Midlife and Movement: थकान से ताक़त तक का सफ़र

विज्ञान लंबे समय से मानता है कि व्यायाम सबसे प्रभावी मूड स्टेबलाइज़र है और मिडलाइफ़ में इसकी ज़रूरत और बढ़ जाती है। शारीरिक गतिविधि के दौरान निकलने वाले एंडॉर्फ़िन्स दिमाग़ के रिसेप्टर्स से जुड़कर दर्द घटाते हैं और सकारात्मक भावनाएँ जगाते हैं।

author-image
The Meno Coach
New Update
exercise

अनिता, 49 साल की कॉरपोरेट वकील (मुंबई) के लिए मेनोपॉज़ अचानक किसी बड़े लक्षण के साथ नहीं आया। यह चुपचाप आया। पहले नींद टूटी-टूटी होने लगी, फिर सुबहें धुंधली सी लगने लगीं, काम पर आत्मविश्वास कम हुआ और अजीब चिड़चिड़ापन बढ़ गया। वह कहती हैं, “मैं बीमार नहीं थी, लेकिन खुद जैसी भी नहीं लग रही थी।” 

Midlife and Movement: थकान से ताक़त तक का सफ़र

Advertisment

एक दोस्त ने उन्हें रोज़ शाम को टहलने और प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने की सलाह दी। अनिता को शक था कि “सिर्फ़ वॉक से क्या बदल सकता है?” लेकिन कुछ हफ़्तों में उन्हें फर्क दिखने लगा। उनका मूड हल्का हो गया, कोर्ट के लंबे दिन बेहतर ढंग से संभलने लगे और शरीर पर नियंत्रण महसूस हुआ। दरअसल, यह एंडॉर्फ़िन्स का असर था। शरीर के वे प्राकृतिक केमिकल्स जो तनाव घटाते हैं, मूड उठाते हैं और दर्द कम करते हैं।

प्रोटीन को लेकर अनिता की सोच भी बदली। वह कहती हैं, “मुझे लगता था प्रोटीन सिर्फ़ मैराथन धावकों के लिए है। लेकिन मेरी न्यूट्रिशनिस्ट ने बताया कि हम सब प्रोटीन की कमी से जूझते हैं और यह ताक़त बनाने और मूड स्विंग्स को संभालने के लिए ज़रूरी है।”

पोषण विशेषज्ञ चाहत वासदेव (Gytree) बताती हैं, “प्रोटीन आपके न्यूरोट्रांसमीटर को ज़्यादा सक्रिय कर देता है।”

क्यों ज़रूरी हैं एंडॉर्फ़िन्स

Advertisment

विज्ञान लंबे समय से मानता है कि व्यायाम सबसे प्रभावी मूड स्टेबलाइज़र है और मिडलाइफ़ में इसकी ज़रूरत और बढ़ जाती है। शारीरिक गतिविधि के दौरान निकलने वाले एंडॉर्फ़िन्स दिमाग़ के रिसेप्टर्स से जुड़कर दर्द घटाते हैं और सकारात्मक भावनाएँ जगाते हैं। मेनोपॉज़ में, जब एस्ट्रोजेन का स्तर घट-बढ़ रहा होता है और सेरोटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर अस्थिर हो जाते हैं, तब एंडॉर्फ़िन्स एक प्राकृतिक संतुलन देते हैं।

मेनोपॉज़ विशेषज्ञ डॉ. मैरी क्लेयर हेवर बताती हैं कि “कई स्टडीज़ साबित करती हैं कि शारीरिक गतिविधि अवसाद के लक्षणों को दूर करने का कारगर तरीका है। हाल ही में हुई एक मेटा-एनालिसिस में पाया गया कि प्री और पोस्ट मेनोपॉज़ल महिलाओं में हल्का और मध्यम व्यायाम डिप्रेशन को काफ़ी हद तक कम करता है।”

सीधी बात: मिडलाइफ़ में मूवमेंट कोई विकल्प नहीं, बल्कि दवा है।

मूवमेंट से मिले सहारे

जयपुर की 42 वर्षीय शिक्षिका सुनीता को पेरिमेनोपॉज़ में मूड स्विंग्स और भूलने की आदत ने परेशान कर दिया था। वह बताती हैं, “मैं अपने काम और बच्चों से कटी-कटी सी लगती थी।” बदलाव तब आया जब उन्होंने पड़ोस के योगा ग्रुप को जॉइन किया। “ये सिर्फ़ आसन नहीं था। इसमें साँस लेना, खिंचाव और एक साथ हँसना भी शामिल था।”

