Marital Rape Torture Or Authority: वर्तमान समय में वैवाहिक बलात्कार चर्चा का जरूरी विषय बना हुआ है। इसे जीवन के अधिकार और महिला की स्वतंत्र इच्छा के संदर्भ में देखा जा रहा है, जिससे कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। महिलाओं के शोषण के विभिन्न रूपों में एक और कड़ी है वैवाहिक बलात्कार, जिसे अपराध घोषित करने की मांग बढ़ रही है। वैवाहिक बलात्कार एक ऐसा मुद्दा है जिस पर कानून और समाज में कभी एकराय नहीं हो सकती। अगर इसे कानूनी मान्यता मिल भी जाती है, तो यह दहेज प्रथा जैसे कानूनों की तरह ही केवल कागजों पर सीमित रह सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब समाज दशकों पुराने दहेज कानून को लागू नहीं कर पा रहा है, तो इस विवादास्पद कानून को कैसे स्वीकार करेगा? अक्सर महिला का शरीर उसका अपना न होकर समाज की संपत्ति माना जाता है। हमारा समाज तय करता है कि उसे कब और कैसे इसका उपयोग करना है। आपके मन में भी कभी न कभी यह सवाल जरूर उठा होगा। महिलाओं के शोषण के कई रूपों में अब एक और शोषण जुड़ गया है, जो भले ही समाज में पहले से मौजूद हो, लेकिन अब इसे परिभाषित करने की मांग हो रही है। आइए आज इस जटिल और विवादास्पद विषय वैवाहिक बलात्कार पर विचार करें।
वैवाहिक बलात्कार अत्याचार या अधिकार
क्या है मैरिटल रेप की परिभाषा
वैवाहिक बलात्कार, जिसे मैरिटल रेप भी कहा जाता है, का अर्थ है शादी के बाद होने वाला बलात्कार। लंबे समय से यह मांग की जा रही है कि यदि पति अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ यौन संबंध बनाता है तो इसे वैवाहिक बलात्कार माना जाए। 2015 में, मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में पहला मामला दर्ज किया गया था, लेकिन सरकार द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे (Affidavits) में इसे अस्वीकार कर दिया गया। इसका कारण यह बताया गया कि भारतीय संस्कृति में शादी को एक पवित्र संस्कार माना जाता है। यदि मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया गया, तो यह संस्कार का अपमान होगा। दूसरी ओर, इसे अपराध नहीं बनाने पर महिला की गरिमा और प्रतिष्ठा का अपमान होगा। इसी वजह से यह मुद्दा विवादास्पद बना हुआ है।
क्या है मैरिटल रेप पर विवाद होने के कारण
मैरिटल रेप पर विवाद का मुख्य कारण यह है कि भारतीय परंपरा में शादी को एक संस्था या पवित्र संबंध माना जाता है। एक पक्ष का कहना है कि शादी जैसे पवित्र संबंध को बलात्कार जैसे घृणित अपराध से जोड़ना भारतीय विवाह संरचना को कमजोर करने वाला है। उनके अनुसार, यदि मैरिटल रेप को कानूनी तौर पर अपराध घोषित कर दिया जाता है, तो इससे सामाजिक व्यवस्था टूट जाएगी और परिवार एवं रिश्तों में विघटन होगा। दूसरी ओर, एक और पक्ष का मानना है कि महिला के शरीर पर सबसे पहले उसका अधिकार है और उसे इसके लिए आवाज उठानी चाहिए। आजकल महिलाओं के साथ होने वाले शोषण और यौन उत्पीड़न को ध्यान में रखते हुए, वे इसे कानूनी अपराध बनाने की बात करते हैं।
भारतीय कानून और मौलिक अधिकारों में मैरिटल रेप की भूमिका
हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा 375/376 के अंतर्गत बलात्कार को एक अपराध माना गया है, धारा 375 के अपवाद 2 में उल्लेख है कि 'यदि पति अपनी पत्नी के साथ सहवास (Cohabitation) करता है, बशर्ते कि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम न हो, तो यह बलात्कार नहीं माना जाएगा।' इस अपवाद को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ और इसे मौलिक अधिकारों से जोड़ा जाने लगा। मैरिटल रेप को महिला की सम्मान और गरिमा से जोड़ते हुए इसे समानता के अधिकार और दैहिक अधिकारों का उल्लंघन बताया जा रहा है। महिला की इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाना उसके सम्मान और गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन है, इसलिए वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। लेकिन यदि इसे संस्कृति के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो यह अधिकार समाज के हाथ में होता है, जिसमें निर्णय लेने का हक किसी व्यक्ति को नहीं, बल्कि परंपराओं को है। आखिरकार, वही परंपराएँ सामाजिक ढांचे का आधार होती हैं।
महिलाओं का सेक्सुअल डिजायर कितना जरूरी है
बिना सहमति के किया गया यौन संबंध बलात्कार ही कहलाता है। यौन सुख कोई अभिनय नहीं है, यह दो व्यक्तियों के बीच आनंद उत्पन्न करने वाला प्रोसेस है। सेक्स यानी संभोग का अर्थ है, जिसमें "सम" से शुरू होकर "भोग" पर समाप्त होता है। जैसे दो लोगों के बीच संवाद होता है, वैसे ही सहमति से किया गया यौन संबंध सम्भोग कहलाता है। दोनों के बीच सहमति वाला आनंद ही वास्तविक सम्भोग है, वरना वह विषम भोग कहलाता है। शायराना अंदाज में कहें तो, "मोहब्बत की आखिरी मंजिल हमबिस्तरी हो सकती है, लेकिन हमबिस्तरी की आखिरी मंजिल मोहब्बत हो, यह जरूरी नहीं।" इसका मतलब है कि यदि दोनों को सेक्स में आनंद नहीं आ रहा है, तो वह विषम भोग रहेगा।
क्या रेप और मैरिटल रेप दो अलग-अलग कांसेप्ट हैं।
'ना' का मतलब 'ना' होता है, यह आज की कई फिल्में हमें सिखाती हैं। यहां सवाल सहमति और इच्छा का है, जो दोनों ही अलग-अलग पहलू हैं। सहमति (Consent) डरा-धमकाकर या जोर-जबरदस्ती से प्राप्त की जा सकती है, लेकिन इसमें इच्छा शामिल नहीं होती। यदि हम बलात्कार और वैवाहिक बलात्कार की बात करें, तो बलात्कार वह होता है जिसमें कोई अजनबी या परिचित व्यक्ति यह अपराध करता है। कानून में इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। दूसरी ओर, वैवाहिक बलात्कार में शादीशुदा जीवन में पति द्वारा पत्नी की इच्छा के बिना, जोर-जबरदस्ती से संभोग करना शामिल है, लेकिन यह कानून में अपराध के रूप में दर्ज नहीं है। कानूनी दृष्टि से दोनों ही स्थितियाँ अलग-अलग मानी जाती हैं।