सपने हर कोई देखता है। उन्हें पूरा भी करना चाहता है। लेकिन लड़कियाँ सिर्फ़ सपने देख सकती है उन्हें पूरा नहीं कर सकती है,क्यों? क्योंकि उन्हें बाहर निकलने की इज़्ज़ात नहीं है उनके घर से बाहर निकलने से परिवार की कोई इज़्ज़त नहीं रहती है।इसलिए बहुत सी लड़कियाँ कुछ कर नहीं पाती या फिर उन्हें बहुत ज़्यादा लड़ना पड़ता है।
सपनों का कोई ज़ेंडर नहीं
हमारे समाज ने तों सपनों का भी जेंडर तह किया है। यह सपने लड़कियाँ देख सकती है यह वाले नहीं। अगर कोई लड़की कहे मुझे खेलों, राजनीति या पाइलट बनना है तो बहुत कम परिवार है जो लड़कियों का साथ देते है। ज़्यादातर तो लड़कियों को घर में क़ैद करने वाले ही होते है।
उनके हिसाब से लड़की शादी करें और अपने सुसराल जाकर अपने बच्चे पाले। लेकिन सपनों का कोई जेंडर नहीं होता है।किसी भी सपने को पूरा करने के लिए मेहनत, लगन और जनून चाहिए ना कि आपका ज़ेंडर। वह व्यक्ति ज़िंदगी में सफल में हो जाएँगा जो मेहनत करेगा चाहे वह लड़का हो या लड़की।
समाज नहीं करता स्वीकार
समाज उन लड़कियों को स्वीकार नहीं करता जो लड़कियाँ ऐम्बिशस होती है। उनके अनुसार वे लड़कियाँ समाज के नियमों को तोड़कर आगे बढ़ रहीं है। उनका पता है अगर लड़कियाँ ऐम्बिशस हो गई तो वे इस रूढ़िवादी समाज के ऊपर सवाल उठाने लगेगी। वे इनके बनाए नियमों के अनुसार नहीं चलेगी।
आज भी समाज औरत का स्तर नही उठने देना चाहता। वह उसे वैसे ही मर्द के नीचे देखना चाहता है। जिसे वह लोग आसानी से अपनी मर्ज़ी के अनुसार चला सके अगर औरत ज़्यादा पढ़- लिख जाएगी तो वे फिर इनके नीचे नहीं लगेगी। इनके अत्याचारों को सहन नहीं करेंगी। हर ग़लत चीज़ के ऊपर सवाल उठने लगेगी। इसलिए समाज ऐम्बिशस औरतों को स्वीकार नहीं करता है।
सोच बदलने की ज़रूरत
विकास की पहली शर्त हमारी सोच में बदलाव है। इतने साल बाद भी हमारी सोच नहीं बदली है।हमें अपनी सोच को बदलने की बहुत ज़रूरत है। सोच बदलेगी तभी बदलाव आएगा। तभी हम आगे बढ़ पाएँगे और समाज में यह बराबरी आएँगी।हम सबसे पहले इस सोक को बदलना पढ़ेगा हम सब इंसान है औरत या मर्द में कोई फ़र्क़ नहीं होता।
यह दोनों एक ही गाड़ी के दो पहिये है अगर एक भी पीछे रह गया तो गाड़ी नहीं चलेगी। अगर आप सिर्फ़ मर्द को ही आगे जाने के मौक़े दे रहे हो औरत को उसके मुक़ाबले कम दे रहे ऐसे तो विकास होगा नहीं। विकास के लिए तों दोनो का आगे बढ़ना बहुत ज़रूरी है।