Why is a son's education seen as an investment and a daughter's as a cost? भारतीय परिवार में जब बात पढ़ाई की आती है तब ज्यादा खर्च और ध्यान बेटों की पढ़ाई पर दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बेटा आगे जाकर जिंदगी में कुछ अचीव कर सके और अच्छी नौकरी या फिर अपना व्यवसाय स्थापित कर सके। वही बात जब लड़कियों की पढ़ाई की आती है तो मां-बाप इतना खर्च नहीं करते हैं लेकिन ऐसा क्यों? आज के इस आर्टिकल में हम इस विषय के ऊपर बात करेंगे कि क्यों लड़कियों की पढ़ाई को खर्च माना जाता है और वहीं लड़कों की पढ़ाई एक इन्वेस्टमेंट होती है।
बेटे की पढ़ाई इन्वेस्टमेंट, बेटी की पढ़ाई खर्च ऐसा क्यों?
शिक्षा हर किसी के लिए जरूरी है इसमें कोई भी जेंडर प्रधान नहीं है। जिस भी व्यक्ति ने इस दुनिया में जन्म लिया है, उसे शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार है लेकिन बात जब महिलाओं की आती है तब उनसे यह हक बड़ी आसानी से छीन लिया जाता है। समाज में ऐसा माना जाता है की बेटी को पढ़ाने का ज्यादा कोई फायदा नहीं है क्योंकि बाद में इसकी शादी ही होनी है। इसके साथ ही अगर हम बेटी की पढ़ाई पर ज्यादा खर्च करेंगे तो हम इसके दहेज या फिर शादी के खर्च के लिए पैसे नहीं जोड़ पाएंगे। इसके साथ ही अगर यह जॉब भी करेगी तो इसका फायदा इसके ससुराल को होगा क्योंकि आखिर में इसकी शादी ही कर दी जाएगी। इसके कारण लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता है।
दूसरा पहलू यह है कि अभी भी ग्रामीण भारत में बहुत सारे लोगों की सोच यह है कि यहां पर महिलाओं को ज्यादा पढ़ने का अवसर नहीं दिया जाता है क्योंकि उन्हें लगता है कि इन्हें घर का काम आना चाहिए या फिर छोटी उम्र में महिलाओं की शादी कर दी जाती है। इसके साथ ही बहुत सारी महिलाएं पढ़ाई के लिए इससे भी वंचित रह जाती है क्योंकि उन्हें पढ़ने के लिए मीलों तक चलना पड़ता है। इसके साथ ही लैंगिक समानता आज भी हमारे समाज में खत्म नहीं हुई है। बहुत सारी महिलाओं को सिर्फ इसलिए पढ़ने का अवसर नहीं मिलता है क्योंकि वो फीमेल हैं। यह एक बहुत ही बुरी और छोटी बात है जिसके कारण महिलाओं को पढ़ने के अवसर नहीं मिलते हैं।
मां-बाप को अपनी बेटियों के प्रति अभी यह सोच बदलने की जरूरत है। उन्हें अपनी बेटियों को हर तरीके से आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन करना चाहिए ताकि उनकी बेटी भी जिंदगी में कुछ ऐसा कर सके जिसकी उन्हें चाहत हैं। हम सब यह चाहते हैं की बेटियां आगे बड़े और देश और परिवार का नाम रोशन करें लेकिन इसकी शुरुआत हम अपने घर से नहीं करना चाहते हैं। आज भी हमारे मन में यही बात है कि बेटियां पराया धन है और इनके ऊपर ज्यादा खर्च करके हमें कुछ नहीं मिलने वाला है।