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क्या पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं को बराबरी मिल पाएगी?

इस बात में कोई भी शक नहीं है कि आज भी हमारा समाज पुरुष प्रधान है। ऐसा कहा जाता है कि आज के समय में महिलाएं आजाद हैं और वे जिंदगी को अपने तरीके से जी सकती हैं।

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Rajveer Kaur
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Image Credit: Vecteezy

Can Women Achieve Gender Equality In Male Dominance: इस बात में कोई भी शक नहीं है कि आज भी हमारा समाज पुरुष प्रधान है। ऐसा कहा जाता है कि आज के समय में महिलाएं आजाद हैं और वे जिंदगी को अपने तरीके से जी सकती हैं। वहीं असलियत में बहुत कम औरतें ऐसी हैं जिनके हाथ में अपनी जिंदगी की डोर है। जो लोग ऐसा बोलते हैं कि महिलाओं को रोक-टोक नहीं है, वही सबसे ज्यादा उनकी जिंदगी को कंट्रोल करते हैं और उन्हें उनकी चॉइस के लिए जज करते हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कभी महिलाएं इस पुरुष-प्रधान समाज में बराबरी कर पाएगी? चलिए आज इस सवाल पर चर्चा करते हैं-

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क्या पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं को बराबरी मिल पाएगी?

इस सवाल का जवाब हां भी है और ना भी। अब आप सोचते होंगे कि यह कैसा जवाब है क्योंकि या तो ऐसा हो सकता है या नहीं। इसके लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि आज भी इस समाज में पुरुषों का हक और पावर ज्यादा है। हर आम घर में घर का मुखिया पुरुष ही है और उसके बनाए हुए रूल से ही घर चलता है। वह व्यक्ति खुद चड्डी बनियान में घर की औरतों के सामने बैठ सकता है लेकिन उसके घर की औरतों को मर्जी का कुछ पहनने तक की आजादी नहीं है। अगर घर से बाहर भी जाना है तो बदन पूरा ढका हुआ हुआ होना चाहिए। 

समाज में भी देखा जाए तो लड़कियों के ऊपर ज्यादा बंदिशें लगाई जाती हैं। लड़कों के लिए समाज का रवैया ऐसा है कि यह कुछ भी कर सकता है और उनकी बड़ी से बड़ी गलती की भी माफी होती है। लड़की का रेप भी हो जाए तब भी समाज में गलत उसको ही ठहराया जाता है और घर से बाहर जाना भी उसका बंद किया जाता है। शर्मिंदगी का सामना उसके परिवार को करना पड़ता है। इसके साथ पढ़ाई लिखाई बंद हो जाती है लेकिन वहीं पर जिस लड़के ने दुष्कर्म किया है, उसे समाज में बिल्कुल भी गलत नजरों से नहीं देखा जाता है और न ही उसकी गलती मानी जाती है बल्कि लड़की को कहा जाता है कि तुम्हें रात के समय घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए था या तुम्हें छोटे कपड़े नहीं पहनना चाहिए थे।

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इसके साथ ही महिलाओं को हर चीज के लिए पुरुषों को पूछना पड़ता है। अगर पत्नी का शॉर्ट ड्रेस पहनने का मन कर रहा है तो सबसे पहले वो इजाजत पति से लेगी। अगर महिला रात को बाहर घूमना चाहती है तो उसे पहले पूछना पड़ेगा कि क्या वह ऐसा कर सकती है। वहीं अगर रात को बेटा घर देरी से लौटता है तो परिवार वाले कभी नहीं पूछते कि तुम्हें आने में इतनी देरी क्यों हो गई या फिर तुम इतनी रात बाहर क्या कर रहे थे लेकिन लड़की से यह सवाल जरूर पूछा जाता है। यह बातें देखने को छोटी लगती हैं लेकिन इनका असर बहुत बड़ा है। इसके कारण ही हम सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच से गुजरते आ रहे हैं।

महिलाओं को इस समाज में बराबरी मिल सकती है लेकिन उसके लिए हमें अपनी सोच और व्यवहार को बदलना होगा। हमें जेंडर देखकर निर्णय नहीं लेना है बल्कि सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखनी है। इसके साथ ही अब हमें लड़कों को भी एजुकेट करना है और उन्हें यह बताना है कि उन्हें औरतों के साथ कैसे पेश आना है। इसके साथ ही घर के काम अगर हम अपनी बेटियों को सिखाते हैं तो वह अपने बेटों को भी सिखाने की जरूरत है। 

जैसे हम लड़कों को उनकी चॉइस के लिए जज नहीं करते हैं वैसे ही हमें लड़कियों के लिए भी सोचना है। अब बहुत सारे लोग इस बात पर तर्क करते हैं कि लड़का और लड़की कभी बराबर नहीं हो सकते हैं। उनके लिए यह जवाब है कि एक लड़का और लड़की बायोलॉजिकली कभी भी एक जैसे नहीं हो सकते और ना ही यह तार्किक बात है। इस अंतर को कभी नहीं मिटाया जा सकता लेकिन जेंडर के कारण किसी दूसरे व्यक्ति को नीचा दिखाने या फिर अयोग्य मानना सबसे बुरी चीज है। अगर आप यह सोचते हैं कि एक लड़की सिर्फ इसलिए ड्राइविंग नहीं कर सकती कि वह लड़की है तब आपकी सोच में खराबी है। इस सोच को ही बदलना है। अगर एक औरत बच्चे को जन्म दे सकती है तो कैसे आप उसे कमजोर कह सकते हैं या फिर उसे बेचारी बना सकते हैं। हमें औरतों को अबला नहीं बनाना है बल्कि उन्हें सशक्त करना है जो अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ाई कर सके।

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