/hindi/media/media_files/2025/10/10/shethepeople-images-8-2025-10-10-14-50-54.png)
Photograph: (Pinterest & AI image)
नेचर ने हर इंसान को समान रूप से जीने का अधिकार दिया है, लेकिन पितृसत्ता ने महिलाओं से कई अधिकार छीन लिए हैं। इनमें से एक है माँ बनने का अधिकार। हर महिला को अपने शरीर और उससे जुड़े फैसले लेने का हक़ होना चाहिए।
फिर भी कई बार समाज और परिवार वाले महिलाओं से उनका ये अधिकार छीन लेते हैं। एक महिला को माँ बनना है या नहीं, या कब माँ बनना है, ये तय करने का अधिकार नहीं दिया जाता। यहाँ बात केवल महिलाओं के पर्सनल राइट की ही नहीं है बल्कि उनके मेंटल और फिज़िकल फ्रीडम की भी है।
Her Body Her Choice: “एक औरत को कब माँ बनना है” ये तय करने का अधिकार महिला को क्यों नहीं?
महिला का अधिकार
अक्सर देखा जाता है कि अधिकतर घरों में महिलाओं को शादी के कुछ समय बाद ही जल्द माँ बनने की सलाह या आदेश दिए जाने लगते हैं। कई बार समाज और घर परिवार के लोग कहते हैं, “अब समय आ गया है” या “तुम्हें जल्दी माँ बनना चाहिए।” लेकिन असल में ये फैसला केवल महिला को ही करना चाहिए। इसका सीधा असर उसके हैल्थ, करियर और मेंटल स्टेट पर पड़ता है। हर महिला को ये तय करने का अधिकार है कि वह कब और कितने बच्चे चाहती है।
फिज़िकल और मेंटल हैल्थ पर असर
जल्दी माँ बनने का दबाव और फिर अनचाहे बच्चे की ज़िम्मेदारी महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों पर बुरा असर डालती है। जिन महिलाओं को अपने लिए फैसले लेने की आज़ादी नहीं मिलती, उन्हें अक्सर uncontrolled pregnancy, स्ट्रेस और थकान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सोसाइटी प्रेशर और डिस्क्रिमिनेशन
आज भी कई जगहों पर महिलाओं को उनके परिवार और सोसाइटी से ताने, criticism और प्रेशर सहना पड़ता है। कई बार महिलाओं को नौकरी, पढ़ाई या अपने पर्सनल plans के बावजूद जल्दी ही माँ बनने को कहा जाता है। ये केवल उनकी फ्रीडम को लिमिट करता है, साथ ही gender inequality को भी बढ़ावा देता है। पुरुषों को ये दबाव कभी महसूस नहीं होता क्योंकि बच्चे होने के बाद ज़्यादातर ज़िम्मेदारियां महिलाओं को सौंप दी जाती हैं। फिर चाहे वह महिला करियर ओरिएंटेड ही क्यों न हो, उसे कहीं कोई छूट नहीं दी जाती।
एजुकेशन और अवेयरनेस है ज़रूरी
आज महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना बेहद जरूरी है। परिवार और समाज को ये समझाना भी ज़रूरी है कि महिला के शरीर पर उसका अपना हक़ है। एजुकेशन और बातचीत करके महिलाओं को यह भरोसा दिलाना होगा कि उनके फैसलों का सम्मान किया जाएगा। ये कदम समाज में नयापन और बदलाव ला सकता है।