जानिए 40 के बाद क्यों ज़रूरी है वेट ट्रेनिंग?

40 साल के बाद औरतों के लिए वेट ट्रेनिंग का मतलब “मसल्स बनाना” नहीं है, बल्कि ताक़त, लचीलापन और हेल्दी मेटाबॉलिज़्म की नींव रखना है। इस उम्र में एस्ट्रोजन कम होने लगता है, जिससे मसल्स धीरे-धीरे घटते हैं और हड्डियाँ भी कमज़ोर होने लगती हैं।

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The Meno Coach
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40 साल के बाद औरतों के लिए वेट ट्रेनिंग का मतलब “मसल्स बनाना” नहीं है, बल्कि ताक़त, लचीलापन और हेल्दी मेटाबॉलिज़्म की नींव रखना है। इस उम्र में एस्ट्रोजन कम होने लगता है, जिससे मसल्स धीरे-धीरे घटते हैं और हड्डियाँ भी कमज़ोर होने लगती हैं। Tanya लिखती हैं कि यही वह समय है जब स्ट्रेंथ ट्रेनिंग सबसे बड़ा सहारा बन सकती है।

जानिए 40 के बाद क्यों ज़रूरी है वेट ट्रेनिंग? 

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मुंबई की फिटनेस कोच रचना अय्यर कहती हैं, “स्ट्रेंथ ट्रेनिंग उम्र के साथ कम होती मसल्स को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। यह मेटाबॉलिज़्म को ठीक रखती है, ऑस्टियोपोरोसिस से बचाती है और जोड़ों को हेल्दी रखती है जो 40 के बाद बहुत ज़रूरी हो जाता है।”

डाइट और वेट ट्रेनिंग साथ-साथ

पोषण विशेषज्ञ मानते हैं कि सही डाइट के बिना वेट ट्रेनिंग (Weight training) अधूरी है। दिल्ली की क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. मीरा शर्मा कहती हैं, “मसल्स मेटाबॉलिकली एक्टिव टिश्यू हैं। अगर आप 40 के बाद मेटाबॉलिज़्म को एक्टिव रखना चाहती हैं, तो मसल्स को बचाना और बढ़ाना ज़रूरी है। इसके लिए वेट ट्रेनिंग के साथ-साथ पर्याप्त प्रोटीन भी लेना चाहिए।”

वो बताती हैं कि प्रोटीन और स्ट्रेंथ वर्कआउट्स इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ाते हैं, जिससे वज़न कंट्रोल करने और डायबिटीज़ से बचने में मदद मिलती है — जो आजकल भारतीय महिलाओं में एक बड़ी चिंता है।

असली कहानियाँ, असली बदलाव

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कोच्चि की गृहिणी सुष्मा नायर कहती हैं, “मैंने जिम जॉइन किया था सिर्फ शादी में थोड़ा ‘टोन अप’ दिखने के लिए। पर धीरे-धीरे महसूस हुआ कि अब मैं आसानी से भारी बैग्स उठा सकती हूँ, सीढ़ियाँ चढ़ने में सांस नहीं फूलती और पीठ दर्द भी कम हो गया। वो आत्मविश्वास अमूल्य है।”

उनका अनुभव 2022 की एक भारतीय स्टडी से भी मेल खाता है जिसमें पाया गया कि 12 हफ्ते की वेट ट्रेनिंग से महिलाओं की स्टैमिना और आत्मनिर्भरता बढ़ गई।

कोलकाता की करियर काउंसलर अनन्या मुखर्जी के लिए फायदा मानसिक था “दिनभर डेस्क पर बैठकर सुनना और बात करना थकाने वाला होता है। वेट ट्रेनिंग मेरे लिए आउटलेट बनी, मैं ज़्यादा फोकस्ड, शांत और मानसिक रूप से मजबूत महसूस करने लगी। जिम की डिसिप्लिन ज़िंदगी में भी आ गई।”

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वैज्ञानिक रिसर्च भी यही बताती है कि स्ट्रेंथ ट्रेनिंग एंडोर्फ़िन रिलीज़ करती है, जिससे परिमेनोपॉज़ में आने वाली चिंता और लो मूड कम हो सकता है।

मुंबई की डिलीवरी पार्टनर आरती पाटिल का अनुभव बिल्कुल फ़ंक्शनल रहा, “मैं दिनभर स्कूटर पर रहती हूँ और अक्सर भारी पार्सल ले जाती हूँ। कलाई और घुटनों में दर्द रहता था। एक दोस्त ने कहा हफ़्ते में दो दिन वेट ट्रेनिंग करो। तीन महीने में दर्द कम हो गया और बॉडी पोश्चर भी ठीक हो गया।”

नतीजा

इन कहानियों से साफ़ है कि 40 के बाद वेट ट्रेनिंग कोई लक्ज़री नहीं, बल्कि एक तरह की प्रिवेंटिव मेडिसिन है। यह मसल्स और हड्डियों की रक्षा करती है, मेटाबॉलिज़्म को सपोर्ट करती है और आत्मविश्वास भी बढ़ाती है। इससे महिलाएँ अपने आने वाले सालों को और ज़्यादा एक्टिव, स्वतंत्र और हेल्दी तरीके से जी सकती हैं।

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