Pregnancy Tests: प्रेगनेंसी के नौ महीने हर महिला के लिए बेहद मुश्किल भरे होते हैं और बेहद लंबे लगते हैं लेकिन बच्चे के आने के बाद वो सारे चुनौती भरे दिनों का इनाम मिलता है। इन नौ महीनों में एक प्रेग्नेंट महिला को कई टेस्ट करवाने पड़ते हैं को महिला के स्वास्थ्य और बच्चे की सेहत के लिए जरूरी होते हैं। टेस्ट करवाना जरूरी होता है ताकि आगे जाकर कोई जटिलताएं बढ़ ना जाए और शिशु को कोई दिक्कत ना हो।
प्रेग्नेंसी में कौन कौन से टेस्ट करवाने चाहिए
आपका स्वास्थ्य देखभाल प्रोवाइडर आपकी प्रेग्नेंसी के दौरान कई प्रकार की स्क्रीनिंग, टेस्ट और इमेजिंग तकनीकों की सिफारिश कर सकता है। ये टेस्ट आपके बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं और आपके बच्चे की प्रेनाटल देखभाल और विकास को ऑप्टिमाइज़ करने में आपकी मदद कर सकते हैं। ब्लड ग्रुप, यूरिनलिसिस, इन्फेक्शन स्क्रीनिंग, अल्ट्रासांउड, एचआईवी, ग्लूकोस स्क्रीनिंग, कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट, सीबीसी, आरबीएस, टिसएच, आदि।
अपनी प्रेग्नेंसी के दौरान, आप जानना चाहेंगी कि आपका शिशु कैसे बढ़ रहा है। प्रेनाटल टेस्ट आपके स्वास्थ्य और आपके बढ़ते बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान कर सकते हैं। आज यहां स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टेस्ट के बारे में।
2 सबसे जरूरी प्रेग्नेंसी टेस्ट (Pregnancy Tests)
1. स्क्रीनिंग टेस्ट
स्क्रीनिंग टेस्ट, प्रेग्नेंसी में 3 बार होता है। पहला ट्राइमेस्टर (पहले 3 महीने के लिए), दूसरा ट्राइमेस्टर (चौथे से छटे महीने के लिए) और तीसरा ट्राइमेस्टर (सातवें महीने से आखिरी महीने के लिए)। महिला अपने बच्चे के स्वास्थ्य के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट करवाती हैं ताकि उन्हें पता चल सके की यदि बच्चे को गंभीर स्वास्थ्य स्थिति का खतरा तो नहीं। स्क्रीनिंग टेस्ट बच्चे में सामान्य जन्म दोषों का खतरा है या नहीं उसके बारे में भी बताता है।
स्क्रीनिंग टेस्ट में अल्ट्रासांउड और ब्लड टेस्ट होता है जो डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे के होने के जोखिम का पता लगा सकता है। यह टेस्ट कुछ अन्य असामान्यताओं का पता लगा सकता है और यह भी बता सकता है कि क्या आपको एकाधिक प्रेग्नेंसी है, उदाहरण के लिए जुड़वाँ बच्चे।
स्क्रीनिंग टेस्ट बिल्कुल सामान्य होते हैं और आमतौर पर फीटस को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। स्क्रीनिंग टेस्ट ज्यादातर महिलाएं एक ही बार करवाती हैं। स्क्रीनिंग टेस्ट बच्चे को कोई खतरा तो नहीं उसके बारे में बताता है और इसके बाद डायग्नोस्टिक टेस्ट होता है।
2. डायग्नोस्टिक टेस्ट
डायग्नोस्टिक टेस्ट का इस्तेमाल बच्चे में क्रोमोसोमल कंडीशन या जेनेटिक कंडीशन की पुष्टि के लिए किया जाता है। यदि आपके पास डाउन सिंड्रोम या अन्य जन्म प्रभाव के साथ पिछली गर्भावस्था थी, तो आप डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाना चुन सकते हैं। यां फिर आपको पहली या दूसरी जांच के बाद जेनेटिक कंडीशन वाले बच्चे के होने के बढ़ते जोखिम के रूप में पहचाना गया है। यां फिर यदि आपके परिवार में जन्म दोषों का इतिहास रहा है।
डायग्नोस्टिक टेस्ट जितने सटीक होते हैं, उतने ही आक्रामक भी होते हैं और फीटस के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। डायग्नोस्टिक टेस्ट में मिसकैरेज का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसकी कारण की वजह से डायग्नोस्टिक टेस्ट हर महिला के लिए नहीं होते और यह सिर्फ तभी होता है अगर कोई डाउन सिंड्रोम का खतरा हो।
डायग्नोस्टिक टेस्ट में सुई के माध्यम से आपके एमनियोटिक फ्लूइड का एक सैंपल लिया जाता है और इस टेस्ट में सिर्फ 20 मिनट ही लगते हैं लेकिन इसके टेस्ट के रिजल्ट में 24 घंटे से 14 दिन भी लग सकते हैं। यह टेस्ट रिपोर्ट में अगर स्क्रीनिंग के दौरान कोई दोष छूट गया हो उसके बारे में बताता है।