ढूंढते हैं-
भारती महिलाओं की Blue Coller Job में क्या स्थिति?
खुद की चॉइस
'ब्लू कॉलर जॉब' महिला की अपनी पसंद है। अगर महिलाएं बाकी क्षेत्रों में अच्छा कर सकती है तो ब्लू कॉलर जॉब करने में क्या बुराई है। इसमें कोई भी शर्म की बात नहीं है। यह महिला की निजी पसंद हो सकती है कि उसे किस तरीके की जॉब करनी है। कई बार यह मजबूरी भी होती है जैसे कुछ कारणों से अगर पढ़ नहीं पाई और परिवार की जिम्मेदारियां उठाने के लिए औरतें ऐसी जॉब्स करने लग जाती है। इसमें महिलाओं को अलग नजरिए से देखने की कोई जरूरत नहीं है। जैसे पुरुष अपने परिवार को पालने के लिए ऐसी जॉब्स करते हैं तो महिलाएं भी कर सकती हैं।
कोई जेंडर रोल स्पेसिफिक नहीं
यह भी बिल्कुल गलत धारणा है कि ब्लू कलर जॉब सिर्फ आदमी कर सकते हैं। समाज में ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं जो ब्लू कलर जॉब करती है। 'ओला इलेक्ट्रिक फ्यूचर फैक्ट्री' तमिलनाडु में 100% महिला वर्कफोर्स काम करती है। इसके साथ ही 'Ashok Leyland' द्वारा तमिलनाडु में Hosur फैसिलिटी में 'ऑल वुमेन प्रोडक्शन लाइन' को लागू किया गया है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
"द पल्स ऑफ़ इंडिया ब्लू कलर वर्कफोर्स' नाम की एक रिपोर्ट में यह सामने आया था कि 10 में से 9 में भारतीय महिलाएं मानती हैं कि उन्हें समान आय मिलती है। इस रिपोर्ट में जेन जी और मिलेनियल के जवाब में थोड़ा फर्क मिला 18 से 24 साल के मुकाबले, 25 से 34 साल के कर्मचारियों का कहना था अगर उन्हें सामान्य आय नहीं मिलेगी वे जॉब छोड़ देंगे।
शौक नहीं मजबूरी
जरुरी नहीं हर बार महिला ब्लू कालर जॉब शौंक से ही करें। कई बार ऐसा होता है कि घर के मर्द की मृत्यु हो जाने या बीमार पड़ने पर महिला को पति की जगह उसका काम देखना पड़ता है। बहुत बार ऐसा देखा गया है कि महिला बस/ट्रक चलाती हैं, ट्रैक्टर लेकर खेतों में काम करती हैं या फिर ऑटो रिक्शा भी चलाती है।