Educate Your Daughters: बेटी पढ़ाओ, लेकिन बहू घर संभालो? कब बदलेगा यह दोहरापन?

पढ़ी-लिखी लड़की शादी करके बहू बनकर किसी नए घर में जाती है, तो उससे वहां अकसर यहीं उम्मीद की जाती है कि वह उनका घर संभाले, परिवार की देखभाल करें और अपने करियर के साथ समझौता करें। आइए जानें यह दोहरापन समाज में कब बदलेगा?

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Udisha Mandal
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Educate Daughters, But Expect Daughters-in-Law To Stay Home? When Will This Double Standard End?

Photograph: (Pinterest)

Educate Daughters, But Expect Daughters-in-Law To Stay Home? When Will This Double Standard End?: आजकल हमारे समाज में लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोड़ दिया जाता है इसे बढ़ावा देने के लिए "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" जैसे अभियान चलाए जाते हैं। माता-पिता अपनी बेटियों को अच्छे स्कूल-कॉलेज में पढ़ाते हैं, साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा भी देते हैं, और समाज में उन्हें आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध करवाते हैं। लेकिन जब वही पढ़ी-लिखी लड़की शादी करके बहू बनकर किसी नए घर में जाती है, तो उससे वहां अकसर यहीं उम्मीद की जाती है कि वह उनका घर संभाले, परिवार की देखभाल करें और अपने करियर के साथ समझौता करें। आइए जानें यह दोहरापन समाज में कब बदलेगा?

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बेटी पढ़ाओ, लेकिन बहू घर संभालो? कब बदलेगा यह दोहरापन?

1. बेटियों को पढ़ाना क्यों जरूरी है

आज के समय बेटियों को पढ़ाना बहुत जरूरी है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें, लेकिन शादी के बाद उनका करियर कई बार "गृहस्थी संभालने" की एक्सपेक्टेशंस के नीचे दब जाता है। बेटियों की शिक्षा उनका अधिकार ही नहीं, बल्कि इससे समाज का विकास भी होता है। एक शिक्षित बेटी न केवल अपने जीवन को संवार सकती है, बल्कि अपने परिवार, समाज और देश की तरक्की में भी अहम भूमिका निभाती है।

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2. एक बहू के सपनों का सम्मान कब किया जाएगा

जब एक लड़की शादी के बाद किसी नए घर में जाती है, तो उससे अकसर यही उम्मीद की जाती है कि वह अपने करियर से ज़्यादा अपने घर की ज़िम्मेदारियों को प्राथमिकता दे। क्या एक बहू के सपने मायने नहीं रखते? अगर उसे पढ़ाया गया है, तो क्या वह अपने सपनों को पूरा करने का अधिकार भी नहीं रखती?

3. घर की जिम्मेदारी सिर्फ बहू ही क्यों संभालें

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हमेशा सिर्फ एक बहू को ही क्यों कहां जाता है कि वह घर संभालें। बल्कि बेटे से भी यह कहना चाहिए की वह घर संभालें। लेकिन बहू से ही यह अपेक्षा की जाती है। अगर घर चलाना एक समान ज़िम्मेदारी है, तो यह दायित्व सिर्फ महिला पर ही क्यों डाला जाता है? जब तक यह सोच नहीं बदलेगी, तब तक समाज में असली समानता नहीं आ पाएगी।

4. समाज में बदलती सोच लाना जरूरी 

समाज में बदलाव तो आया है, लेकिन लोगों की सोच में नहीं। समाज में बेटी को पढ़ाने और बहू को घर तक सीमित करने की यह मानसिकता को बदलने की बहुत ज़रूरत है। महिलाओं को शादी के बाद भी अपने करियर, सपनों और जीवन के फैसले खुद लेने की आज़ादी मिलनी चाहिए।

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5. समाज में बदलाव कब और कैसे आएगा?

हमारे समाज में बदलाव तभी आ सकता है जब माता-पिता अपनी बेटियों को यह सिखाएंगे कि उनकी पढ़ाई सिर्फ शादी तक ही सीमित नहीं है। इसी के साथ जब ससुराल वाले यह मानने लगेंगे कि बहू भी एक व्यक्ति है, जिसकी अपनी पहचान, इच्छाएं और कुछ सपने हैं, तब यह दोहरापन खत्म होगा। घर और करियर दोनों की जिम्मेदारी पति-पत्नी को समान रूप से निभानी चाहिए।

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