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शादी के बाद महिलाओं को अपने पेरेंट्स के साथ क्यों नहीं रहना चाहिए?
Opinion: इस पट्रीयाचल सोसाइटी में महिलाओं पर कई तरह के नियम और कानून थोपे जाते हैं। इन पट्रीयाचल मानदंडों ने हमेशा पुरुषों का पक्ष लिया है और यही कारण है कि यह महिला दास्तां को भी बढ़ाता है। एक महिला को जन्म से ही कई नियम कानूनों के बोझ के तले दबा दिया जाता है और शादी के बाद यह नियम कानून अधिक बढ़ जाते हैं।
क्यों महिलाओं को अपने माता पिता के घर को छोड़कर पति के घर जाना पड़ता है ?
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शादी के बाद पुरुषों की तुलना में महिलाओं के जीवन में ज्यादा बदलाव देखे जाते हैं। उन बदलावों में से एक बदलाव यह है कि शादी के बाद महिलाओं को अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर पर जाकर रहना पड़ता है, यह सबसे बड़ा बदलाव भी कह सकते हैं। पति अपनी पत्नी के साथ उसके घर जाने और उसके साथ रहने का फैसला कर भी ले तो हमारा समाज उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है।
एक महिला को शादी के बाद अपने पेरेंट्स का घर छोड़कर अपने पति के साथ उसके पेरेंट्स के घर जाने के लिए मजबूर क्यों किया जाता है? आखिर क्यों महिलाओं को शादी के बाद अपने पेरेंट्स की देखभाल करने का अधिकार नहीं है? एक महिला के लिए उसके पेरेंट्स उतने ही महत्वपूर्ण है जितना कि पुरुषों के लिए। जैसे लड़कों के माता-पिता उम्र दराज हो जाते हैं और उन्हें 1 साथी की जरूरत होती है वैसे ही लड़कियों के माता-पिता को भी होती होगी।
आखिर यह पट्रीयाचल सोसाइटी पुरुषों का मूल्य क्यों निर्धारित करती है?
यह पट्रीयाचल सोसाइटी शादी के बाद महिलाओं के लिए अपने पति के माता-पिता के घर जाने को नॉर्मल मानता है। अगर कोई पुरुष ऐसा करता है तो उसे काफी हीन दृष्टि और आलोचना का सामना करना पड़ता है। एक पुरुष और एक महिला को यह तय करना होता है की वह शादी के बाद क्या करना चाहते हैं, कहां रहना चाहते।
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हम किसी महिला या पुरुष को मजबूर नहीं कर सकते हैं कि उनको क्या डिसीजन लेना चाहिए। जिस तरह एक आदमी को अपने माता-पिता के साथ रहने का अधिकार है उसी तरह एक महिला को भी अपने माता-पिता के साथ रहने का अधिकार है। किसी को ऐसा करने के लिए मजबूर करना सरासर गलत है। पहले पुरुष कमाने वाले थे इसलिए महिलाएं वहां जाते थे जहां उनके पति काम करते थे और उनके माता-पिता के परिवार के साथ रहती थी। लेकिन जैसे जैसे समय बदला वैसे वैसे महिलाओं की स्थिति भी बदली और आज अधिकतर महिलाएं फाइनेंशियल स्टेबल है और फाइनेंशियल इंडिपेंडेंट है। इसलिए दोनों के डिसीजन की रिस्पेक्ट करना चाहिए और यह निर्णय हमें उन दोनों पर ही छोड़ देना चाहिए।
जिसका जीवन उसका निर्णय
मुझे लगता है ऐसा कोई नियम नहीं होना चाहिए की शादी के बाद महिला ऐसी हो, वैसी हो, यहां रहे, वहां रहे, यह करें, वह करें, यह पहने और वह पहने। यह सिर्फ एक महिला को खुद का फैसला होना चाहिए कि उसको अपने जीवन में क्या करना है उस पर यह कानून और नियम थोपना सरासर गलत है और यह हमारे समाज की विफलता को दिखाता है।
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हमने ऐसी बहुत-सी महिलाओं को देखा जिन्होंने इन नियम कानून के खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाही लोगों को जागरूक करने की कोशिश की, कि जरूरत नहीं है महिला पर इतने नियम कानून को थोपने कि, उन महिलाओं को अधिकतर लोगों का क्रिटिसिज्म झेलना पड़ता है कि बहुत अहंकारी है यह अपने जीवन में खुद कुछ नहीं कर पाएगी और भी ऐसे कई बातें हैं जो एक महिला को सुनना पड़ता है।
आज के बदलते दौर में जिस तरह महिलाओं ने अपने खिलाफ सामाजिक मर्यादाओं को तोड़ना शुरू किया है, उसी तरह पुरुषों को भी उनके खिलाफ सामाजिक मर्यादाओं को तोड़ना होगा। पुरुषों को पट्रीयाचल सोसाइटी मानदंडों के खिलाफ बोलना चाहिए। जैसे कि पुरुष जादू-टोना नहीं करते, पुरुष डींग नहीं मारते और पुरुष महिलाओं को गुलाम नहीं मानते हैं।
वैवाहिक जीवन में दोनों को समान समझना चाहिए और एक को हीन और दूसरे को श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए। इस तरह से जीने वाला जीवन हमेशा पूर्ण सुख की ओर नहीं ले जाता है। इसलिए जरूरी है कि महिलाएं अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं।