गर्भपात को लेकर भारत की सप्रीम कोर्ट ने कहा है सभी महिलाएँ, एकल और अविवाहित 24 हफ़्ते तक की गर्भावस्था तक गर्भपात करवा सकती है। इसे क़ानूनी माना जाएगा। “विवाहित और अविवाहित के बीच भेदभाव उस रूढ़िवादी सोच को बढ़ावा देता है कि केवल विवाहित महिलाएँ ही योन संबंध बना सकती है”- जस्टिस डीवाई चंद्र्चूड, सप्रीम कोर्ट।
सप्रीम कोर्ट की तरफ़ से महिलाओं के लिए ऐतिहासिक फ़ैसला लिया है जिसके अनुसार सभी महिलाएँ गर्भपात करवा सकती है है इसके साथ ही मेडिकल टर्मिनेशन ओफ़ प्रेग्नन्सी ऐक्ट के तहत 22 से 24 हफ़्ते तक गर्भपात का हो सकता है।
मैरिटल रेप
मैरिटल रेप पर कोर्ट ने बात करते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ओफ़ प्रेग्नन्सी ऐक्ट में मैरिटल रेप को भी शामिल करना चाहिए। इसके साथ क्या कि अगर जबरन सेक्स से पत्नी गर्भवती होती है तो उसे सफ़े और क़ानूनी गर्भपात का अधिकार है। इससे उन औरतों को राहत मिलेंगी जो अनचाहे गर्भ को रखना पड़ता है।
सप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
बेंच ने कहा, विवाहित महिलाएँ भी सेक्शूअल असॉल्ट और रेप के दायरे में आती है। रेप शब्द का मतलब किसी महिला के साथ उसकी मर्ज़ी और सहमति के बिना रेप करना। चाहे ऐसे विवाहित संबंधों में हो। महिलाके साथ उसके पति ने मर्ज़ी के ख़िलाफ़ यौन संबंध के कारण गर्भवती हो जाती है ।
अंतरंग साथी की हिंसा रेप का रूप ले सकती है अगर हम इसे पहचान करने में गलती कर दे।यह बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है कि अजनबी ही ज़्यादातर यौन और लिंग आधारित हिंसा के लिए ज़िम्मेदार होते है। परिवार के लिहाज़ से देखे तो औरतें बहुत लंबे समय से सभी तरह की यौन हिंसा से गुजर रही है।
25 साल की महिला में दर्ज की थी याचिका
सप्रीम कोर्ट की तरफ़ से बढ़ा फैसला 25 साल की अविवाहित महिला की दर्ज याचिका पर लिया गया है जिसमें महिला 24 हफ़्ते के गर्भ को गिराने की आज्ञा माँगी थी। दिल्ली कोर्ट ने उसकी याचिका दर्ज ख़ारिज कर दी लेकिन सप्रीम कोर्ट में इसे इज़्ज़ात दे दी अगर महिला की ज़िंदगी को कोई ख़तरा न हो।
इससे पहले सप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था अगर विवाहित महिला को मेडिकल टर्मिनेशन ओफ़ प्रेग्नन्सी ऐक्ट के तहत 24 हफ़्ते की प्रेग्नन्सी में गर्भपात करवाने इज़्ज़ात है तो अविवाहित महिला को क्यों नहीं है, जबकि ख़तरा दोनों के लिए सम्मान है।