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आज के दौर में भी कायम हैं Patriarchal Marriage की 5 रीतियां

भारत में विवाह की प्राचीन परंपराएँ और रीतियाँ आज भी कई पितृसत्तात्मक सिद्धांतों पर आधारित हैं। ये सिद्धांत न केवल महिलाओं की स्थिति को कमजोर करते हैं बल्कि समाज में लैंगिक असमानता को भी बढ़ावा देते हैं।

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Dibya Debasmita Pradhan
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Patriarchal marriage

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5 Principles Of Patriarchal Marriage That Still Exist: भारत में विवाह की प्राचीन परंपराएँ और रीतियाँ आज भी कई पितृसत्तात्मक सिद्धांतों पर आधारित हैं। ये सिद्धांत न केवल महिलाओं की स्थिति को कमजोर करते हैं बल्कि समाज में लैंगिक असमानता को भी बढ़ावा देते हैं। इन्हें चुनौती देना और समाप्त करना आवश्यक है ताकि महिलाओं को समानता और न्याय मिल सके। इसके लिए कानूनी सुधारों के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता और शिक्षा भी आवश्यक है ताकि समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जा सके।

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आज के दौर में भी कायम हैं Patriarchal Marriage की ये 5 रीतियां

1. Kanyadaan 

कन्यादान भारतीय विवाह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। इस प्रथा में वधू के पिता अपनी बेटी को वर को 'दान' करते हैं। यह प्रथा इस सोच को मजबूत करती है कि महिलाएं पुरुषों की संपत्ति हैं और उनका अधिकार पिता से पति को सौंपा जा रहा है। यह न केवल महिलाओं की स्वतंत्रता को नजरअंदाज करता है, बल्कि उनकी स्वायत्तता को भी सीमित करता है।

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2. Dowry System 

दहेज प्रथा एक महत्वपूर्ण पितृसत्तात्मक प्रथा है जिसमें वधू के परिवार को वर के परिवार को पैसे, कपड़े, गहने और अन्य सामान देना पड़ता है। यह प्रथा शादी को एक आर्थिक सौदा बना देती है और वधू के परिवार पर भारी वित्तीय बोझ डालती है। इसके कारण महिलाओं को अक्सर उत्पीड़न, हिंसा और कभी-कभी मौत का सामना करना पड़ता है। दहेज प्रथा को अवैध घोषित किया गया है, लेकिन यह अभी भी कई जगहों पर जारी है।

3. Domestic Violence But Not Divorce 

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पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को सहनशीलता और संयम का प्रतीक माना जाता है। घरेलू हिंसा एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन समाज इसे एक निजी मामला मानता है और महिलाओं को सहने की सलाह दी जाती है। दूसरी ओर, तलाक को एक बुरा और अस्वीकार्य कदम माना जाता है। इससे महिलाओं को अपमानजनक और हिंसक रिश्तों में बने रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति और खराब हो जाती है।

4. Male Headship

पितृसत्तात्मक विवाह प्रणाली में पुरुषों को परिवार का मुखिया माना जाता है। विवाह के बाद, महिलाओं को अपने पति के निर्देशों और आदेशों का पालन करना होता है। यह प्रणाली महिलाओं की निर्णय लेने की शक्ति को कम करती है और उन्हें घर के कार्यों और बच्चों की देखभाल तक सीमित कर देती है। पुरुष प्रधानता की यह धारणा महिलाओं के आत्मसम्मान और स्वायत्तता पर गहरा असर डालती है।

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5. Marital Rape Acceptance 

भारतीय समाज में वैवाहिक बलात्कार को अभी भी एक गंभीर अपराध के रूप में नहीं देखा जाता है। यह मान्यता है कि विवाह के बाद पति को अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार है और वह उसकी सहमति के बिना भी शारीरिक संबंध बना सकता है। यह महिलाओं के यौन और शारीरिक अधिकारों का उल्लंघन है और उनके मानवाधिकारों का हनन करता है। वैवाहिक बलात्कार की स्वीकृति से महिलाओं के प्रति समाज की पुरानी और असंवेदनशील सोच दिखाई देती है।

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