Advertisment

जो उन्होंने महसूस किया, अब विज्ञान भी मानता है कि योग और ऐसे अभ्यास कॉर्टिसोल घटाते हैं, नींद बेहतर करते हैं और ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं। सुनीता के लिए यह सिर्फ़ व्यायाम नहीं, बल्कि रोज़ का सहारा बन गया। खुद को फिर से पाने का ज़रिया और सबसे अहम, उन्हें मिला साथ। ऐसी महिलाओं का समूह जो एक ही सफ़र से गुज़र रही थीं, और जिनके बीच मेनोपॉज़ पर बातचीत सामान्य हो गई।

ताक़त, लचीलापन और नए रूप में जीना

बेंगलुरु की 55 वर्षीय डिलीवरी वर्कर रेखा के लिए एक्सरसाइज़ मूड या माइंडफुलनेस का सवाल नहीं, बल्कि जीने का सहारा था। लंबे समय तक स्कूटर चलाने से घुटनों और पीठ में दर्द रहने लगा। उन्हें लगा स्ट्रेंथ ट्रेनिंग उनके बस की बात नहीं। लेकिन पास के जिम ने उन्हें बॉडी-वेट एक्सरसाइज़ और हल्के वज़न से शुरुआत करवाई।

वह कहती हैं, “शुरू में लगा कि ये मेरे लिए नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे मेरी पीठ का दर्द कम हुआ और दिनभर में ऊर्जा ज़्यादा महसूस होने लगी।”

Advertisment

उनकी ट्रेनर प्रियंका मेहता (गुड़गाँव) कहती हैं,“40 के बाद महिलाओं के लिए स्ट्रेंथ ट्रेनिंग बेहद ज़रूरी है। जितना जल्दी शुरू करें, उतना बेहतर, लेकिन कभी भी देर नहीं होती। मांसपेशियाँ किसी भी उम्र में बदली जा सकती हैं।” रेखा की कहानी दिखाती है कि ताक़त का अभ्यास कोई ट्रेंड नहीं, बल्कि हड्डियों की मज़बूती, कमज़ोरी से बचाव और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सहारा है।

बड़ा नज़रिया

मेनोपॉज़ में एक्सरसाइज़ सिर्फ़ हॉट फ्लैशेज़ या कमर की चर्बी तक सीमित नहीं है। यह इस बात को फिर से लिखने का तरीका है कि मिडलाइफ़ कैसी दिख और महसूस हो सकती है।

अनिता की वॉक, सुनीता का योग और रेखा की स्ट्रेंथ ट्रेनिंग कि ये सब महिलाओं को मूड संभालने, ताक़त बनाने और ऊर्जा वापस पाने के साधन देते हैं। विज्ञान साफ़ कहता है कि व्यायाम डिप्रेशन घटाता है, दिल को मज़बूत करता है, हड्डियों को सहारा देता है और दिमाग़ की क्षमता को तेज़ करता है।

Advertisment

असली कहानी महिलाओं की ज़िंदगी में दिखती है जब किराने के थैले उठाते समय दर्द नहीं होता, जब योगा क्लास में हँसी बाँटी जाती है, जब सुबह की सैर से मन शांत होता है। मेनोपॉज़ को अक्सर गिरावट और थम जाने की तरह पेश किया जाता है लेकिन मूवमेंट के ज़रिए महिलाएँ साबित कर रही हैं कि यह ताक़त, लचीलेपन और खुशी से भरी हुई एक नई शुरुआत है। 

एक्सरसाइज़ सिर्फ़ फिटनेस नहीं, बल्कि सशक्तिकरण है जैसे-जैसे एंडॉर्फ़िन्स शरीर में दौड़ते हैं और मांसपेशियाँ मज़बूत होती हैं, महिलाएँ राहत ही नहीं, बल्कि नवीनीकरण भी पाती हैं। मिडलाइफ़ का मतलब जीवनशक्ति का अंत नहीं, बल्कि शरीर से नए रिश्ते की शुरुआत है। एक ऐसा रिश्ता, जो मूवमेंट और सेल्फ़-केयर पर टिका है।