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भारतीय समाज में माँ होना सिर्फ भूमिका या किरदार नहीं, एक ऐसा सांस्कृतिक आदर्श हैं- जिसमें त्याग, सहनशीलता और पूर्णता की उम्मीदें जुड़ीं होती हैं। समाज में माँ से हमेशा बच्चों के लिए उपलब्ध होना, उनकी हर आवश्यकता चाहे कहे या न कहे महसूस करना और उनकी परवरिश सही तरह से करना ऐसी अनकही आशा हैं जो उससे माँ बनने के समय ही जुड़ जाती हैं। यह अनकही "अच्छी माँ" की उम्मीदें ऐसा अदृश्य बोझ है जो एक माँ पर शारीरिक थकान के साथ साथ भावनात्मक बोझ भी डाल देता हैं।
कितना गहरा है वह अनकहा बोझ, जो एक भारतीय माँ को “अच्छी माँ” बनने के लिए मजबूर करता है?
अकेले परवरिश का जिम्मा
अक्सर मां को ही बच्चों की परवरिश के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, आज भी पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं को घर की सारी जिम्मेदारी और कर्तव्यों के लिए जिम्मेदार मानता हैं। बच्चों की जिम्मेदारी और उनके जीवन में अधिक भूमिका मां की होती हैं और यह उन्हें इमोशनल रूप से थका देता हैं।
हमेशा परफेक्ट होना
मां से Good Mother होने की उम्मींद की जाती हैं, कि वह पहले से यह सब जानती होंगी और वह गलती नहीं कर सकती है। मां को इंसान से अधिक देवी और परफेक्शन की प्रतिमा की उपमा से अधिक सजाया जाता है। मां को एक आम इंसान की भांति गलती करने की आजादी समाज स्वीकारता ही नहीं, यही उन्हें न दिखने वाला बोझ बन कर उनमें घुटन और भावनात्मक दबाव बनाता हैं।
गिल्ट और overprotection को बढ़ावा देना
यदि मां अपने बच्चे को आजादी और सही चुनाव का नजरिया देती है, तो परिवार और समाज अक्सर उसे "बुरी मां" और "स्वार्थी मां" का टैग दे देते है। यह सब उसे गिल्ट में डाल देता है, और वो अपने बच्चों को overprotectiveness दिखाने लग जाती हैं।
संस्कृति और समाज की उम्मीदें
समाज अक्सर मां से हर समय बच्चे के लिए हर रूप में उपलब्ध होने के साथ साथ, सारे कर्तव्य और परवरिश का जिम्मेदारी के लिए रिस्पॉन्सिबल समझता हैं। और जब मां इसमें फैल होती है तो तानो के साथ साथ उसे ग्लानि से भी भर देता हैं।
परिभाषा तय होना
समाज में कुछ ऐसे किरदार हैं जिनसे हमेशा महिलाओं की तुलना की जाती हैं, और उन्हीं पदचिन्हों पर चलने की उम्मीद होती हैं। यदि Indian Mother's कुछ नए तरीके से और मनोविज्ञान के हिसाब से अपने बच्चे की परवरिश करे तो परिवार और समाज उसे नई नई ऐसी परिभाषा देता है जो उसे अपने ही काम को करने में ग्लानि और खीझ महसूस होगीं।
मेरे आसपास का अनुभव
मैने अपने आसपास कहीं नई मां को देखा हैं जो हर रूप में अपने बच्चे के लिए बेहतर करने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन किसी गलती पर अक्सर उन्हें परिवार और समाज से तानों का सामना करना पड़ता हैं। भारतीय समाज में एक महिला को ही घर के सारे जिम्मेदारी और कर्तव्यों से जोड़ दिया जाता हैं, ऐसे में बच्चों की परवरिश उसके लिए सबसे बड़ा टास्क बन जाती हैं।
मैं एक मां से मिली जिनकी बच्ची को भाषा बोलने में थोड़ी तकलीफ हैं, हालांकि मां स्पीच थैरेपी की मदद से बच्चे में सुधार का रही है, और संयम से अपने बच्चे का ध्यान रख रही हैं। पर परिवार के अन्य सदस्य और समाज मां को ही उसके लिए जिम्मेदार ठहराता हैं।
नया कदम जो मां को इस परिभाषा को तोड़े
मां होना आसान नहीं, पर हम सब इसे आसान बना सकते है, एक सहारे के माध्यम से। तो जब भी आप अपने परिवार में या समाज में एक महिला जो अभी मां बनी है, या मां बन चुकी हैं से मिले या उन्हें ऐसे hidden burden से घिरा हुआ देखे तो उनसे कहे कि "हम आपके साथ हैं," और पुरुष सदस्यों को भी जिम्मेदारी में हाथ बांटने के लिए कहे, इससे समाज में जागरूकता आएंगी और आप बच्चों की परवरिश में बेहतर योगदान दे पाएंगी और एक मां को सशक्त बना पाएगी ।