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Photograph: (Freepik)
Why Do Women Still Need Others Permission? समाज ने भले ही आज कितनी भी आधुनिकता आ गई हो, लेकिन महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता को लेकर आज भी वही पुरानी रूढ़ियां बरकरार हैं। महिलाएं खुद के लिए आज भी फैसले नहीं ले सकती अगर लेती भी हैं तो उनपर उँगलियाँ उठाने से ये समाज कभी नहीं चूकता है। जब कोई पुरुष अपनी लाइफ के फैसले खुद ले सकता है, तो महिलाओं को अब भी दूसरों की इजाज़त की जरूरत क्यों है? और यह किसी एक क्षेत्र तक सीमित भी नही है। चाहे वह शिक्षा हो, करियर हो, शादी हो या लाइफस्टाइल — हर कदम पर उन्हें समाज की स्वीकृति का इंतजार क्यों करना पड़ता है? यह सोच न केवल महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधा है, बल्कि समाज की छोटी सोच को भी उजागर करती है।
आखिर अब भी महिलाओं को दूसरों की इजाज़त की जरूरत क्यों?
हमारे समाज में लड़कियों की परवरिस ही ऐसे की जाती है कि उन्हें बचपन से ही सिखाया जाता है कि उन्हें क्या पहनना चाहिए, कहां जाना चाहिए, किससे बात करनी चाहिए और यहां तक कि किस उम्र में शादी करनी चाहिए और अगर कोई महिला इन चीजों को बदलना चाहती है या इससे आगे निकलना चाहती है, तो उसे गलत साबित करने पर लग जाता है पूरा समाज उसे अलग-अलग नाम दिए जाने लगते हैं। यह सोच महिलाओं को एक स्वतंत्र व्यक्ति कभी बनने ही नही देती है, बस उन्हें समाज के हाथों की कठपुतली बनने पर मजबूर कआर देती है। एक पुरुष अगर रात को देर तक बाहर रहे, यात्रा करे या अपनी पसंद से जीवन जिए, तो उसे कोई नहीं रोकता, लेकिन महिलाओं के लिए यह पूरी तरह से गलत माना जाता है। यह दोहरी मानसिकता आखिर कब तक चलती रहेगी?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह ‘इजाज़त’ देने का अधिकार आखिर किसने दिया? महिलाओं की ज़िंदगी के फैसले लेने का अधिकार केवल और केवल उन्हीं का होना चाहिए। लेकिन आज भी जब कोई लड़की देर रात बाहर जाती है या अपने करियर पर फोकस करती है, तो समाज उसे कटघरे में खड़ा कर देता है। जब पुरुष अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं, तो महिलाएं क्यों नहीं? हमारे समाज की यही सोच लैंगिक असमानता को जन्म देती है और पितृसत्ता को मजबूत बनाए रखती है।
इस सोच को बदलने के लिए सबसे पहले परिवारों को अपनी सोच बदलनी होगी क्योंकि इसकी शुरुआत वहीं से होती है। माता-पिता को अपनी बेटियों को भी उसी तरह आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत है, जैसे वे बेटों को बनाते हैं। महिलाओं को अपनी स्वतंत्रता के लिए समाज से अनुमति मांगने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। उन्हें अपने फैसले खुद लेने की हिम्मत और अधिकार दोनों मिलना चाहिए। साथ ही, कानून और सामाज को उनपर अंकुस लगाने की जगह उन्हें स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से ही यह बदलाव संभव है।