17 वर्षीय पाकिस्तानी नाबालिग की हत्या, सिर्फ़ इसलिए कि उसने ना कहा था

इस्लामाबाद की 17 वर्षीय सना यूसुफ़ की हत्या ने दक्षिण एशियाई समाज में फैले मर्दाना अहंकार और महिलाओं के प्रति हकदारी की मानसिकता को उजागर किया है। जानिए कैसे यह दर्दनाक घटना समाज के लिए एक आईना है।

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Vaishali Garg
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Pakistani Minor girl Killed for Saying No

Photograph: (Sana Yousaf Instragram; Pakistan Today (Inset))

Pakistani Minor girl Killed for Saying No: इस्लामाबाद की 17 वर्षीय लड़की सना यूसुफ़ को सोशल मीडिया पर अपनी दोस्ती का प्रस्ताव देने वाले 22 वर्षीय उमर हयात ने लगातार ‘ना’ सुनने के बाद गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में महिलाओं और लड़कियों की आज़ादी, उनके हक़ और उनकी आवाज़ पर पड़ी छाया का एक दर्दनाक प्रतिबिंब है।

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17 वर्षीय पाकिस्तानी नाबालिग की हत्या, सिर्फ़ इसलिए कि उसने ना कह दिया था

सना यूसुफ़ का दर्दनाक अंत और उनकी कहानी

सना यूसुफ़ ने हाल ही में अपना 17वां जन्मदिन मनाया था। एक प्रतिभाशाली और उज्जवल भविष्य वाली लड़की, जिसे उसकी आज़ादी जताने के लिए ही जान से मार दिया गया। 2 जून को उमर हयात ने इस्लामाबाद में उसके घर में घुसकर दो गोलियां मारीं। घटना से पहले उसने सना को लगातार सोशल मीडिया पर दोस्त बनने के लिए परेशान किया, लेकिन सना ने बार-बार मना कर दिया।

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उस दिन उमर ने लगभग 320 किलोमीटर की दूरी तय कर इस्लामाबाद पहुंचा, जहाँ उसने सना के जवाब न देने पर घर में घुसकर उसे गोली मार दी। हत्या के बाद वह सना का फोन लेकर फरार हो गया, जिससे पुलिस ने यह मान लिया कि वह सबूत मिटाना चाहता था। पुलिस ने उमर को फैंसलाबाद से गिरफ्तार कर लिया और हत्या में प्रयुक्त हथियार और फोन बरामद कर लिए।

मर्दाना अहंकार और ‘ना’ सुनने का ग़ुस्सा

यह घटना अकेली नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया के समाज में व्याप्त एक भयावह समस्या का हिस्सा है   महिलाओं की आज़ादी और हक़ को कुचलने वाली हिंसा। यहाँ ‘ना’ को स्वीकार न करना, पुरुष अहंकार की पैदाइश है। प्यार या चाहत के नाम पर महिलाओं का पीछा करना, उन्हें तंग करना, दबाव डालना यहाँ तक कि जब ‘ना’ सुनते ही हिंसा पर उतर आना एक स्वीकृत सामाजिक व्यवहार बन गया है।

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सना की हत्या एक कठोर सचाई को सामने लाती है कि मर्दाना हक़दारी की मानसिकता में, महिलाओं के फैसले और उनकी अस्मिता की कोई कद्र नहीं होती। एक 22 साल के शख्स का ego टूट गया क्योंकि एक 17 वर्षीय लड़की ने उसकी इच्छा को ठुकरा दिया। यह एक लड़ाई है उस पुरानी मानसिकता के खिलाफ, जो लड़कों को यह सिखाती है कि उन्हें महिलाओं का समय, शरीर, और आज़ादी ‘मिलनी ही चाहिए’।

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फेमिसाइड का काला सच और समाज की ज़िम्मेदारी

सना यूसुफ़ की मौत केवल एक परिवार या शहर की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे समाज की शर्मनाक विफलता है। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने बेटे कैसे पालते हैं और अपनी बेटियों की आवाज़ को कैसे सुनते हैं। यह महिला हिंसा का एक बड़ा हिस्सा है जिसे ‘फेमिसाइड’ कहा जाता है महिलाओं की हत्या केवल इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने अधिकार जताए।

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हमें सामाजिक मानसिकता बदलनी होगी, पुरुष अहंकार की जड़ें उखाड़नी होंगी और महिलाओं के अधिकारों को सम्मान देना सीखना होगा। महिलाओं को न केवल सुरक्षित महसूस कराना होगा, बल्कि उन्हें स्वतंत्रता और समानता भी देनी होगी।

सना यूसुफ़ की विरासत हमें क्या सिखाती है?

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सना यूसुफ़ की मौत का दर्द हम सबका दर्द है। यह कहानी हमें महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और उनके निर्णयों का सम्मान करने की सीख देती है। यह एक चुनौती है समाज के लिए कि वे पुरानी सोच को बदलें और एक ऐसे माहौल का निर्माण करें जहाँ हर लड़की अपनी आवाज़ बिना डर के उठा सके।

Pakistan Kill girl