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Let's Talk Openly Photograph: (Shethepeople TV Hindi Original )
"यार, जब मुझे पहली बार पीरियड्स आए थे, मैं इतनी डर गई थी कि रोने लगी। मुझे लगा, कुछ बहुत गलत हो गया है"
"हां! मेरे साथ भी यही हुआ था। मैं मम्मी के पास भागी और उन्होंने सबसे पहले कहा ‘डरने की जरूरत नहीं, बस किसी को बताना मत।’"
हम लड़कियों में से ज्यादातर के साथ ऐसा ही हुआ है। पहली बार जब पीरियड्स आते हैं, तो उससे ज्यादा डराने वाली चीज़ ये होती है कि हमें इसे छुपाने के लिए कहा जाता है। लेकिन क्यों?
"किसी को बताना मत" लेकिन क्यों?
अगर ये शरीर का एक नेचुरल प्रोसेस है, तो इसे सीक्रेट की तरह ट्रीट क्यों किया जाता है? लड़कों को उनके शारीरिक बदलावों के बारे में खुलकर बताया जाता है, लेकिन लड़कियों को पीरियड्स के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं दी जाती। जब ये होता है, तब भी शर्म और चुप्पी की चादर ओढ़ा दी जाती है।
हम सब एक ग्रुप में बैठे थे, जब इस टॉपिक पर चर्चा शुरू हुई। एक ने कहा, "मुझे याद है, जब पहली बार पीरियड्स आए थे, तो घर में ऐसा बर्ताव हुआ जैसे कोई गुप्त राज खोल दिया हो!" दूसरी ने तुरंत जवाब दिया, "और लड़कों को तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं होता, वो तो इसे मज़ाक समझते हैं"
बातचीत गहराने लगी, और हमने सोचा आखिर हमें बचपन से ही पीरियड्स के बारे में खुलकर बात करने से रोका क्यों जाता है? समाज इसे शर्म से क्यों जोड़ता है? और सबसे बड़ा सवाल अब वक्त आ गया है कि हम इस चुप्पी को तोड़ें?
शुरुआत में ही चुप्पी क्यों?
जब कोई लड़की पहली बार पीरियड्स एक्सपीरियंस करती है, तो घर में उसे एक अलग तरीके से देखा जाता है। मां, जो खुद इसी फेज़ से गुजरी होती है, सबसे पहले यही सिखाती है कि किसी को बताना मत। अब तुम बड़ी हो गई हो, ज़िम्मेदारी से रहना होगा। लेकिन ये "बड़ा हो जाना" आखिर होता क्या है? क्या अब लड़की को अपनी मासूमियत छोड़कर हर चीज़ को शर्म की नजर से देखना होगा?
मुझे याद है, जब पहली बार पीरियड्स आए थे, तो मां ने जल्दी से एक पैड पकड़ाया और धीरे से कहा था, "इसका इस्तेमाल करो, किसी को बताना मत।" मन में सवाल उठे थे, लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं हुई। शायद यही सबसे बड़ी गलती थी।
क्यों नहीं बताया जाता लड़कियों को पहले से?
हमारे समाज में शरीर से जुड़े बदलावों को लेकर बातें खुलकर नहीं होतीं। खासकर जब वो बदलाव लड़कियों से जुड़े हों। एक 10-12 साल की लड़की को अचानक ब्लीडिंग होती है और उसे समझ नहीं आता कि उसके साथ क्या हो रहा है। डर और घबराहट के बीच मां बस एक ही बात कहती है ये नॉर्मल है, लेकिन किसी को बताना मत।
अगर कोई चीज़ नॉर्मल है, तो उसे छुपाने की जरूरत क्यों पड़ती है? क्यों लड़कियों को पहले से नहीं बताया जाता कि उनके शरीर में ये बदलाव आने वाला है? क्यों स्कूल में सिर्फ "साइंस चैप्टर" तक इसे सीमित कर दिया जाता है, जब ये असल ज़िंदगी का हिस्सा है?
पीरियड्स शर्म की बात कब से हो गए?
समस्या ये नहीं है कि पीरियड्स होते हैं, समस्या ये है कि इसे एक सीक्रेट बना दिया गया है। लड़कियों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि पैड छुपाकर रखो, दाग़ लग जाए तो डर जाओ, और लड़कों से तो बिल्कुल भी इस बारे में बात मत करो। पर क्यों?
अगर लड़कों को पता होगा कि ये नेचुरल है, तो वो इसे लेकर मज़ाक नहीं उड़ाएँगे। अगर घर में इसे खुलकर डिसकस किया जाएगा, तो किसी लड़की को पहला पीरियड आते ही डर नहीं लगेगा। जब किसी को ब्लीडिंग होती है, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाया जाता है, पर जब ये नेचुरल ब्लीडिंग होती है, तो इसे छुपाने की चीज़ बना दिया जाता है।
समाज की सोच बदलने की जरूरत
हमें इस सोच को बदलना होगा। अगली पीढ़ी की लड़कियों को ये डर देकर बड़ा नहीं करना चाहिए कि पीरियड्स को छुपाने की चीज़ है। उन्हें पहले से ही ये समझाना चाहिए कि ये उनके शरीर का एक हेल्दी प्रोसेस है। पैड खरीदने में शर्मिंदगी महसूस नहीं करनी चाहिए। मंदिर जाने, पूजा करने और सफेद कपड़े पहनने की पाबंदियां हटानी चाहिए।
हमारे ग्रुप की बातचीत अब एक नई दिशा में जा चुकी थी। सबने अपनी कहानियां सुनाईं, अपने डर बताए, और फिर आखिर में हम सबने तय किया अब हम चुप नहीं रहेंगे। अगर हमारी छोटी बहनें, दोस्त, या कोई भी लड़की पहली बार पीरियड्स के बारे में पूछेगी, तो हम खुलकर बात करेंगे।
क्योंकि अगर पीरियड्स न हों, तो कोई इंसान इस दुनिया में आ ही नहीं सकता। फिर इसे छुपाना कैसा? अब वक्त आ गया है कि हम इसे नॉर्मल की तरह ट्रीट करें, जैसे कि ये सच में है। अब किसी को बताने से डरने की जरूरत नहीं!