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आज के समय मार्केट में consumption से अधिक सप्लाई हैं जिसका सीधा असर जरूरत से ज्यादा शॉपिंग और खरीदारी पर होता हैं। ऐसे में आज का व्यक्ति ज़रूरत न होने पर भी मार्केट के प्रभाव में आकर सामान खरीदता हैं। कई बार तो यह व्यक्ति की सेविंग को भी पूरा खत्म कर देता हैं। ऐसे में जरूरी हैं कि जरूरत और चाहत में अंतर समझा जाएं। आज के समय में मंहगाई भी बहुत अधिक हैं और जरूरत के हिसाब से सही खर्च फालतू के खर्चे से बचाता हैं। आइए, जानते हैं कि जरूरत और चाहत में अंतर कैसे करें जो माइंडफुल स्पेंडिंग का तरीका हैं।
Her Money Her Choice: जानिए ‘चाहत’ और ‘ज़रूरत’ के बीच संतुलन कैसे बनाएँ?
जरूरत (Needs) क्या हैं?
लाइफ में बेसिक नीड जिनके बिना सर्वाइवल नहीं हो सकता हैं, उन्हें जरूरत कहा जाता हैं। इसमें शिक्षा के लिए खरीदारी, न्यूट्रीशनल फूड, घर और हेल्थ आती हैं। यह वह खर्चे हैं जो मानव जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। इनके लिए खर्च करना आवश्यकता होती हैं। इनको नकारना भी गलत हैं। इसमें किराना और दवाईयां और पढ़ने का सामन आता हैं।
चाहत (Wants) क्या हैं?
चाहत का सीधा कनेक्शन इकॉनमी के इंफ्लूएंस और आसपास के माहौल से होता हैं। आज के समय में व्यक्ति कंफर्ट और अट्रैक्शन के लिए स्पेंडिंग करता हैं। उदाहरण के लिए महंगें ब्रांडेड कपड़े खरीदना, महंगे गैजेट्स, फैशन पर खर्चें होते हैं। यह सब आवश्यक नहीं लेकिन फिर भी आज का व्यक्ति इंफ्लूएंस में आकर कार्य करता हैं। इसका सीधा जुड़ाव सोशल प्रेशर और इमोशंस से होता हैं। मार्केट में इमोशंस को इंफ्लूएंस करके आवश्यकता से अधिक खर्चें करवाएं जाते हैं, जो माइंडफुल स्पेंडिंग पर सीधा असर हैं।
1. बजट बनाना
हर महीने की कमाई को जरूरत और चाहत के हिसाब से बांटना एक अच्छी पहल हैं। फिर पहले जरूरत के लिए खर्चें करना उसके बाद बचें पैसे को सेव करना बेहतर तरीका हैं।
2. 3 जार फुल स्ट्रेटजी
सेव, स्पेंड और शेयर यह स्ट्रेटजी बहुत मददगार हैं। इन तीन हिस्सों पर महीने की कमाई को बांटा जाता हैं। कमाई का एक हिस्सा सेविंग के लिए रखा जाता हैं, जिसे भविष्य की जरुरत के लिए रखा गया हैं। दूसरा हिस्सा महीने के जरूरत के खर्च के लिए रखा गया हैं। तीसरा हिस्सा किसी को जरूरत पड़ने या फाइनेंसियल हेल्प के लिए होता हैं।
3. पोज़ प्रिंसिपल
अक्सर जैसे ही इंफ्लूएंस होता हैं व्यक्ति खर्च कर देता हैं। इसके लिए अच्छा तरीका हैं खरीदने से पहले रुकना और पूछना की क्या मुझे इसकी सचमे जरूरत हैं। अधिकतर मामलों में जरूरत नहीं होती तो इसे टालना बेहतर होता हैं।
4. खर्चों को ट्रैक करना
खर्च करते समय और उसके बाद, यह जरूर देखें कि खर्चा क्यों और कहां हुआ? ऐसे में खर्चे को ट्रैक करकर समझा जा सकता हैं। छोटे से छोटा खर्चा भी अपने पास नोटडाउन करके रखे इससे पता चलता कि खर्च करना जरूरी हैं या नहीं।
5. माइंडफुल स्पेंडिंग के क्या हैं फायदे?
जब महिला सोच समझ कर आवश्यकता के अनुसार खर्च करती है, तो वह फ्यूचर के लिए कुछ और बेहतर आवश्यकता के लिए सेव कर पाती हैं। जीवन के ऐसे पक्ष जो अक्सर नकार दिए जाते हैं, उन पर खर्च करने के लिए यह तरीका बहुत अच्छा हैं। महिला अपने खर्च को जब मैनेज करती हैं तो वह इंडियोंडिस, कॉन्फिडेंट और फाइनेशियल सिक्योरिटी को महसूस करती हैं।पैसा केवल सर्वाइवल के लिए नहीं डिग्निटी और फ्रीडम का एक मीडियम हैं।
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