Ways To End Gender Roles In Real Life: जेंडर रोल का हमारे समाज में बहुत ज्यादा बोलबाला है। हर काम जेंडर के हिसाब से किया जाता है जो हम सब को रोक कर रख देता है। यह रूल हम सब के द्वारा ही बनाए गए हैं। जेंडर रोल से महिलाओं के उपर बहुत सारी रोक लग जाती है लेकिन पुरषों को काफी हद तक आजादी है। औरत की बात की जाए तो उसके जेंडर रोल में घर की चार दिवारी में रहना, खाना पकाना, बच्चों को संभालना, शादी करना, बड़ों की बात मानना, घर के सारे काम करना आदि सब शामिल है। वहीं मर्द बाहर जाकर कमाई करेगा, जैसे मर्जी कपड़े पहन सकता है, किसी से भी बात कर सकता है उसके जेंडर को किसी भी तरह की कोई मनाही नहीं है। आइए जानते हैं कि कैसे जेंडर रोल्स को आप अपनी जिंदगी में से खत्म कर सकते हैं-
Gender Roles: कैसे हम अपनी जिंदगी में इन्हें खत्म कर सकते हैं
घर के काम
घर में सभी कामों को जेंडर के हिसाब से करने की बजाय अगर दोनों जेंडर मिलकर करें तो इन जेंडर रोल्स को खत्म किया जा सकता है। अगर एक खाना बना रहा है तो दूसरा बर्तन धो सकता है। यह ऐसे भी हो सकता है कि एक घर की सफाई कर रहा है तो दूसरा कपड़े धो सकता है। इसमें दोनों को ही कोई शर्म नहीं होनी चाहिए। यह जरूर समझना चाहिए कि किसी एक जेंडर के अकेले की जिम्मेदारी घर का काम करना नहीं है। यह सब का घर है अगर सब जो भी काम दिखता है उसे करने लग जाए तो बच्चे को भी वही आदत पड़ेगी।
मेकअप
मेकअप सिर्फ महिलाएं नहीं कर सकती है, पुरुष भी कर सकते हैं। इसमें जेंडर का कोई रोल नहीं है। यह सब स्टीरियोटाइप सोच का नतीजा है। अगर पुरुष का मन करता है कि वह मेकअप करें, इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हम सब छोटी सोच का शिकार हो चुके हैं जिसमें हमें लगता है कि सिर्फ महिलाएं ही मेकअप कर सकती है। मेकअप होना किसी पुरष को महिला नहीं बनाता है या वो कमजोर नहीं लगता है।
बच्चों का पालन-पोषण
बच्चों की परवरिश और उनका पालन पोषण सिर्फ पुरुष और महिलाओं का काम नहीं है। माँ-बाप दोनों की ज़िम्मेदारी है अगर बच्चे का डायपर बदलना है तो पिता भी का सकता है। अगर माँ ऑफिस का काम रही तो पिता भी बच्चे को खाना बनाकर खिला सकता है। हम पुरषों को यह करने के लिए कहते नहीं है या मन में पहले ही सोच चुके हैं कि यह महिलाओं की जिम्मेदारी है जिस कारण हम उनसे यह बात कहते भी नहीं है। यहां पर आप गलती कर रहे हैं। जब बच्चा पैदा होता है तब से ही पिता को भी उनकी परवरिश में योगदान देना चाहिए और मां को भी यह बात समझनी चाहिए कि यह बच्चा अकेले उसका नहीं है।
कमाई
घर के लिए पैसे कमाना, अकेले मर्दों की जिम्मेदारी नहीं है। महिलाओं को भी इस में हिस्सा डालना चाहिए। फाइनेंशियल बोझ पुरुषों पर डालने से कई बार वह डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते हैं या खुद को अकेला महसूस करते हैं। उनके अंदर एक दोष आ जाता है कि वह अपने परिवार के लिए नहीं कर पा रहे हैं या फिर मुझे ही अकेले घर को संभालना होगा और मेरे ऊपर पर ही घर की सारी जिम्मेदारी है। महिलाओं को ऐसे में उनका सहारा बनना चाहिए।
ऐसे और भी बहुत काम है जो जेंडर के हिसाब से किए जाते हैं लेकिन उनका जेंडर से कोई संबंध नहीं है। हमें इस पित्तृसत्ता सोच को तोड़ने की और इनके ऊपर सवाल उठाने की जरुरत है।