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David Parry for the Booker Prize Foundation
हाल ही में इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीत चुकी लेखिका बनु मुश्ताक विवादों में घिर गई हैं। 22 अगस्त को उन्हें इस साल के मैसूरु दशहरा उत्सव में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उन्हें "प्रगतिशील चिंतक" बताते हुए 10 दिन चलने वाले इस सांस्कृतिक उत्सव का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया। यह वार्षिक उत्सव चामुंडी हिल मंदिर में पूजा के साथ शुरू होता है। लेकिन, विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने एक मुस्लिम लेखिका से हिंदू पर्व का उद्घाटन करवाने पर आपत्ति जताई है।
मैसूरु दशहरा के उद्घाटन के लिए बानू मुश्ताक को बुलाने पर सियासी बवाल
दशहरा, जिसे नाडा हब्बा (राज्य उत्सव) भी कहा जाता है, कर्नाटक का दशकों पुराना 10 दिन तक चलने वाला भव्य आयोजन है। इसमें धार्मिक अनुष्ठान, शोभायात्राएँ, सांस्कृतिक कार्यक्रम, हाथियों की परेड, आतिशबाज़ी और प्रदर्शनियाँ शामिल होती हैं। हर साल हज़ारों श्रद्धालु इन उत्सवों का हिस्सा बनने के लिए जुटते हैं। यह उत्सव कर्नाटक सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है।
बानू मुश्ताक, जिन्होंने बचपन में खुद दशहरा में भाग लेने का अपना अनुभव साझा किया था, ने इस आमंत्रण को अपने लिए एक सम्मान बताया। लेकिन विवाद तब और बढ़ गया जब कुछ राजनीतिक नेताओं ने देवी भुवनेश्वरी (जिन्हें कन्नड़ पहचान की प्रतीक माना जाता है) पर उनके पुराने बयानों पर आपत्ति जताई।
जनवरी में दिए गए उनके एक भाषण का वीडियो फिर से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर सवाल उठाया था कि कन्नड़ भाषा को किसी हिंदू देवी से जोड़ना क्यों ज़रूरी है, क्योंकि इससे गैर-हिंदू समुदाय खुद को अलग-थलग महसूस कर सकते हैं। मुश्ताक का कहना है कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया और केवल कुछ हिस्सों को चुनकर सोशल मीडिया पर फैलाया गया है।
बानू मुश्ताक विवाद पर सियासी बयानबाज़ी
विजयपुरा से विधायक और निष्कासित बीजेपी नेता बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने The News Minute से कहा,"मैं व्यक्तिगत तौर पर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भानु (बनु) मुश्ताक मैडम का सम्मान करता हूँ। लेकिन, उनका देवी चामुंडेश्वरी को फूल चढ़ाकर और दीप जलाकर दशहरा का उद्घाटन करना उनके अपने धार्मिक विश्वासों से टकराता हुआ लगता है। मैडम को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे अब भी इस्लाम का पालन करती हैं, जहाँ केवल एक ईश्वर और एक पवित्र किताब पर विश्वास है, या फिर वे यह मानती हैं कि सभी रास्ते अंततः एक ही मोक्ष की ओर जाते हैं।”
वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस आमंत्रण का जोरदार बचाव किया। NDTV के मुताबिक उन्होंने विरोध करने वालों को “इतिहास न जानने वाले संकीर्ण मानसिकता के लोग” कहा। सिद्धारमैया बोले,"यह एक धर्मनिरपेक्ष उत्सव है, इसलिए मैंने सोचा कि इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार विजेता को बुलाना चाहिए। इसे केवल एक ही धर्म के लोग क्यों शुरू करें? ‘नाडा हब्बा’ का मतलब है सबका उत्सव हिंदू, ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और जैन यह त्योहार सबका है।”
बानू मुश्ताक और उनका सम्मान
बानू मुश्ताक को इस साल मई में उनकी किताब "हार्ट लैम्प" (जिसका कन्नड़ से अंग्रेज़ी अनुवाद दीपा बस्ती ने किया है) के लिए इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिला। इस किताब में लघु कहानियाँ हैं, जो दक्षिण भारत की मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं के जीवन को उजागर करती हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि बानू मुश्ताक पहली गैर-हिंदू नहीं हैं जिन्हें दशहरा का उद्घाटन करने के लिए चुना गया है। साल 2017 में प्रख्यात कन्नड़ कवि और लेखक के.एस. निसार अहमद को भी यही सम्मान दिया गया था।