Kerala High Court: केरल हाई कोर्ट ने कहा कि महिला प्रजनन चॉइस का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत उसकी पर्सनल फ्रीडम का हिस्सा है। नाबालिक बलात्कार के लिए चिकित्सीय अबॉर्शन की अनुमति देता है।
केरल हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक नाबालिक बलात्कार पीड़िता का अपनी प्रेगनेंसी को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने का अधिकार अनुच्छेद 21 की पर्सनल फ्रीडम की परिभाषा के अंतर्गत आता है। 12 दिसंबर को किए गए इस फैसले में जस्टिस वी जी अरुण ने 17 साल की मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की के 26 वीक के गर्भ को खत्म करने के अनुरोध को मंजूरी दी।
Kerala High Court: Right To Reproductive Choice महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता है
कोर्ट ने कहा, "अनुच्छेद 21 एक महिला को अपनी पर्सनल फ्रीडम के एक हिस्से के रूप में अपनी खुद की रिप्रोडक्टिव विधियों को चुनने के अधिकार को मान्यता देता है, बशर्ते कि निश्चित रूप से उचित प्रतिबंध हों।" कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने कंक्लूजन निकाला कि पीड़िता की निरंतर गर्भावस्था उसके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है और सभी रिलेवेंट कारकों को ध्यान में रखते हुए डिप्रेशन और मनोविकृति के विकास के जोखिम को बढ़ा सकती है। कोर्ट ने कहा कि वह मेडिकल बोर्ड की सिफारिश और पीड़िता की मानसिक स्थिति के आलोक में मेडिकल अबॉर्शन के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए इच्छुक थी। आगे कोर्ट ने कहा, "मेडिकल बोर्ड की राय और पीड़िता की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, मैं अबॉर्शन की प्रार्थना की अनुमति देने के लिए इच्छुक हूं।" इसमें यह भी बताया गया कि देरी के प्रत्येक बीतते दिन के साथ पीड़ित की पीड़ा बढ़ेगी।
आरोप है कि पड़ोसी ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया, जिससे वह प्रेगनेंट हो गई। गाइनोक्लाजिस्ट की जांच के दौरान प्रेग्नेंसी की जानकारी मिलने के बाद परिवार अदालत पहुंचा। कोर्ट ने सरकारी अस्पताल में प्रक्रिया करने का भी आदेश दिया।
कोर्ट के मुताबिक, अस्पताल यह सुनिश्चित करने के लिए प्रभारी है कि जीवित पैदा होने पर बच्चे को सर्वोत्तम संभव देखभाल मिले ताकि वह एक स्वस्थ बच्चे के रूप में विकसित हो सके। कोर्ट ने आगे कहा कि, अगर पेटीशनर बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ है, तो राज्य और उसकी एजेंसियां ऐसा करेंगी और बच्चे के सर्वोत्तम हितों और कानूनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बच्चे को चिकित्सा देखभाल और सुविधाएं प्रदान करेंगी। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015।