Makar Sankranti 2024: धूप खिली हो, हवा सुकून दे रही हो और आसमान में रंग-बिरंगे पंछी नहीं, बल्कि पतंगें नाच रही हों! ये वो नज़ारा है जो हर साल हमें बताता है कि मकर संक्रांति आ चुकी है। लेकिन क्या कभी सोचा है कि आखिर मकर संक्रांति पर ही क्यों पतंग उड़ाते हैं? सिर्फ खुशी मनाने का ही तरीका है या इसके पीछे कोई और वजह छिपी है? चलिए, आज उठाते हैं इस सवाल का धागा और खोजते हैं पतंग उड़ाने की परंपरा के पीछे छिपे धार्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक रहस्यों को।
मकर संक्रांति पर पतंग क्यों उड़ाते हैं?
1. धर्म की डोर में बंधी पतंग
भगवान राम का आशीर्वाद: कुछ मान्यताओं के अनुसार, पतंग उड़ाने की शुरुआत खुद भगवान राम ने की थी। कहा जाता है कि एक मकर संक्रांति के दिन उन्होंने पतंग उड़ाई थी, जो सीधे इंद्रलोक तक जा पहुंची थी। तभी से इस शुभ दिन पर पतंग उड़ाने की परंपरा चली आ रही है।
सूर्य देव को नमन: मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव उत्तरायण यानी उत्तर दिशा में गति करना शुरू करते हैं। इसे शुभ माना जाता है और पतंग उड़ाकर सूर्य देव की पूजा की जाती है।
नकारात्मकता को काटें, सकारात्मकता को थामें: कई धार्मिक मान्यताओं में पतंग को नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का प्रतीक माना जाता है। पतंग उड़ाने के साथ-साथ दुख-दर्द और बुरी नज़र को भी विदा किया जाता है।
2. विज्ञान का तार उलझाता है
सूर्य स्नान का फायदा: मकर संक्रांति के दिन सूर्य की किरणें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। पतंग उड़ाते समय हम अनजाने में ही ज़्यादा समय बाहर बिताते हैं, जिससे हमें अधिक सूर्य स्नान का लाभ मिलता है।
तंदुरुस्ती का साथी: ठंड के मौसम में शरीर में जमा कफ को कम करने के लिए व्यायाम जरूरी है। पतंग उड़ाते समय चलना, कूदना और दौड़ना शरीर को सक्रिय रखता है और कफ को कम करता है।
मन का उल्लास, तन का उत्साह: मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाना सिर्फ शारीरिक व्यायाम ही नहीं, बल्कि मनोरंजन का भी ज़रिया है। खुले में खेलने से तनाव कम होता है और मन प्रसन्न रहता है।
3. संस्कृति का रंग
पतंग बांधती है रिश्तों की डोर: मकर संक्रांति पर परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर पतंग उड़ाना मिलनसारिता बढ़ाता है और रिश्तों को मज़बूत बनाता है।
प्रतियोगिता का उत्साह: कई जगहों पर मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। इससे उत्साह का माहौल बनता है और लोग खेल-खेल में आपसी सहयोग और प्रतिस्पर्धा का अनुभव करते हैं।
लोरी की मिठास, पतंग की चहक: मकर संक्रांति के त्योहार में पतंग उड़ाने की परंपरा सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि ज़िंदगी की खुशियों को उसी आसमान में उभारने का तरीका है। ये परंपरा हमें याद दिलाती है कि सपनों को उड़ान देना ज़रूरी है, फिर चाहे वो बड़े हों या छोटे।