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Marriage & Legal Rights: विवाह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और कानूनी बंधन है, जो पति-पत्नी के अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है। हालांकि, कई महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखती हैं, जिससे उन्हें कभी-कभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कानून महिलाओं को विवाह के दौरान और उसके बाद सुरक्षा प्रदान करता है, ताकि वे अपने अधिकारों से वंचित न रहें। हर महिला को अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी होना जरूरी है ताकि वे किसी भी अन्याय या शोषण से बच सकें। आइए जानते हैं वे चार अहम अधिकार, जो हर महिला को पता होने चाहिए।
हर महिला को पता होने चाहिए ये 4 अहम अधिकार
These 4 Important Rights Every Woman Should Know
1. विवाह के बाद संपत्ति में अधिकार
विवाह के बाद पति और पत्नी दोनों को बराबर रूप से संपत्ति में अधिकार मिलता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, किसी भी महिला को अपने माता-पिता की संपत्ति में बराबर का हक होता है, ठीक वैसे ही जैसे बेटे को मिलता है। इसके अलावा, शादी के बाद पति की संपत्ति में भी पत्नी का अधिकार होता है। यदि तलाक हो जाता है, तो महिला अपने और अपने बच्चों की आर्थिक सुरक्षा के लिए गुजारा भत्ता (Alimony) और संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा कर सकती है। मुस्लिम महिलाओं को भी शरीयत कानून के तहत शादी और संपत्ति से संबंधित अधिकार दिए गए हैं।
2. घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकार
घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 लागू किया गया है। इस कानून के तहत यदि किसी महिला को उसके पति या ससुराल वालों द्वारा शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या भावनात्मक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, तो वह पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकती है। इसके अलावा, महिला अदालत से सुरक्षा, मुआवजा, गुजारा भत्ता और प्रताड़ना को रोकने के लिए आदेश प्राप्त कर सकती है। यह कानून विवाहित और अविवाहित दोनों महिलाओं के लिए लागू होता है।
3. शादी के बाद उपनाम (surname) बदलना जरूरी नहीं
भारत में यह आम धारणा है कि शादी के बाद महिला को अपना उपनाम (Surname) बदलना आवश्यक होता है, लेकिन ऐसा करना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है। कानूनी रूप से कोई भी महिला शादी के बाद अपने जन्म से मिले नाम और उपनाम को बनाए रख सकती है। यदि वह चाहें तो पति का उपनाम अपना सकती हैं, लेकिन यह पूरी तरह से उसकी इच्छा पर निर्भर करता है।
4. तलाक और गुजारा भत्ता का हक़
अगर विवाह सफल नहीं होता और पति-पत्नी के बीच संबंध खराब हो जाते हैं, तो महिला को तलाक लेने और गुजारा भत्ता (Maintenance) प्राप्त करने का अधिकार होता है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत महिला मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना, व्यभिचार, परित्याग या अन्य कारणों से तलाक की मांग कर सकती है। मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत तीन तलाक से सुरक्षा मिली हुई है। इसके अलावा, अदालत महिला की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसे गुजारा भत्ता दिलाने का आदेश दे सकती है।