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कैसे पुरुषों को पितृसत्तात्मक सोच से महिलाओं को दबाने का मौका मिलता है

महिलाएं आज भी पुरुष प्रधान समाज में जी रही हैं क्योंकि इससे पुरुषों को बहुत ज्यादा फायदा मिलता है। जब समाज में पितृसत्तात्मक सोच का बोलबाला होता है तो इसके अनगिनत फायदे पुरुषों को ही मिलते हैं

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Rajveer Kaur
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6 OTT Releases In January 2025

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How patriarchal thinking allows men to oppress women? महिलाएं आज भी पुरुष प्रधान समाज में जी रही हैं क्योंकि इससे पुरुषों को बहुत ज्यादा फायदा मिलता है। जब समाज में पितृसत्तात्मक सोच का बोलबाला होता है तो इसके अनगिनत फायदे पुरुषों को ही मिलते हैं और उन्हें महिलाओं को दबाने का मौका मिलता है। यह मौका वे कभी भी छोड़ना नहीं चाहते। इस वजह से बहुत सारे पुरुष कभी भी महिलाओं के अधिकारों की बात नहीं करते हैं। आज हम बात करेंगे कि कैसे इस पितृसत्तात्मक समाज के कारण पुरुषों को महिलाओं को दबाने का मौका मिलता है?

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कैसे पुरुषों को पितृसत्तात्मक सोच से महिलाओं को दबाने का मौका मिलता है

सदियों से समाज में महिलाओं को ही दबाया जा रहा है। आज भी यह कम नहीं हुआ है बल्कि इसका रूप बदला है। क्या कभी आपने सोचा है कि आज भी पितृसत्तात्मक सोच खत्म क्यों नहीं हो रही है? इसका कारण यह है कि समाज इसे खत्म ही नहीं होने देना चाहता। इससे महिलाओं को नीचा दिखाने और उन पर अत्याचार करने का अधिकार आसानी से मिल जाता है। इससे कोई यह भी नहीं पूछता है कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं या फिर कौन गलत है। महिलाओं की गलती ना होने पर भी उन्हें ही गलत ठहरा दिया जाता है और उन्हें आसानी से दबाया जाता है। बहुत सारे लोग इस पर यह भी सवाल उठा सकते हैं कि आज के समय पर तो महिलाएं आजाद है। 

उनके पास अधिकार हैं लेकिन जब आप अपने आसपास देखते हैं तो एक महिला रात में अकेले ट्रैवल नहीं कर सकती। आज भी महिलाओं को फाइनेंशियल इंडिपेंडेंट होने के बावजूद पति या फिर पिता से पूछना पड़ता है। इसके साथ ही उनके छोटे कपड़ों से उन्हें जज किया जाता है। महिलाओं की चॉइस के अनुसार उन्हें जीने का अधिकार नहीं है। हर छोटी से बड़ी चीज पर उन्हें लेबल किया जाता है। ऐसे में अगर आप इसे आजादी बोलते हैं तो शायद आप इसका मतलब नहीं जानते हैं। आजादी का मतलब होता है कि आपको किसी से परमिशन नहीं लेनी पड़ती है बल्कि आप अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जी सकते हैं जिसका संविधान भी हमें अधिकार देता है। 

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ऐसे में पुरुषों का यह फर्ज बनता है कि वह पितृसत्तात्मक सोच का विरोध करें। पुरुषों को यह भी समझना चाहिए कि ऐसी के कारण उन्हें भी नुकसान पहुंच रहा है जैसे समाज में जब फाइनेंशियल खर्चों की बात आती है तो हमेशा पुरुषों का नाम पहले आता है। जब इमोशंस को व्यक्त करने की बात आती है तो पुरुषों को ऐसा करने ही नहीं दिया जाता है। उन्हें कमजोर समझा जाता है तो कहीं ना कहीं पितृसत्तात्मक दोनों जेंडर्स के लिए खतरनाक है और इसके खिलाफ सभी को आवाज उठानी चाहिए और बराबरी का माहौल पैदा करना चाहिए जहां पर सभी लोग सुरक्षित महसूस कर सके और उन्हें अपनी चॉइस के लिए किसी को जवाबदेह ना होना पड़े।

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