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Gender Inequality: आज भी बेटियों के जन्म से लोग मायूस क्यों होते हैं?

बेटियाँ किसी भी तरह से बेटों से कम नहीं हैं। वे समाज और परिवार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। हमें मिलकर ऐसी सोच और परंपराओं को समाप्त करना होगा।

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Srishti Jha
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Daughter

Image Credit:freepik

Why do people get disheartened by the birth of daughters?हमारे समाज में बेटियों का जन्म एक वरदान है, फिर भी कई जगहों प इसे निराशा के रूप में देखा जाता है। यह सोच सदियों पुरानी सामाजिक धारणाओं और पूर्वाग्रहों से उत्पन्न होती है। आधुनिक समय में भी यह सोच कई परिवारों में गहरी जड़ें जमा चुकी है। बेटियाँ किसी भी तरह से बेटों से कम नहीं हैं। वे समाज और परिवार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। हमें मिलकर ऐसी सोच और परंपराओं को समाप्त करना होगा और बेटियों के जन्म को एक खुशी के अवसर के रूप में देखना होगा। समय आ गया है कि हम अपने समाज को लैंगिक समानता की दिशा में अग्रसर करें और बेटियों को भी वही प्यार और सम्मान दें जिसकी वे हकदार हैं। इस लेख में हम उन कारणों पर प्रकाश डालेंगे जिनकी वजह से आज भी बेटियों के जन्म पर लोग मायूस हो जाते हैं।

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आज भी बेटियों के जन्म लेने से लोग मायूस क्यों हो जाते हैं?

1. सामाजिक और सांस्कृतिक धारणाएँ

कई समाजों में बेटे को परिवार का वंशज मानते हुए प्राथमिकता दी जाती है। यह धारणा है कि बेटा परिवार की संपत्ति और नाम को आगे बढ़ाएगा। वहीं, बेटी को पराया धन माना जाता है जिसे विवाह के बाद दूसरे घर भेजना होता है।

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2. दहेज प्रथा

दहेज प्रथा भारतीय समाज में एक बड़ी समस्या है। बेटी के विवाह के समय दहेज देने की परंपरा ने कई परिवारों को आर्थिक रूप से बोझिल बना दिया है। दहेज की मांग और सामाजिक दबाव के कारण परिवार बेटियों के जन्म पर खुशी से ज्यादा चिंता और निराशा महसूस करते हैं।

3. सुरक्षा और शिक्षा की चिंता

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बेटियों की सुरक्षा और शिक्षा को लेकर भी कई परिवार चिंतित रहते हैं। आज भी कई जगहों पर लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल का अभाव है और उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर सीमित होते हैं। इस चिंता के कारण भी लोग बेटियों के जन्म को लेकर मायूस हो जाते हैं।

4. आर्थिक बोझ का डर

कई परिवार बेटियों के पालन-पोषण और शिक्षा को आर्थिक बोझ मानते हैं। समाज में फैली आर्थिक असमानता और लैंगिक भेदभाव की वजह से लड़कियों को समान अवसर और संसाधन नहीं मिल पाते। इस आर्थिक दबाव के चलते लोग बेटियों के जन्म पर मायूस हो जाते हैं।

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5. मानसिकता और पूर्वाग्रह

समाज में लड़कों और लड़कियों के प्रति भिन्न दृष्टिकोण और मानसिकता भी इस निराशा का एक बड़ा कारण है। बेटों को शक्ति, उत्तरदायित्व और गौरव का प्रतीक माना जाता है, जबकि बेटियों को कमजोर और निर्भर समझा जाता है। यह मानसिकता लोगों को बेटियों के जन्म पर नकारात्मक सोच अपनाने पर मजबूर करती है।

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