Kya Ye Theek Hai?: किसी भी परिवार में बच्चे का जन्म एक बहुत ही ख़ुशी का पल होता है। लेकिन हमारे समाज में बच्चे का जन्म हमेशा ख़ुशी की वजह हो ऐसा जरूरी नही होती है। यहाँ बच्चे के जन्म की ख़ुशी उसके जेंडर के हिसाब से मनाई जाती है। अगर लड़का हुआ है तो खुशियाँ मनाई जाती हैं और अगर लड़की हुई है तो यह अफ़सोस का कारण बन जाता है। यह सदियों पुरानी मानसिकता बेटों के जन्म का पक्ष लेती है, अक्सर उनके जन्म का जश्न खुशी और धूमधाम से मनाया जाता है, जबकि बेटियों के जन्म पर अफसोस, सहानुभूति या निराशा होती है। सांस्कृतिक मानदंडों में गहराई से निहित इस तरह के लिंग-आधारित भेदभाव न केवल व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं, बल्कि पुरुषों और महिलाओं दोनों को नुकसान पहुँचाने वाले तरीकों से सामाजिक दृष्टिकोण को भी आकार देते हैं।
बेटे के जन्म पर ख़ुशी और बेटियों के जन्म पर अफसोस क्यों?
बच्चे के जन्म पर भेदभाव क्यों होता है?
जेंडर के आधार पर बच्चे के जन्म पर होने वाले भेदभाव का पता गहराई से जड़ जमाए सांस्कृतिक और सामाजिक कारणों से लगाया जा सकता है। सदियों से, पितृसत्तात्मक संरचनाओं ने सामाजिक मानदंडों को निर्धारित किया है जहाँ बेटे के जन्म को एक संपत्ति माना जाता है, जबकि बेटी के जन्म को एक दायित्व के रूप में माना जाता है। बेटों को पारंपरिक रूप से परिवार के वंश को बढाने वाला, भविष्य के लिए कमाने वाले और बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने वाले के रूप में देखा जाता है, इस प्रकार वे ताकत, धन और निरंतरता का प्रतीक भी माने जाते हैं। दूसरी ओर, बेटियों को अक्सर दहेज के बोझ, वित्तीय निर्भरता और इस विश्वास से जोड़ा जाता है कि वे शादी करके परिवार को छोड़ देंगी, जिससे परिवार के समर्थन में बहुत कम योगदान होता है। ये पुराने मूल्य लड़के और लड़कियों के साथ असमान व्यवहार को बनाए रखते हैं।
सिर्फ़ लड़के के जन्म पर ही खुशी क्यों होती है?
हमारा समाज हमेशा से लड़के के जन्म से जुड़ी खुशी मनाता है यह पितृसत्तात्मक मान्यताओं से उपजी है। लड़के को अक्सर एक आशीर्वाद माना जाता है क्योंकि उसे भविष्य का प्रदाता, परिवार की विरासत को सम्भालने वाला और परिवार के महत्वपूर्ण दायित्व संभालने वाला व्यक्ति माना जाता है। जैसे- कई जगहों पर केवल बेटों को ही अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार करने में सक्षम माना जाता है, जिसे माता-पिता की मृत्यु के बाद की यात्रा के लिए ज़रूरी माना जाता है। इसके अलावा बेटों को अक्सर आर्थिक संपत्ति के रूप में देखा जाता है जो परिवार में आय लाएंगे और बुढ़ापे में अपने माता-पिता की देखभाल करेंगे। ये मान्यताएँ पुरानी हो चुकी हैं, फिर भी दुनिया के कई हिस्सों में महत्वपूर्ण प्रभाव रखती हैं, जिससे लड़के के जन्म पर बहुत खुशी होती है।
लोग लड़की के जन्म पर क्यों अफ़सोस करते हैं?
लड़की के जन्म पर अफ़सोस की वजह सांस्कृतिक और आर्थिक चिंताएँ हैं। सबसे प्रमुख कारणों में से एक दहेज की अवधारणा है, जो कानूनी बंदिशों के बावजूद अभी भी प्रचलित है। माता-पिता अपनी बेटियों की शादी करने के वित्तीय तनाव से डरते हैं, क्योंकि दहेज की मांग आर्थिक कठिनाई का कारण बन सकती है। इसके साथ ही बेटियों को अक्सर परिवार के अस्थायी सदस्य के रूप में देखा जाता है, क्योंकि उनसे शादी के बाद अपने माता-पिता के घर को छोड़ने की उम्मीद की जाती है, जो इस धारणा को और बढ़ावा देता है कि वे एक वित्तीय बोझ हैं। इस विश्वास के साथ कि बेटियाँ परिवार का नाम नहीं चला सकतीं, एक ऐसा माहौल बनता है जहाँ लोग लड़की के जन्म पर पछताते हैं।
लोग लड़की के जन्म पर सहानुभूति क्यों रखते हैं?
आज भी जब दुनिया में तमाम बदलाव हो चुके हैं। इसके बाद भी समाज में लोग लड़कियों के जन्म पर ख़ुशी नही मनाते हैं और अगर परिवार के लोग या माता-पिता खुश हो भी जाएँ तो आस-पास के लोग और रिश्तेदारों में से कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपनी चिंता प्रकट करने और सहानुभूति दिखाने आते हैं कि कोई बात नही लड़की हुई है, अगली बार लड़का होगा। लेकिन लड़की के जन्म पर दिखाई जाने वाली यह सहानुभूति उसके जीवन भर आने वाली चुनौतियों की पहचान से उत्पन्न होती है। पित्रसत्तात्मक समाज में लड़कियाँ अक्सर भेदभाव, सीमित अवसरों और सामाजिक प्रतिबंधों का सामना करते हुए बड़ी होती हैं।
कैसे आएगा बदलाव?
इस पुरानी मानसिकता को बदलना हमारी प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। आज के समय में लड़कियां सब कुछ करने में सक्षम हैं ऐसे में उनके जन्म पर अफ़सोस करने की जगह खुशियाँ मनाई जानी चाहिए। लिंग भेदभाव न केवल लोगों की क्षमता को सीमित करता है बल्कि सामाजिक विकास को भी बाधित करता है। जब लड़कियों को कम आंका जाता है, तो पूरा परिवार और समुदाय उनके योगदान से चूक जाता है। महिलाओं को सशक्त बनाना और जन्म से ही उनके साथ समान व्यवहार करना समाज को फलने-फूलने में सक्षम बनाता है, क्योंकि महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।