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Allahabad High Court Sets a Harsh Threshold: जब भी किसी व्यक्ति के साथ अन्याय होता है तो उसकी सबसे बड़ी उम्मीद यही होती है कि कानून उसे इंसाफ जरूर दिलाएगा और इस बात में कोई भी शक नहीं है। लेकिन जब कानून के रक्षक ही संवेदनशीलता भूल जाते हैं या फिर कुछ ऐसे जजमेंट पास कर देते हैं तो लोगों में भी आक्रोश आ जाता है और सवाल पूछने जरूरी हो जाते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से 17 मार्च को 14 वर्षीय नाबालिग के बलात्कार मामले पर सुनवाई की गई जिसमें यह कहा गया कि लड़की को गलत तरीके से छूना या फिर उसके कपड़े उतारना रेप की कोशिश करना नहीं है। ऐसे में यह सवाल पूछना बनता है कि कानूनी मदद पाने के लिए एक महिला को कितनी दरिंदगी को सहन करना पड़ेगा?
इलाहाबाद हाई कोर्ट विवाद: कानूनी मदद पाने के लिए एक महिला के साथ कितनी दरिंदगी पर्याप्त?
इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court)की तरफ से फैसला सुनाया गया जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा संवत: संज्ञान लिया गया और कड़ा एतराज जताया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह कहा था कि नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं माना जा सकता। इस फैसले के बाद शोभा गुप्ता द्वारा We the Women of India नामक NGO की तरफ से पत्र भेजा गया जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले पर सुनवाई हुई और इसके कुछ हिस्सों को असंवेदनशील कहा गया।
कानूनी मदद के लिए कितना झेलना होगा
एक महिला को अपने साथ हो रहे हैं दुष्कर्म के न्याय के लिए कितना सहन करना पड़ेगा? यह कैसे डिफाइन होगा कि किसी महिला के साथ गलत हुआ है या नहीं? उसे किन-किन सवालों में से गुजरना पड़ेगा? क्या हर बार हम इस बात का इंतजार करेंगें जब किसी महिला के साथ Nirbhaya या RG Kar जैसा दुष्कर्म होगा तो हम कठोर सजा सुनाएंगे या फिर सड़कों पर मशालें लेकर इंसाफ की भीख मांगेंगे।
अपराधियों का हौसला बढ़ता है
जब हाई कोर्ट की तरफ से ऐसे पहले सुनाए जाएंगे तो अपराधियों का हौसला और बढ़ेगा है। इससे यह पता चलता है कि कैसे आज भी पीड़िता के नजरिया से सोचा ही नहीं जाता है कि जब उसके साथ कुछ भी गलत या फिर अनकंफरटेबल हो रहा होगा तो उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति क्या होगी? क्या वह महिला इतनी सक्षम होगी कि ऐसे दरिंदगी को सहन कर पाई होगी लेकिन यहां पर हमेशा Victim Blaming की जाती है।
लड़की के साथ छेड़खानी होती है तो स्कूल कॉलेज जाना उसका ही बंद होता है। लड़के को कोई पलट कर सवाल भी नहीं पूछता है कि तुमने ऐसा क्यों किया क्योंकि 'Men Wll Be Men' का प्रचलन आज भी मौजूद है। इस धारणा के चलते हमने मर्दों का हौसला इतना ज्यादा बढ़ा दिया है कि अब ऐसी घटनाएं हमें नॉर्मल लगने लग गई है। हमारा गुस्सा तभी फूटता है जब एक महिला का रेप करने के बाद उसकी हड्डियां तोड़ दी जाती है। उसकी वजाइना में रॉड घुसा दी जाती है या फिर उसका मर्डर हो जाता है।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Of India) का फैसला बिल्कुल सही है और उनकी तरफ से इस सुनवाई के कुछ हिस्सों पर रोक लगा दी गई है और इस असंवेदनशील कहा गया है। जब कानून का रवैया ही महिलाओं के विरुद्ध हो जाएगा या फिर कानून महिलाओं की स्थिति को समझने में नाकाम हो जाएगा तब तक महिलाओं की सुरक्षा या फिर उनकी वेल्बीइंग को लेकर खतरा बना रहेगा और ऐसे में समाज भी महिलाओं को ही दोषी ठहराया जाएगा।