Why Is There Silence About Girls Sexual Desires In Society? कभी गौर किया है कि समाज में कुछ विषयों पर बात करना कितना मुश्किल होता है? हम अंतरिक्ष की यात्राओं पर चर्चा कर लेते हैं, गहरे समुद्र के रहस्यों को जानने की कोशिश करते हैं, पर कुछ सवालों को उठाना आज भी वर्जित माना जाता है। उन्हीं में से एक सवाल है - लड़कियों की यौन इच्छाओं का।
समाज में लड़कियों की Sexual Desires को लेकर खामोशी क्यों है?
क्या कभी सोचा है कि आखिर लड़कों की तरह लड़कियों में भी यौन इच्छाएं होती हैं या नहीं? अगर होती हैं, तो समाज उनके बारे में खुलकर बात क्यों नहीं करता? और सबसे अहम सवाल ये कि लड़कियों की इच्छाओं को लेकर ये खामोशी कब खत्म होगी?
ये सवाल इसलिए जरूरी हैं क्योंकि आज भी हमारे समाज में एक अजीब सी खामोशी है, जब बात लड़कियों की यौन इच्छाओं की आती है. लड़का अगर किसी के प्रति आकर्षित होता है तो उसे "शरारती" या "जिंदादिल" कहा जाता है, वहीं लड़की अगर ऐसा करती है तो उसे "चरित्रहीन" जैसे घटिया शब्दों से नवाजा जाता है। ये दोहरा मापदंड क्यों? क्या यौन इच्छा होना सिर्फ लड़कों का विशेषाधिकार है?
आइए, अब इन सवालों के जवाब तलाशते हैं जी और समझते हैं कि आखिर लड़कियों की यौन इच्छाओं को लेकर ये खामोशी खत्म करने की इतनी ज़रूरत क्यों है?
कब खत्म होगी लड़कियों की यौन इच्छाओं पर ये खामोशी?
लैंगिक आकर्षण एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है। हर किसी में, चाहे वो लड़का हो या लड़की, ये इच्छाएं होती हैं। ये न तो गलत हैं और न ही किसी के चरित्र को परिभाषित करती हैं। असल मुद्दा है- सहमति (Consent) और सम्मान (Respect) किसी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए सहमति जरूरी है, साथ ही हर किसी को सम्मान के साथ पेश आने का हक है
इस पूर्वाग्रह की जड़ें हमारे समाज की उस पुरानी सोच में हैं, जहां लड़कियों को सिर्फ संतान पैदा करने वाली मशीनों के रूप में देखा जाता था। उनकी भावनाओं, इच्छाओं को दरकिनार कर दिया जाता था। यही वजह है कि आज भी समाज लड़कियों की यौन स्वतंत्रता को संदेह की निगाह से देखता है।
सोच को बदलने की सख्त जरूरत
लड़कियों को ये हक है कि वो अपनी इच्छाओं को जाहिर करें, ये उनका मौलिक अधिकार है। किसी को ये हक नहीं है कि वो उनकी पसंद पर सवाल उठाए या उन्हें उनके शरीर पर होने वाले आकर्षण के लिए नीचा दिखाए।
ये बदलाव स्कूलों से ही लाया जा सकता है. बच्चों को सेक्स शिक्षा देनी चाहिए, जिसमें सहमति, यौन हिंसा और लैंगिक समानता जैसे विषयों को शामिल किया जाए। साथ ही, मीडिया को भी ज़िम्मेदारी लेनी होगी। महिलाओं को सिर्फ सुंदर वस्तुओं के रूप में पेश करना बंद करना होगा। उनकी बुद्धिमत्ता और क्षमताओं को भी उजागर करना होगा।
ये बदलाव आसान नहीं होंगे। पर जब तक हम इस दोहरे मापदंड को खत्म नहीं करते, लड़कियों को यौन उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता रहेगा। आइए मिलकर ये कदम उठाएं, ताकि हम एक ऐसा समाज बना सकें जहां हर किसी को अपनी इच्छाओं को जाहिर करने की स्वतंत्रता हो और किसी को भी उनकी यौन इच्छाओं के लिए जज ना किया जाए।