Ambitious Women: क्यों महिलाओं के सपनों को सीरियस नहीं लिया जाता है?

हमारे समाज में महिलाओं के रिश्तों को सीरियसली नहीं लिया जाता है। उन्हें हमेशा कम आंका जाता है. बचपन से ही महिलाओं की कंडीशनिंग ऐसे ही की जाती है कि आपको बड़े होकर शादी ही करनी है, आइए आज इन सभी चुनौतियों के बारे में बात करते हैं-

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Rajveer Kaur
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(Image Credit: Indian Express)

Ambitious Women: हमारे समाज में महिलाओं के रिश्तों को सीरियसली नहीं लिया जाता है। उन्हें हमेशा कम आंका जाता है. बचपन से ही महिलाओं की कंडीशनिंग ऐसे ही की जाती है कि आपको बड़े होकर शादी ही करनी है लेकिन कोई यह नहीं कहता है कि बेटा बताओ तुम्हारा सपना क्या है, हम तुम्हारा साथ देंगे। पुरुषों के सपनों को शुरू से ही सीरियसली लेना शुरू कर दिया जाता है। लड़के के ध्यान की तरफ देखते हुए उसे वैसे ही कोचिंग और माहौल प्रदान किया जाता है ताकि वो आगे चलकर उस चीज पर फोकस कर सके लेकिन महिलाओं के साथ उल्ट होता है। उनके सामने ढेरों चुनौतियां होती हैं। पहले परिवार नहीं मानता अगर परिवार सपोर्टर होता है तो फिर समाज बीच में आ जाता है। इसके बाद वर्क पर एक बहुत ज्यादा बायस होता है। आइए आज इन सभी चुनौतियों के बारे में बात करते हैं-

क्यों महिलाओं के सपनों को सीरियस नहीं लिया जाता है?

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महिला अपने सपनों और गोल्स को तब पूरा कर पाती हैं, जब परिवार में उन्हें वो माहौल मिलता है। उन्हें पहले घर का काम करना पड़ता है। परिवार वाले यह भी कह देते है कि घर का काम पहले होना चाहिए, उसके बाद तुम जो करना चाहे वो कर सकती हो। उसमें भी उन्हें पूरा साथ नहीं मिलता है।लड़कियों के लिए यह भी कहा जाता है कि लड़कियों के पढ़ने-लिखने का कोई फायदा नहीं है आखिर में उनकी शादी ही होनी है। इसके बाद कहा जाता है, अगर लड़की पढ़ी-लिखी है तो उसे जॉब करने की कोई जरूरत नहीं है, पति उसके खर्चे उठा देगा। अगर शादी के बाद जॉब करनी है तो घर और बच्चा भी संभालना पड़ेगें।  इन सभी परेशानियों और स्ट्रगल्स के साथ जुंजते हुए महिलाएं कदम-कदम आगे बढ़ती हैं जो बिल्कुल भी आसान नहीं होता है। 

महिला अपने सपनों और गोल्स को तब पूरा कर पाती हैं, जब परिवार में उन्हें वो माहौल मिलता है। उन्हें पहले घर का काम करना पड़ता है। परिवार वाले यह भी कह देते है कि घर का काम पहले होना चाहिए, उसके बाद तुम जो करना चाहे वो कर सकती हो। उसमें भी उन्हें पूरा साथ नहीं मिलता है। लड़कियों के लिए यह भी कहा जाता है कि लड़कियों के पढ़ने-लिखने का कोई फायदा नहीं है आखिर में उनकी शादी ही होनी है। इसके बाद कहा जाता है, अगर लड़की पढ़ी-लिखी है तो उसे जॉब करने की कोई जरूरत नहीं है, पति उसके खर्चे उठा देगा। अगर शादी के बाद जॉब करनी है तो घर और बच्चा भी संभालना पड़ेगें। इन सभी परेशानियों और स्ट्रगल्स के साथ जुंजते हुए महिलाएं कदम-कदम आगे बढ़ती हैं जो बिल्कुल भी आसान नहीं होता है। 

अगर परिवार साथ देने लग जाए तो समाज के ताने महिलाओं के लिए कम नहीं होते हैं। महिला कोई भी करियर ऑप्शंस का चयन कर ले लेकिन सभी  पुरुष प्रधान है। महिलाओं के करियर को कभी इतना सीरियसली नहीं दिया जाता है एक ही बात को सीरियस लिया जाता है कि उनकी शादी कैसे करनी है। जो परिवार अपनी बेटियों को सपोर्ट करते हैं, उन्हें भी समाज कोई अच्छी तरह नहीं देखता है। लोग कहते हैं, इतना पढ़कर आपकी बेटी को क्या करेगी, उसे करना तो घर का काम ही है या फिर इसकी शादी हो जाएगी। यह बातें भी परिवार को डिमोटिवेट कर जाती हैं । 

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इसके बाद वर्कप्लेस पर भी महिलाओं के लिए चुनौतियां कम नहीं है। पीरियड लीव के लिए आज भी महिलाएं संघर्ष कर रही हैं। इक्वल पे का मुद्दा आज भी वैसे का वैसा ही है ,महिला की ग्रोथ को उनके चरित्र के साथ देखा जाता है कि अगर यह बॉस बन गई है या इसे कोई हाई पोजिशन पर भेज दिया गया है तो जरूर इसका मैनेजमेंट में किसी के साथ चक्कर होगा या फिर इसने उसे किसी के साथ रात बिताई होगी। ऐसे माइंडसेट के साथ आज भी लोग मौजूद है। लड़कियों को वर्कप्लेस पर भी पढ़े-लिखे लोगों के बीच बायस और जजिंग का सामना करना पड़ता है। 

ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं कि हमारी लड़कियां आगे बड़े, जब हम हर कदम पर उनके लिए इतनी चुनौतियां खड़ी कर देते हैं। हम उनके लिए एक ऐसा माहौल नहीं बना पाए जहां पर वह खुलकर सांस ले सके। 

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