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भारतीय परिवार में एक महिला के लिए Generational Conditioning को तोड़कर आगे बढ़ना कितना मुश्किल?

पितृसत्तात्मक सोच के कारण आज भी महिलाओं के लिए आगे बढ़ना मुश्किल है और साथ ही समाज का दबाव भी बहुत ज्यादा होता है। महिलाओं के ऊपर पर्सनल गोल से ज्यादा परिवार की जिम्मेदारियां को प्राथमिकता देने का दबाव बनाया जाता है।

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Rajveer Kaur
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Patriarchy

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The Struggle Of Indian Women To Break Free: भारतीय परिवार में एक बेटी के तौर पर जन्म लेना आसान नहीं होता है। यहां पर सिर्फ बेटी की जिंदगी  मुश्किल नहीं होती बल्कि उस परिवार की भी होती है जिसमें बेटी का जन्म हुआ होता है। आज भी बहुत सारे लोगों की मानसिकता नहीं बदली है और उनकी बेटे की ख्वाहिश खत्म नहीं हुई है। जब भी किसी के घर में बेटी पैदा होती है तो आज भी ऐसे लोग आ जाते हैं जो यह कहते हैं कि कोई नहीं अगली बार लड़का हो जाएगा। यह सोच हमेशा ही महिलाओं की मौजूदगी पर सवाल उठाती है। आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे कि कि भारतीय परिवार में जेनरेशनल कंडीशनिंग को तोड़कर आगे बढ़ना कितना मुश्किल है?

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भारतीय परिवार में एक महिला के लिए Generational Conditioning को तोड़कर आगे बढ़ना कितना मुश्किल?

पितृसत्तात्मक सोच के कारण आज भी महिलाओं के लिए आगे बढ़ना मुश्किल है और साथ ही समाज का दबाव भी बहुत ज्यादा होता है। महिलाओं के ऊपर पर्सनल गोल से ज्यादा परिवार की जिम्मेदारियां को प्राथमिकता देने का दबाव बनाया जाता है। इसके साथ ही जब एक लड़की एजुकेशन या फिर करियर पर फोकस करती है तब समाज, परिवार, रिश्तेदार और दोस्त सभी दबाव बनाते हैं।

परिवार में भी महिला की इतनी सुनवाई नहीं होती है। घर पर भी माहौल पुरुष प्रधान ही होता है जहां पर पुरुषों के विचारों को ज्यादा अहमियत दी जाती है और हमेशा महिलाओं को नीचा ही दिखाया जाता है या फिर उनके ओपिनियन को अहमियत नहीं दी जाती है।

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भारतीय समाज में जेंडर रोलस का बहुत बोलबाला है। ऐसे में महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे दूसरों की देखभाल करें। ऐसे में महिलाओं को अपने से पहले दूसरों को प्राथमिकता देनी पड़ती है जिस कारण उनके लिए एक कठिन माहौल पैदा हो जाता है। जब महिलाओं को सिर्फ घर तक रखने की कोशिश की जाती है या फिर उन्हें ज्यादा एक्सप्लोर करने का मौका नहीं दिया जाता है तो उन्हें उनके अंदर कॉन्फिडेंस की कमी आ जाती है और हमेशा सेफ डाउट रहता है जिसकी वजह से वे डिसीजन नहीं ले पाती हैं।

वहीं पर जो महिलाएं इस जेनरेशनल कंडीशनिंग को तोड़कर आगे बढ़ती हैं, किसी के सामने झुकती नहीं बल्कि हर फैसले के लिए खुद पर निर्भर हो जाती हैं तो उन्हें किसी से परमिशन की जरूरत नहीं पड़ती है और ना ही उनके फैसले दूसरों पर निर्भर होते हैं लेकिन यहां तक पहुंचना किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होता है। यह एक बहुत ही कठिन रास्ता है जिस पर चलने के लिए बहुत ज्यादा हिम्मत की जरूरत होती है और बहुत सारी महिलाएं इस कंडीशनिंग को तोड़कर आगे बढ़ने की हिम्मत भी रखती हैं।

वे अपने साथ-साथ दूसरी महिलाओं को भी सशक्त करती हैं। आज के समय में महिलाओं के लिए माहौल पहले से थोड़ा बेहतर हो गया है लेकिन अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इसके लिए महिलाओं को एक-दूसरे का साथ देना पड़ेगा और उनकी हिम्मत बढ़ानी पड़ेगी।

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