Shaadi Deadline: क्यों अब भी शादी को औरत की 'ज़िंदगी की मंज़िल' माना जाता है

Shaadi Deadline: आज के समय में लड़कियाँ पढ़ाई, नौकरी और हर काम में आगे बढ़ रही हैं, लेकिन जब शादी की बात आती है तो लोग अब भी पुरानी सोच रखते हैं। जैसे उसकी ज़िंदगी का सिर्फ एक ही मकसद हो, शादी।

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Tamnna Vats
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Photograph: (Pinterest)

Why is marriage still considered the 'ultimate goal' of a woman's life?: आज के समय में लड़कियाँ पढ़ाई, नौकरी और हर काम में आगे बढ़ रही हैं, लेकिन जब शादी की बात आती है तो लोग अब भी पुरानी सोच रखते हैं। हमारे यहां ज़्यादातर लोग मानते हैं कि लड़की की असली मंज़िल शादी करना ही है। जैसे ही कोई लड़की बड़ी होने लगती है, लोग पूछने लगते हैं, "अभी तक शादी नहीं हुई?" जैसे उसकी ज़िंदगी का सिर्फ एक ही मकसद हो, शादी।

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Shaadi Deadline: क्यों अब भी शादी को औरत की 'ज़िंदगी की मंज़िल' माना जाता है?

ख़ुद से किये गए फैसले ही एक औरत की पहचान है 

औरतें समझकर होती है, वे सब सही सोचती है और अपने फैसले खुद लेना जानती है। उन्हें आज़ादी मिलनी चाहिए कि वे कब, किससे और क्यों शादी करना चाहती है, या फिर करना चाहती भी है या नहीं। शादी को कोई मंज़िल नहीं, बस एक चुनाव मानना चाहिए। जब ऐसा होगा, तब औरत की पहचान उसकी खुशी और फैसलों से जुड़ी होगी, ना कि उसकी शादी से।

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सामाजिक नजरिया और उम्र के साथ बढ़ता दबाव

लड़कियों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि उन्हें एक दिन किसी और के घर जाना है। उन्हें घर के काम और सबकी बातें मानना सीखना होगा। वहीं लड़कों को अपनी मर्जी से जीने दिया जाता है और फैसले लेने की आज़ादी मिलती है। जैसे-जैसे शादी की उम्र आती है, ये फर्क और भी साफ दिखता है। अगर कोई लड़की कुछ बनना चाहती है, तो लोग कहते हैं, "शादी के बाद कर लेना" या "अब बहुत देर हो रही है"।

पेरेंट्स और परिवार की अहम भूमिका 

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अक्सर पेरेंट्स लोगों की बातों से डरकर बेटियों पर शादी और घर के काम सीखने का दबाव डालते हैं। उन्हें लगता है, कि रिश्तेदार क्या कहेंगे या लोग क्या सोचेंगे। लेकिन अगर माँ-बाप अपनी बेटियों को अपने पैरों पर खड़ा होने दें और उनके फैसले मानें, तो वही बेटियाँ समाज की सोच बदल सकती हैं। 

सामाजिक, मानसिक सोच में बदलाव लाना जरूरी है 

समाज की सोच बदलने के लिए जरूरी है, कि हम पहले अपना नजरिया बदलें। औरत की ज़िंदगी की मंज़िल सिर्फ शादी नहीं होती। वो अपनी मंज़िल खुद तय कर सकतीह है, चाहे वो नौकरी हो, कोई हुनर हो, समाज की भलाई का काम हो या सिर्फ एक सुकून भरी ज़िंदगी। शादी ज़रूर ज़िंदगी का एक हिस्सा हो सकती है, लेकिन पूरी ज़िंदगी का मतलब सिर्फ शादी नहीं।

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