The Key to Happy Motherhood: मदरहुड एक बहुत ही प्यारी और सुंदर जर्नी है जिसका हर एक पल मां को सुख का एहसास देता है। एक औरत को तब जननी का दर्जा मिल जाता है जब वह 9 महीने की प्रेगनेंसी के बाद एक बच्चे को जन्म देती है। लेकिन हमारे समाज में मां को इंसान रहने ही नहीं दिया जाता है। उसे देवी या भगवान का रूप मानने लग जाते हैं जिसके कारण उसके ऊपर इतना ज्यादा बोझ बढ़ जाता है कि वह इस जर्नी को इंजॉय ही नहीं कर पाती। उसे लगता है कि हमेशा ही सही रहना है या फिर बच्चों के बारे में सोचना है। इसके कारण बहुत सारी महिलाओं को यह लगता है कि मदरहुड एक चॉइस नहीं बल्कि एक जरूरी चीज है जिसे हर महिला की जिंदगी में होना चाहिए । चलिए आज बात करते हैं कि कैसे महिलाएं मदरहुड के दौरान पड़ने वाले बोझ को कम कर सकती हैं-
कैसे महिलाएं Motherhood के बोझ को कम करें?
मदरहुड की जर्नी के दौरान सबसे ज्यादा समस्या सामाजिक अपेक्षाओं के कारण आती है। हमारे समाज में एक आदर्श मां की परिभाषा दी गई है जिसके हिस्से में सिर्फ बलिदान आता है कि कैसे बच्चे की खातिर मां अपना करियर खत्म कर देती है, अपनी ख्वाहिशों को मार देती है, खुद को भूखा रखती है, सारी रात जागती है जिसके कारण उसकी नींद नहीं पूरी होती। इसके साथ ही उसने खुद को प्राथमिकता देना बंद कर दिया है। इन सभी बातों को नॉर्मल माना जाता है। अगर एक महिला खुद को प्राथमिकता देने लग जाती है तो उसे यह लगता है कि शायद वह एक सेल्फिश मदर है जबकि वह बच्चों के साथ-साथ खुद को भी प्राथमिकता दे रही है और खुद की वेलबींइग का भी ध्यान रख रही है।
अगर आपने ध्यान दिया हो तो मां बनने के बाद महिलाओं की सेहत पहले जैसे नहीं रहती। उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत पर इतना बुरा असर पड़ता है कि वे एनर्जेटिक नहीं रहती। उन्हें कमजोरी या थकावट महसूस होती है लेकिन यह सब नॉर्मल माना जाता है। ऐसा समझा जाता है कि मां बनने के बाद महिलाओं का शरीर ऐसे ही हो जाता है लेकिन यह सच्चाई नहीं है। हम महिलाओं को ऐसा बनने के लिए मजबूर करते हैं क्योंकि हम उन्हें खुद के लिए समय निकालना ही नहीं देते हैं।
अगर आप चाहते हैं कि एक महिला मां बनने के बाद भी स्वस्थ रहे और अपने जीवन में अन्य चीजों को भी प्राथमिकता दें तो हमें महिलाओं के ऊपर से इस बोझ को कम करना होगा और उन्हें जिंदगी जीने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। मां बना किसी भी चीज में विराम नहीं है बल्कि यह तो एक खूबसूरत जर्नी है। इसलिए महिलाओं को सामाजिक अपेक्षाओं का बोझ कम करना होगा। दूसरों की बातों को कम सुनना होगा और उनके साथ बाउंड्री सेट करनी होगी। उन्हें अपने आप की बातों को सुनना होगा और खुद की वर्थ को दूसरों के हाथ में नहीं देना है। कोई भी चीज आपको कम या ज्यादा मां नहीं बनाती।